Bhagavad Gita Shlok For Calm Mind: हजारों वर्षों पुरानी भगवद गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि आत्मिक और मानसिक संघर्षों के समाधान का गहरा विज्ञान है। हिंदू धर्म में गीता को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके जरिए व्यक्ति जीवन जीने की कला और समस्याओं का निवारण करना सीखता है। इस भागदौड़ भरे दौर में हम सभी किसी न किसी रूप में तनाव, बेचैनी और गुस्से का सामना करते हैं।
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Gita Shlok: गीता के ये पांच श्लोक मन को करते हैं शांत, जीवन में अपनाने पर मिलते हैं कई लाभ
धर्म डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: सोनिया चौहान
Updated Thu, 13 Nov 2025 10:37 AM IST
सार
भगवद गीता हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जिसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे कर्म, भक्ति और ज्ञान पर गहन चर्चा की गई है। हजारों वर्षों पुरानी भगवद गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि आत्मिक और मानसिक संघर्षों के समाधान का गहरा विज्ञान भी है।
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भगवद गीता
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भगवद गीता श्लोक
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आज हम आपको गीता के ऐसे पांच श्लोक के बारे में बताएंगे जो आपकी मन को शांत करने में मदद कर सकते हैं।
श्लोक
1: कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
इसका अर्थ है कि आपका अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फल में कभी नहीं
2: मनमना भव मद्भक्तो, मद्याजी मम नमस्कुरु।
इसका अर्थ है कि अपना मन मुझ पर केंद्रित करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे प्रणाम करो।
श्लोक
1: कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
इसका अर्थ है कि आपका अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फल में कभी नहीं
2: मनमना भव मद्भक्तो, मद्याजी मम नमस्कुरु।
इसका अर्थ है कि अपना मन मुझ पर केंद्रित करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे प्रणाम करो।
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भगवद गीता श्लोक
- फोटो : adobe stock
3: उद्धरेदात्मानोनात्मानं, न आत्मानं अवसादयेत।
इसका अर्थ है कि मनुष्य को स्वयं अपने मन द्वारा ही अपना उद्धार करना चाहिए, मन के द्वारा ही स्वयं को नीचे न गिराए।
4: संगात्सञ्जायते कामः, कामात्क्रोधोऽभिजायते।
इसका अर्थ है कि आसक्ति से इच्छा जन्म लेती है, इच्छा से क्रोध, और क्रोध से भ्रम पैदा होता है।
इसका अर्थ है कि मनुष्य को स्वयं अपने मन द्वारा ही अपना उद्धार करना चाहिए, मन के द्वारा ही स्वयं को नीचे न गिराए।
4: संगात्सञ्जायते कामः, कामात्क्रोधोऽभिजायते।
इसका अर्थ है कि आसक्ति से इच्छा जन्म लेती है, इच्छा से क्रोध, और क्रोध से भ्रम पैदा होता है।
भगवद गीता श्लोक
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5: यथा दीपो निवतस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता।
इसका अर्थ है कि जिस प्रकार स्थिर दीपक वायुहीन स्थान में हिलता नहीं, उसी प्रकार आत्म-साक्षात्कार करने वाले योगी का मन भी स्थिर होता है।
इसका अर्थ है कि जिस प्रकार स्थिर दीपक वायुहीन स्थान में हिलता नहीं, उसी प्रकार आत्म-साक्षात्कार करने वाले योगी का मन भी स्थिर होता है।
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भगवद गीता श्लोक
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मानसिक परेशानी, डिप्रेशन या गुस्सा अगर जीवन पर हावी हो रहा है, तो मन को शांत करने के लिए भगवद गीता के ये श्लोक और आपकी आत्मा को स्थिर कर सकते हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
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