Indian Law For Husband Property: इन दिनों बिजनेसमैन संजय कूपर की चर्चा लगभग हर तरफ है और इसका एक कारण उनकी प्रॉपर्टी भी है। दरअसल, संजय कपूर की मौत के बाद उनकी संपत्ति पर जिस तरह से विवाद चल रहा है, उससे ये देखने में आ रहा है कि अगर एक व्यक्ति की एक से अधिक शादी हो और उन शादियों से उसे बच्चे भी हो तो उत्तराधिकार की लड़ाई काफी पेचीदा हो सकती है।
ये जान लें कि संजय कपूर की लगभग 30 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति को लेकर ये पूरा विवाद है। ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर इस पर भारत का कानून क्या कहता है। तो चलिए जानते हैं इस बारे में। अगली स्लाइड्स में आप इस बारे में विस्तार से जान सकते हैं...
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भारत में पति-पत्नी की संपत्ति पर किसका हक होता है?
- फोटो : Adobe Stock
क्या कहता है भारत का कानून?
हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध धर्म वालों के लिए
- किसे मृत व्यक्ति की प्रॉपर्टी मिलेगी ये इस बात पर निर्भर करता है कि मृत व्यक्ति की धर्म क्या था? समझ लीजिए कि हिंदू, जैन, सिख और बैद्ध के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 लागू होता है। जीवित पत्नी/पति, बच्चे और मां को एक्ट में क्लास I वारिस के तहत सबसे ऊपर रखा गया है यानी इन सभी को बराबरी का हक क्लास I के तहत मिलता है।
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- पर ये भी समझ लीजिए कि अगर मृत व्यक्ति ने अपनी कोई विल यानी वसीयत बनाई है तो उसकी जांच होती है, जो Indian Succession Act, 1925 के तहत होती है और इसमें वसीयत की वैधता और सबूत की जांच होती है।
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पारसी, ईसाई, यहूदी और मुस्लिम धर्म के लिए नियम
- अगर मृत व्यक्ति पारसी, ईसाई और यहूदी है तो इस पर Indian Succession Act, 1925 लागू होता है। इसमें जीवित पत्नी/पति, बच्चे और माता-पिता को बराबर संपत्ति बांटने का प्रावधान है। जबकि, बात अगर मुस्लिम धर्म की करें तो यहां का कानून अलग लागू होता है। इसमें पति-पत्नी, बेटे-बेटियां, माता-पिता और बाकी रिश्तेदारों के लिए तयशुदा हिस्से निर्धारित होते हैं।
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एक से अधिक पत्नी होने पर क्या होगा?
- अगर मृत व्यक्ति की एक से अधिक शादियां हैं, तो इस पर आदालतों की तरफ से कई बार साफ किया जा चुका है कि कानूनी तौर पर शादीशुदा पत्नी/पति ही उत्तराधिकार कर सकती है या सकता है। दूसरी पत्नी को विधवा के तौर पर संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिलता है, क्योंकि हिंदू कानून के तहत पहली शादी के होते हुए दूसरी शादी को वैध नहीं माना जाता है। हालांकि, दूसरी शादी से हुए बच्चों को वेध माना जाता है और उन्हें प्रॉर्टी में हकदार भी माना जाता है। कानून इसमें कोई भेदभाव नहीं करता है।