1971 War: जनरल मानेकशाॅ ने दिया था आदेश...भारतीय जवानों ने पाकिस्तान में मस्जिदाें और दरगाहों संवारा, फिर लौटे
1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध का मंगलवार को विजय दिवस मनाया गया। इस खास मौके पर युद्ध को लेकर कुछ ऐसी बातें भी साझा की गई, जिन्हें शायद बहुत कम लोग जानते होंगे। मेजर जनरल बख्शी ने कुछ ऐसी बातें साझा की हैं।
विस्तार
साल 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारतीय सेनाओं ने फतेह हासिल कर ली थी। हमारी सेनाएं रावी की सहायक बसंतर नदी पार कर करीब 10 से 12 किलोमीटर तक पाकिस्तान के भीतर थी। दो बड़े गांवों दरमन और घमरोला समेत पाकिस्तान के करीब 40 गांव भारतीय सेनाओं के कब्जे में थे। टैंकों की आमने-सामने की भीषण लड़ाई के चलते इन गांवों के कई घरों समेत धार्मिक स्थलों (मस्जिद व दरगाह) को भी नुकसान पहुंचा था।
युद्ध विराम के बाद फील्ड मार्शल जनरल सैम मानेकशॉ की ओर से भारतीय सेनाओं को वापस आने का आदेश हुआ मगर इन्हीं आदेशों में यह भी कहा गया था कि लौटने से पहले जवान और अफसर पाकिस्तान के गांवों में उन सभी मस्जिदों और दरगाहों की मरम्मत व पुताई कर उन्हें सवारेंगे, जिन्हें युद्ध के दौरान भारतीय जवानों की गोलाबारी से नुकसान हुआ है, क्योंकि हमारा युद्ध किसी के ईमान और धर्म के साथ नहीं है।
इसके बाद बसंतर का युद्ध लड़ने वाली 16 डोगरा, 17 (पूर्ना) हाॅर्स, 16 मद्रास और 3 ग्रेनेडियर रेजिमेंट के अफसरों ने सांबा (जम्मू) से पुताई व अन्य सामान मंगवाया और फिर मरम्मत के बाद मस्जिदों पर सफेद व दरगाहों पर हरे रंग की पुताई कर उन्हें संवारा गया। इसके बाद सेनाएं भारतीय सीमाओं में लौटीं। इस युद्ध में सबसे कम उम्र के परमवीर चक्र अरुण खेत्रपाल के साथी रहे मेजर जनरल तेजपाल सिंह बख्शी (वेटरन) बताते हैं कि चीफ सैम के ऑर्डर थे, लिहाजा उनकी पलटन ने भी पाकिस्तान में तीन धार्मिक स्थलाें को संवारा था।
एक पलटन ने झांसा दिया, खेत्रपाल ने खेल किया
बसंतर की लड़ाई में हमारा टारगेट पाकिस्तान का जरपाल क्षेत्र था जिसे भारतीय सेना ने अपने कब्जे में ले लिया था। अब पाकिस्तान के काउंटर अटैक का इंतजार किया जा रहा था। मेजर जनरल बख्शी बताते हैं कि इस दौरान योजना के तहत उनकी एक पलटन ने दुश्मन को झांसा दिया जबकि असली खेल सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की पलटन ने किया। एक पलटन के कुछ जवान बसंतर नदी पार कर दूसरे क्षेत्र से घुसपैठ कर रहे थे। पाकिस्तानी फाैज को लगा कि हमला उसे क्षेत्र से होगा। पाकिस्तानी उसी ओर पूरी तरह सक्रिय हो गए। दूसरी ओर, अरुण अन्य मोर्चे पर अपनी टैंक रेजिमेंट के साथ दुश्मनों पर टूट पड़ा। जरपाल भारतीय सेना के कब्जे में आ चुका था। जरपाल से जवान एक पाकिस्तान जीप को विजेता ट्राॅफी के रूप में लेकर लाैटे थे, जिसे ‘जरपाल क्वीन’ के नाम से जाना जाता है।
टैंक से निकाले नाले में फंसे गोला बारूद के ट्रक
बसंतर की लड़ाई छिड़ चुकी थी। मेजर जनरल बख्शी अपनी पलटन के साथ गोला-बारूद से भरे दो ट्रक लेकर बसंतर के पास एक नाला पार कर रहे थे तभी नाले के दलदल में दोनों ट्रक फंस गए। मेजर जनरल कहते हैं कि उन्हें चिंता इस बात की थी यहीं फंसे रहे गए तो जवानों तक गोला बारूद कैसे पहुंचेगा। तभी नदी पार कर चुके उनके दोस्त अरुण खेत्रपाल ने उन्हें देख लिया और अपने टैंक से ही खींचकर दोनों ट्रकों को बाहर निकालकर उन्हें आगे रवाना किया।