क्या होगा BJP-SAD गठबंधन?: भाजपा का एक धड़ा चाहता है गठजोड़, शिअद का इरादा क्या? कांग्रेस और आप में बेचैनी
इन दिनों पंजाब में भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के गठजोड़ की चर्चाओं का बाजार गर्म है। भाजपा के कुछ नेता चाहते हैं कि दोनों दल मिलकर अगला विधानसभा चुनाव लड़े और सत्ता में आए, लेकिन कुछ नेता इसके विरोध में भी हैं।
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पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के बीच गठबंधन की अटकलें और मतभेद बढ़ते जा रहे हैं। पंजाब भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता चाहते हैं कि फरवरी 2027 में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव से पहले सूबे में भाजपा-शिअद का गठबंधन हो जाए मगर दूसरे धड़ा इसका विरोध करते हुए अकेले चुनाव लड़ने का दम भरता है। इसी मतभेद के चलते अब गेंद भाजपा हाईकमान के पाले में है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह और प्रदेशाध्यक्ष सुनील जाखड़ इस बात की खुलकर पैरवी कर चुके हैं कि भाजपा की जीत के लिए शिअद के साथ बहुत जरूरी है। पिछले दिनों कैप्टन ने तो यह तक कह दिया था मौजूदा सियासी परिस्थितियों के मद्देनजर शिअद के बिना भाजपा के लिए साल 2027 क्या साल 2032 का चुनाव भी अकेले जीतना संभव नहीं है। जाखड़ भी इस गठबंधन को जरूरी बता चुके हैं।
दरअसल, कैप्टन और जाखड़ दोनों ही नेता कांग्रेस पृष्ठभूमि से रहे हैं मगर कांग्रेस की अनदेखी के बाद दोनों ने भाजपा का दामन थाम लिया था। दोनों ने भाजपा केंद्रीय नेतृत्व से नजदीकियां बढ़ाईं और अब दोनों नेता अपने-अपने तरीकों से हाईकमान को यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि शिअद के मदद से भाजपा कैसे पंजाब में सरकार बना सकती है। हाईकमान को यह बताया जा रहा है कि पंजाब के शहरी क्षेत्र में भाजपा की पकड़ बढ़ रही है मगर ग्रामीण क्षेत्र में शिअद का अच्छा प्रभाव है।
दूसरे धड़े की राह अलग
भाजपा के दूसरे धड़े में कांग्रेस से ही आए केंद्रीय राज्य मंत्री रवनीत बिट्टू समेत कार्यकारी प्रदेशाध्यक्ष अश्वनी शर्मा समेत अन्य पुराने भाजपाई पंजाब में अकेले चुनाव लड़ने का दावा कर रहे हैं। इस संदर्भ में मंगलवार को चंडीगढ़ स्थित भाजपा प्रदेश मुख्यालय में अश्वनी शर्मा ने एक बैठक के दौरान यह स्पष्ट किया कि भाजपा अगले चुनाव में अकेले लड़ेगी और शिअद से गठजोड़ का कोई इरादा नहीं है। पार्टी सूत्र बताते हैं कि इस पर निर्णय पार्टी हाईकमान ही लेगा और इस मामले में हाईकमान भी अभी जल्दी में नहीं है। राज्यमंत्री रवनीत बिट्टू कहते हैं कि पंजाब में भाजपा को अकेले ही चुनाव लड़ना चाहिए, क्योंकि सूबे में पार्टी का जनाधार बढ़ रहा है मगर गठबंधन पर हाईकमान जो फैसला लेगा, उसके तहत ही आगे बढ़ा जाएगा।
शिअद को गठबंधन की जरूरत
पंजाब की सियासत में साल 1969 के बाद से शिरोमणि अकाली दल का सूबे में असर बढ़ा। इस दल ने पंथक राजनीति के बूते खासकर ग्रामीण इलाकों में अपनी अच्छी खासी पैठ बढ़ाई। पंजाब में वे इलाके जहां पंथक मुद्दे सबसे ज्यादा असरदार रहते हैं, वहां शिअद की अच्छी पकड़ बनी। इसी के बूते शिअद ने पंजाब में सात बार सरकार बनाई है मगर अब शिअद सियासी संकट से जूझ रहा है। साल 2022 के चुनाव में शिअद केवल 3 सीटों पर सिमट कर रह गया। अब शिअद दोफाड़ का शिकार हुआ और इसके समक्ष एक नया दल शिरोमणि अकाली दल (पुनर सुरजीत) खड़ा हो गया।
कांग्रेस और आप में बेचैनी
भाजपा-शिअद के गठबंधन की अटकलों से सूबे में आप और कांग्रेस में बेचैनी का माहौल दिख रहा है। दो दिन पहले आम आदमी पार्टी के वित्तमंत्री हरपाल चीमा ने प्रेसवार्ता कर भाजपा-शिअद राज के कार्यकाल पर कई गंभीर सवाल खड़े किए थे। उनका कहना था कि शिअद फिर भाजपा के सहारे में सत्ता में आने का सपना देख रहा है मगर पंजाब के लोग साल 2007 से 2017 तक इनका कार्यकाल देख चुके हैं और अब इनके चुंगल में आने वाले नहीं है।
उधर, ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सचिव व विधायक परगट सिंह कहते हैं कि अकाली-भाजपा गठबंधन पर कैप्टन अमरिंदर ने यह बात साफ कर दी है कि दोनों पार्टियों की विचारधारा अलग-अलग है। भाजपा हर चीज को केंद्रीयकृत करना चाहती है जबकि शिअद एक क्षेत्रीय दल है।