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पीएसपीसीएल कर्मियों को राहत: 23 साल की सेवा पूरी होते ही इन्क्रीमेंट लाभ का आदेश, बकाया पर 12 प्रतिशत ब्याज

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: निवेदिता वर्मा Updated Tue, 04 Nov 2025 08:00 AM IST
सार

अदालत ने नवगठित एम्पावर्ड कमेटी को निर्देश दिया कि वह इस नीति के तहत लंबित और भविष्य के सभी दावों का समयबद्ध निपटारा करे ताकि एक जैसे मामलों में दोहराई जाने वाली याचिकाओं की आवश्यकता न पड़े।

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Relief to PSPCL employees Order for increment benefits upon completion of 23 years of service Highcourt
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब स्टेट पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड के कर्मचारियों को बड़ी राहत दी है। हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि उन्हें 23 वर्ष की नियमित सेवा पूरी होने पर प्रमोशनल इन्क्रीमेंट दिया जाए। साथ ही कोर्ट ने बकाया राशि का भुगतान 12 प्रतिशत ब्याज सहित करने के भी निर्देश दिए हैं।

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जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ की एकल पीठ ने 128 याचिकाओं का एक साथ निपटारा किया जिनमें कर्मचारियों ने समान लाभ की मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि यह मुद्दा पहले ही कई फैसलों और विभागीय परिपत्रों से तय हो चुका है इसलिए बार-बार ऐसे मामलों में मुकदमेबाजी करना न्यायिक समय की बर्बादी है। एक ही तरह के मामलों में बार-बार मुकदमेबाजी प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाता है और पंजाब विवाद समाधान एवं मुकदमेबाजी नीति, 2020 के उद्देश्य को विफल करता है। 
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अदालत ने नवगठित एम्पावर्ड कमेटी को निर्देश दिया कि वह इस नीति के तहत लंबित और भविष्य के सभी दावों का समयबद्ध निपटारा करे ताकि एक जैसे मामलों में दोहराई जाने वाली याचिकाओं की आवश्यकता न पड़े।

याचिका दाखिल करते हुए सतीश कुमार जगोता व अन्य ने 23 साल की सेवा पूरी होने पर तीसरा प्रमोशनल इन्क्रीमेंट और 12 प्रतिशत ब्याज के साथ बकाया राशि की मांग की थी। न्यायमूर्ति बराड़ ने कहा कि यह विवाद पहले ही ओम प्रकाश दुआ बनाम पंजाब स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (2015) मामले में निपटाया जा चुका है। उस फैसले में कोर्ट ने 23 अप्रैल 1990, 28 जुलाई 2000 और 18 नवंबर 2011 के परिपत्रों के आधार पर राहत दी थी। कोर्ट ने पीएसपीसीएल के तर्कों को अस्वीकार करते हुए कहा कि यह कहना गलत है कि उच्च वेतनमान पाने वाले कर्मचारी प्रमोशनल इन्क्रीमेंट के हकदार नहीं हैं। अदालत ने 2007 की सरकारी स्पष्टीकरण और 1999 के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे कर्मचारियों को भी लाभ मिलना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि विभागीय परीक्षा से जुड़ी शर्तें 2010 में हटा दी गई थीं और 2018 में पूरी तरह समाप्त कर दी गईं। इसलिए पीएसपीसीएएल का यह तर्क टिक नहीं सकता।

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