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इनसाइड स्टोरी: तनखाहिया से ताजपोशी तक... शिअद प्रधान सुखबीर बादल की आगे की राह आसान नहीं, ये हैं चुनौतियां

विशाल पाठक, चंडीगढ़ Published by: अंकेश ठाकुर Updated Sun, 13 Apr 2025 12:51 PM IST
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सार

पंजाब के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर बादल दोबारा शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के प्रधान चुने गए हैं। 500 से ज्यादा डेलीगेट्स ने उन्हें अपना समर्थन देकर एक बार फिर से पार्टी की कमान सौंपी है। बावजूद इसके सुखबीर बादल की राह में कई चुनौतियां हैं। 

Sukhbir Singh Badal become president of Shiromani Akali Dal inside story
सुखबीर बादल बने शिअद के प्रधान - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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तनखाहिया से ताजपोशी तक की सियासी पटकथा से सुखबीर बादल को एक बार फिर शिरोमणि अकाली दल की कमान मिल गई है। छुट्टियों पर गया अकाली दल एक बार फिर सुखबीर के नेतृत्व में सियासी पिच पर लौट आया है।

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बेअदबी की घटनाओं और अकाली सरकार के समय हुई गलतियों के दाग का खामियाजा सुखबीर ने धार्मिक सजा (तनखाहिया) को स्वीकार कर पूरा तो कर दिया, लेकिन अब श्री अकाल तख्त साहिब और पंथक सियासत के बीच अपनी जड़ें मजबूत करना सुखबीर के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। इसी के साथ पार्टी से अलग हुए बागियों को मनाना भी सुखबीर के लिए जरूरी होगा, क्योंकि ताजपोशी के साथ ही सुखबीर एक बार फिर बागियों और विपक्षियों के निशाने पर आ गए हैं, जिनका कहना है कि यह पहले से लिखी हुई स्कि्रप्ट थी।
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2008 में पहली बार प्रधान पद पर बैठने वाले सुखबीर के हाथों पांच महीने के बाद फिर कमान सौंपने से सियासी गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि पार्टी का नेतृत्व केवल बादल परिवार के पास ही रहेगा।

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गठबंधन के लिए बड़ा चेहरा हैं सुखबीर
किसान आंदोलन के कारण दो दशक से अधिक करीब 24 साल पुराने शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के गठबंधन को 2020 में तोड़ना पड़ा था। 2024 में भाजपा ने पंजाब में पहली बार अकेले लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन गठबंधन से अलग हुआ अकाली दल लगातार पंजाब में सियासी जमीन पर अपनी पकड़ छोड़ता जा रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा बेशक एक भी सीट नहीं जीत पाई, लेकिन उसका वोटिंग प्रतिशत अकाली दल से अधिक रहा। भाजपा पंजाब में लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर तीसरी सबसे बड़ी पार्टी तो कई सीटों पर कांग्रेस और आप के साथ सीधे टक्कर में दिखी। अकाली दल लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा उप चुनाव, पंचायत चुनाव और निकाय चुनाव में लगातार क्षेत्रीय पार्टी का टैग खोता नजर आ रहा है। ऐसे में सुखबीर के दोबारा नेतृत्व ने गठबंधन की आस को एक बड़े सियासी चेहरे की जरूरत को भी पूरा कर दिया है।

नई विचारधारा से अकाली दल का सामना
105 साल पुराना इतिहास संजोए बैठे शिरोमणि अकाली दल के सामने श्री अकाल तख्त साहिब और पंथक सियासत की उथल-पुथल के साथ नई विचारधारा का सामना करना भी बड़ी चुनौती होगी। खडूर साहिब से सांसद और खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह के नए अकाली दल वारिस पंजाब दे के नाम से बनी नई सियासी सोच और कट्टरपंथियों से पार पाना भविष्य में कई बड़े राजनीतिक फेरबदल को भी जन्म दे सकता है। इसके लिए भी सुखबीर को नई रणनीति के साथ सियासी मैदान में डटना पड़ेगा।

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