Rajasthan Education: राजस्थान की अनोखी पाठशाला! पढ़ने वाला कोई नहीं, फिर भी शिक्षक हाजिर; क्या है माजरा?
Rajasthan News: सिकराय उपखंड की प्राथमिक शाला मखखियों की ढाणी, गीजगढ में इस साल एक भी बच्चा पढ़ाई के लिए नामांकित नहीं हुआ, बावजूद इसके एक हेडमास्टर और एक शिक्षक पदस्थ हैं। इस स्थिति को लेकर लोगों ने सरकार और शिक्षा विभाग पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
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दौसा के सिकराय उपखंड की प्राथमिक शाला मखखियों की ढाणी, गीजगढ़ ऐसी सरकारी शाला है, जिसमें इस साल पढ़ने वाला एक भी बच्चा नहीं है, बावजूद इसके दो शिक्षक पदस्थ हैं। नया शिक्षा सत्र शुरू होने के चार महीने बाद भी स्कूल खाली पड़ा है। इस विद्यालय में पहली से पांचवीं कक्षा तक इस साल एक भी बच्चा नामांकित नहीं हुआ है। यहां एक हेडमास्टर और एक शिक्षक पदस्थ हैं, जो पूरे दिन कुर्सी पर बैठे हुए नजर आते हैं।
सरकारी स्कूल में बच्चों की अनुपस्थिति के बावजूद विभाग हर महीने शिक्षकों के वेतन, मध्याह्न भोजन, सहायिका और स्वीपर के वेतन सहित लाखों रुपये खर्च कर रहा है। ग्राम पंचायत गीजगढ़ के इस स्कूल में यह खर्च पूरी तरह बर्बाद हो रहा है, क्योंकि न तो बच्चे हैं और न ही शिक्षक बच्चों की संख्या बढ़ाने में रुचि दिखा रहे हैं।
जिले के अन्य स्कूलों में भी स्थिति खराब है। उदाहरण के लिए राजपुरा दौसा स्कूल में आठवीं तक 7 शिक्षक कार्यरत हैं, लेकिन बच्चों की संख्या केवल 10 है। यहां भी सरकार हर माह करीब 6 लाख रुपये खर्च कर रही है। हालांकि इस मामले में शिक्षकों की इच्छा शक्ति कमजोर है। बच्चों के लिए पर्याप्त समय होने के बावजूद स्कूल में पढ़ाई नहीं हो रही है। बच्चों के विकास के लिए बने खेल-खिलौने, किताबें और चार्ट बेकार हो रहे हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि कुछ साल पहले तक स्कूल में बच्चे पढ़ाई करने आते थे। वर्ष 2022 में 6 विद्यार्थी नामांकित थे, 2023 में यह संख्या 7 और 2024 में 2 हो गई। लेकिन जुलाई 2025 आते-आते विद्यालय में एक भी बच्चा नामांकित नहीं रहा। प्रधानाध्यापक महेश शर्मा ने बताया कि उन्होंने आसपास की ढाणियों में कई बार सर्वे किया और बच्चों को स्कूल से जोड़ने के प्रयास किए। लेकिन अभिभावकों ने अपने बच्चों को नजदीकी निजी और अन्य सरकारी विद्यालय में भेजा। पिछले वर्ष तक यहां दो बच्चे पढ़ते थे, लेकिन उनके भी नामांकन कटवा दिए गए। अभिभावकों का कहना था कि केवल दो बच्चों के कारण पढ़ाई का माहौल नहीं बन रहा था।
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ग्रामीणों और शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि जब विद्यालय में बच्चे ही नहीं हैं, तो शिक्षकों की नियुक्ति और सरकारी संसाधनों का खर्च व्यर्थ हो रहा है। शिक्षा विभाग पर भी सवाल उठ रहे हैं कि योजनाओं के बावजूद बच्चों को सरकारी विद्यालयों से क्यों नहीं जोड़ा जा सका। अब स्थिति यह है कि विद्यालय का भवन मौजूद है, शिक्षक उपस्थित रहते हैं, लेकिन विद्यार्थी नदारद हैं। यह हाल शिक्षा विभाग की नीतियों की पोल खोल रहा है, जिनका उद्देश्य हर बच्चे को सरकारी स्कूल से जोड़ना बताया जाता है। ब्लॉक शिक्षा अधिकारी ओमप्रकाश महावर ने बताया कि जीरो दर्ज संख्या के आवेदन पर प्रधानाध्यापक को दो बार नोटिस जारी किया गया है। सरकार के नियम के तहत, एक किमी के भीतर मौजूद इस स्कूल को मर्ज किया जाएगा।
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