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Jhalawar School Collapsed: 7 बच्चों की मौत के बाद हरकत में आया शिक्षा विभाग, स्कूल भवनों की जांच शुरू
न्यूज डेस्क, अमर उजाला,झालावाड़
Published by: आशुतोष प्रताप सिंह
Updated Sat, 26 Jul 2025 07:48 PM IST
सार
राजस्थान के झालावाड़ जिले में एक सरकारी स्कूल की जर्जर इमारत गिरने से सात बच्चों की मौत हो गई। इस दर्दनाक हादसे के बाद शिक्षा विभाग ने प्रदेशभर के ऐसे स्कूल भवनों की पहचान शुरू कर दी है जो जर्जर हैं।
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सरकारी स्कूलों की हालत बेहद खराब
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव के एक सरकारी स्कूल में दर्दनाक हादसे में सात मासूम बच्चों की मौत ने पूरे राजस्थान को झकझोर दिया है। स्कूल भवन के गिरने से हुई इस त्रासदी ने न सिर्फ सरकार और प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया है, बल्कि आम जनता के बीच भी भारी आक्रोश फैल गया है।
इस हृदयविदारक घटना के बाद शिक्षा विभाग हरकत में आया है। विभाग ने निर्देश जारी किए हैं कि राज्यभर के सभी स्कूलों में यदि कोई हिस्सा जर्जर हालत में है तो वहां बच्चों की पढ़ाई तत्काल बंद की जाए। साथ ही, प्रदेशभर में ऐसे स्कूल भवनों की सूची तैयार की जा रही है जो खतरनाक स्थिति में हैं और जहां बच्चों की जान जोखिम में है।
सवाल कायम – सात बच्चों की बलि के बाद क्यों जागा सिस्टम?
घटना के बाद उठ रहा सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर सात मासूमों की जान जाने के बाद ही सरकार और तंत्र को सरकारी स्कूलों की बदहाल हालत क्यों याद आई? क्या इससे पहले कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सकता था?
जयपुर के सरकारी स्कूल भी सवालों के घेरे में
राजधानी जयपुर में भी कई सरकारी स्कूल जर्जर भवनों में संचालित हो रहे हैं। सिंधी कैंप बस स्टैंड के सामने स्थित राजकीय सिंधी बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय की हालत इतनी खराब है कि उसकी छत से प्लास्टर झड़ रहा है, दीवारों में दरारें हैं और बरसात में पानी टपकता है। इसके बावजूद यहां कक्षा 1 से 5 तक के करीब 100 बच्चे उसी भवन में जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं। बताया जा रहा है कि यह स्कूल पिछले 70 वर्षों से किराये की एक करीब 100 साल पुरानी इमारत में चल रहा है। न तो नई बिल्डिंग का निर्माण हुआ और न ही मरम्मत के लिए कोई ठोस पहल की गई है।
ये भी पढ़ें: पीड़ित परिजनों से मिलीं वसुंधरा राजे, कहा- मैं भी एक मां हूं, आपका दर्द समझती हूं
सिस्टम की नींद किसी हादसे के बाद ही क्यों टूटती है?
इस घटना ने एक बार फिर सरकारी तंत्र की उदासीनता को उजागर कर दिया है। राज्य के कई सरकारी स्कूल या तो पूरी तरह जर्जर हैं या फिर किराये की असुरक्षित इमारतों में चल रहे हैं। फाइलें वर्षों तक सरकारी दफ्तरों में धूल फांकती हैं और बच्चे हर दिन जान हथेली पर लेकर शिक्षा प्राप्त करने को मजबूर हैं।
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इस हृदयविदारक घटना के बाद शिक्षा विभाग हरकत में आया है। विभाग ने निर्देश जारी किए हैं कि राज्यभर के सभी स्कूलों में यदि कोई हिस्सा जर्जर हालत में है तो वहां बच्चों की पढ़ाई तत्काल बंद की जाए। साथ ही, प्रदेशभर में ऐसे स्कूल भवनों की सूची तैयार की जा रही है जो खतरनाक स्थिति में हैं और जहां बच्चों की जान जोखिम में है।
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सवाल कायम – सात बच्चों की बलि के बाद क्यों जागा सिस्टम?
घटना के बाद उठ रहा सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर सात मासूमों की जान जाने के बाद ही सरकार और तंत्र को सरकारी स्कूलों की बदहाल हालत क्यों याद आई? क्या इससे पहले कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सकता था?
जयपुर के सरकारी स्कूल भी सवालों के घेरे में
राजधानी जयपुर में भी कई सरकारी स्कूल जर्जर भवनों में संचालित हो रहे हैं। सिंधी कैंप बस स्टैंड के सामने स्थित राजकीय सिंधी बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय की हालत इतनी खराब है कि उसकी छत से प्लास्टर झड़ रहा है, दीवारों में दरारें हैं और बरसात में पानी टपकता है। इसके बावजूद यहां कक्षा 1 से 5 तक के करीब 100 बच्चे उसी भवन में जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं। बताया जा रहा है कि यह स्कूल पिछले 70 वर्षों से किराये की एक करीब 100 साल पुरानी इमारत में चल रहा है। न तो नई बिल्डिंग का निर्माण हुआ और न ही मरम्मत के लिए कोई ठोस पहल की गई है।
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सिस्टम की नींद किसी हादसे के बाद ही क्यों टूटती है?
इस घटना ने एक बार फिर सरकारी तंत्र की उदासीनता को उजागर कर दिया है। राज्य के कई सरकारी स्कूल या तो पूरी तरह जर्जर हैं या फिर किराये की असुरक्षित इमारतों में चल रहे हैं। फाइलें वर्षों तक सरकारी दफ्तरों में धूल फांकती हैं और बच्चे हर दिन जान हथेली पर लेकर शिक्षा प्राप्त करने को मजबूर हैं।
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