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Rajasthan: रेगिस्तान के खेत उगल रहे बिजली, विंड टर्बाइन फार्म लगा कर आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ रहे कदम

Amit Sharma Digital अमित शर्मा
Updated Mon, 27 Nov 2023 04:42 PM IST
सार
ऊर्जा क्षेत्र में अधिक से अधिक आत्मनिर्भरता हासिल करना केंद्र सरकार का लक्ष्य रहा है। लिहाजा, ऊर्जा उत्पादन के विभिन्न माध्यमों को आजमाया जा रहा है। पवन ऊर्जा उत्पादन के मामले में अमेरिका, जर्मनी, स्पेन और चीन के बाद भारत दुनिया में पांचवें स्थान पर आ गया है...
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Rajasthan Desert fields are generating electricity through wind turbines
Rajasthan: Wind Turbine - फोटो : Amar Ujala/ Himanshu Bhatt

विस्तार
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राजस्थान का जैसलमेर इलाका रेतीली मिट्टी के लिए जाना जाता है। यहां कंटीली झाड़ियों के आलावा ज्यादा कुछ पैदा नहीं होता। लेकिन पवन ऊर्जा इस क्षेत्र के लोगों के लिए बड़ी उम्मीद बनकर उभरी है। जिन इलाकों में छोटी-छोटी झाड़ियों के अलावा ज्यादा कुछ पैदा नहीं होता था, अब वहां पवन ऊर्जा के बड़े-बड़े टर्बाइन खड़े हैं। इनसे बिजली बन रही है, जो राजस्थान और गुजरात के ग्रिड को भेजी जाती है। हालांकि, इसके बाद भी यहां के लोगों को इससे बहुत अधिक लाभ नहीं हो रहा है क्योंकि इन ग्रिड को लगाने के लिए जिस भारी रकम और तकनीकी की आवश्यकता होती है, उसे सामान्य आदमी वहन नहीं कर सकता। लिहाजा ये बड़े टर्बाइन यहां के लोगों के लिए एक फैक्ट्री जैसे साबित हो रहे हैं, जिनमें कुछ लोगों को रोजगार मिल जाता है, लेकिन इसका असली लाभ स्थानीय लोगों को नहीं, बल्कि दूर के लोगों को होता है।                

ऊर्जा क्षेत्र में अधिक से अधिक आत्मनिर्भरता हासिल करना केंद्र सरकार का लक्ष्य रहा है। लिहाजा, ऊर्जा उत्पादन के विभिन्न माध्यमों को आजमाया जा रहा है। पवन ऊर्जा उत्पादन के मामले में अमेरिका, जर्मनी, स्पेन और चीन के बाद भारत दुनिया में पांचवें स्थान पर आ गया है। देश में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल और राजस्थान पवन ऊर्जा उत्पादन की दृष्टि से प्रमुख राज्य बनकर उभरे हैं। इन राज्यों की बदौलत भारत पवन ऊर्जा के माध्यम से अपनी कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता का लगभग छह प्रतिशत पवन ऊर्जा के माध्यम से प्राप्त करने की स्थिति में आ गया है।

इस आंकड़े के बाद भी साल भर टर्बाइन को चलाने की क्षमता लायक हवा पाना एक कठिन कार्य है। यही कारण है कि कॉस्ट इफेक्टिव होने के बाद भी पवन ऊर्जा का विकास अपेक्षाकृत कम गति से हो पा रहा है। अब समुद्री क्षेत्र, जहां वर्ष के ज्यादातर समय में टर्बाइन को चलाने लायक वायु वेग प्राप्त किया जा सकता है, पवन ऊर्जा के ज्यादा अच्छे केंद्र बनकर उभरे हैं।

देश में ऑन शोर (On Shore) यानी भूमि पर लग सकने वाले विंड टर्बाइन को स्थापित करने से अधिक प्राथमिकता अब ऑफ शोर (Offshore) यानी समुद्र में जल के अंदर स्थापित होने वाले विंड टर्बाइन को दी जा रही है। अमेरिका-जर्मनी जैसे देशों ने पानी की सतह पर तैरने वाले विंड टर्बाइन को स्थापित करने में तकनीकी सहयोग देने की बात कही है। इससे भी देश में विंड उर्जा को नई ऊंचाई मिल सकती है।

राजस्थान के जैसलमेर में स्थापित विंड फ़ार्म में चलते टरबाइन
राजस्थान के जैसलमेर में स्थापित विंड फ़ार्म में चलते टरबाइन - फोटो : Amar Ujala

ऑफशोर को ज्यादा प्राथमिकता

सौर ऊर्जा के संदर्भ में भारत आज भी अपने 80 फीसदी उपकरण चीन से आयात करता है। केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि अगले पांच वर्षों में इस स्तर को 30 फीसदी तक लाया जाए। इसके लिए कंपनियों को विशेष आर्थिक छूट और तकनीकी सहयोग देकर सोलर पैनल और बैटरी उत्पादन की क्षमता बढ़ाई जा रही है। लेकिन पवन ऊर्जा के संदर्भ में यह स्थिति बेहतर है। इसके ज्यादातर उपकरण और मशीनें स्वदेशी तकनीक और स्वदेशी कंपनियों द्वारा निर्मित किया जा रहा है।

स्थायी आय का स्रोत

विंड टर्बाइन को लगाने में बेहद कम स्थान की आवश्यकता होती है। औसतन एक से दो महीने के अंदर ही किसी विंड फार्म को लगाकर इनसे ऊर्जा प्राप्त करना शुरू हो जाता है। एक बार स्थापित करने के बाद इसके संचालन में बेहद कम लागत आती है, लिहाजा यह एक स्थायी अच्छी आय का स्रोत बनकर उभरता है। यही कारण है कि कई बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में अपनी रूचि दिखा रही हैं और इस क्षेत्र का विस्तार हो रहा है।     

लेकिन किसानों को सीमित लाभ

ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा ने अमर उजाला को बताया कि विंड टर्बाइन की क्षमता के अनुसार इसे स्थापित करने में दो करोड़ रुपये प्रति टर्बाइन से आठ-दस करोड़ रुपये तक की लागत आती है। एक अच्छे विंड फार्म के लिए कई दर्जनों टर्बाइन को एक साथ लगाना पड़ता है जिसमें सैकड़ों करोड़ रुपये तक की लागत आती है। स्पष्ट है कि इतनी भारी पूंजी कोई किसान नहीं लगा सकता। सुजलोन, अदाणी और अन्य बड़ी कंपनियां इन विंड फार्म्स को स्थापित करती हैं। लाभ का बड़ा हिस्सा भी इन्हीं के हिस्से आता है। किसानों को भूमि के किराये के रूप में स्थाई आय प्राप्त होती है। ज्यादातर मामलों में भूमि भी राज्य सरकारों के द्वारा उपलब्ध कराई जाती है, इससे में यह मामला सरकार और कंपनियों के बीच का रह जाता है। सामान्य लोगों को इसमें कुछ रोजगार मिल जाता है। इस प्रकार बिजली क्षेत्र में लाभदायक होने के बाद भी रोजगार निर्माण के क्षेत्र में इनकी भूमिका सीमित है।

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