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Teachers Day 2025: भारत की महान महिलाएं, जिनके बिना अधूरी है शिक्षा और सशक्तिकरण की गाथा

लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला Published by: शिवानी अवस्थी Updated Fri, 05 Sep 2025 07:09 AM IST
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सार

Teachers Day 2025: टीचर्स डे 2025 पर आइए जानते हैं उन प्रेरणादायी महिलाओं की कहानी, जिन्होंने शिक्षा को महिलाओं की आजादी और सशक्तिकरण का सबसे बड़ा साधन बनाया।

 

Teachers Day 2025 Savitribai Phule To Begum Rokeya Top 5 Female Educators in Indian history
भारत की शिक्षिकाओं ने रचा इतिहास - फोटो : freepik
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विस्तार
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Teachers Day 2025: शिक्षा किसी भी व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास के साथ ही देश की उन्नति के लिए आवश्यक है। शिक्षा का जिम्मा छात्र और शिक्षक पर होता है। शिक्षक वह है जो समाज की नींव व प्रगति की दिशा दिखाता है। शिक्षक केवल किताबी ज्ञान नहीं देता है, बल्कि वास्तविक जीवन जीने के गुर सिखाता है। शिक्षा का अधिक सभी को है, चाहे वह लड़का हो या लड़की, गरीब हो या अमीर। हालांकि एक दौर ऐसा भी था, जब महिलाओं के पढ़ाई करने पर प्रतिबंध था। वह शिक्षा से वंचित थीं। लेकिन कई महिलाओं के ऐतिहासिक कदम ने न केवल आज की बेटियों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिलाया, बल्कि दूसरों को शिक्षित करने की क्षमता भी दर्शायी। 

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भारत में महिला शिक्षिकाओं का योगदान इस दिशा में अतुलनीय रहा है। सावित्रीबाई फुले ने जब लड़कियों को शिक्षा देने का बीड़ा उठाया, तब समाज ने उनका विरोध किया। लेकिन आज वही बीज, लाखों महिला शिक्षिकाओं के रूप में पनप रहा है। टीचर्स डे 2025 पर आइए जानते हैं उन प्रेरणादायी महिलाओं की कहानी, जिन्होंने शिक्षा को महिलाओं की आजादी और सशक्तिकरण का सबसे बड़ा साधन बनाया।
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भारत की पहली महिला टीचर सावित्रीबाई फुले

सावित्रीबाई फुले को भारत की पहली महिला शिक्षिका माना जाता है। उन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर 1848 में पुणे में पहला बालिका विद्यालय खोला। उन्होंने समाज की रूढ़िवादी सोच और तानों को सहकर महिलाओं और दलितों को शिक्षा देने का साहस दिखाया। विवाह से पहले वह स्कूल तक नहीं गई थीं, लेकिन शादी के बाद उन्होंने खुद शिक्षा हासिल की और बालिकाओं के लिए पहले स्कूल की भी स्थापना की। 


रुकैया सखावत हुसैन ने मुस्लिम बेटियों को दिलाया शिक्षा का अधिकार

रुकैया सखावत नारीवादी विचारक, कथाकार, उपन्यासकार और कवि थीं। उन्होंने बंगाल में मुसलमान लड़कियों की पढ़ाई के लिए मुहिम चलाई थी। इसके अलावा मुसलमान महिलाओं का संगठन गठित किया था। महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए उन्होंने लड़कियों की शिक्षा का सपना देखा था। 1910 में रुकैया सखावत ने भागलपुर में लड़कियों स्कूल खोला और 1911 में कोलकाता में स्कूल की शुरुआत की। बंगाल में मुसलमान लड़कियों की शिक्षा के लिए ये दोनों स्कूल वरदान साबित हुए। रुकैया द्वारा स्थापित सखावत मेमोरियल गवर्नमेंट गर्ल्स हाई स्कूल आज भी कोलकाता में चलता है। हालांकि उस दौर में इस स्कूल को चलाने के लिए रुकैया को काफी विरोध का सामना करना पड़ा। 


रमाबाई रणाडे का शिक्षा सुधार आंदोलन

रमाबाई रानाडे एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता और 20वीं सदी के शुरुआती दौर की पहली महिला अधिकार कार्यकर्ताओं में से एक थीं। महिला शिक्षा को लेकर रमाबाई रणाडे ने भी गहरा प्रभाव डाला। उन्होंने लड़कियों के लिए नाइट स्कूल और प्रशिक्षण केंद्र खोले।उनकी कोशिशों से महिला साक्षरता को नया आयाम मिला।


आज की शिक्षिकाओं का प्रयास


आज की शिक्षिकाओं की बात करें तो नैनीताल जिला शिक्षा व प्रशिक्षण संस्थान में खंड शिक्षा अधिकार और प्राचार्य रहीं गीतिका जोशी ने एक गरीब जरूरतमंद छात्रा की पढ़ाई की फीस दी। उसके लिए घर से खुद टिफिन बनाकर लातीं, ताकि बच्ची का भविष्य सुधर सके। आज उनके प्रयास से छात्रा अपने पैरों पर खड़ी होकर निजी क्षेत्र में नौकरी कर रही है।

बिना किसी बाधा के बच्चों तक शिक्षा पहुंचाने का काम ऐसी ही कई अन्य शिक्षिकाएं भी कर रही हैं। इसमें दिल्ली विश्वविद्यालय की असिस्टेंट प्रोफेसर सीमा भारती झा, दिल्ली के माउंट आबू पब्लिक स्कूल की शिक्षिका शिप्रा गोम्बर और चंदौली के सम्मान (इंटीग्रेटेड इंस्टीट्यूट फॉर डिसेबल्ड) की शिक्षिका पुष्पा कुशवाहा जैसी शिक्षिकाओं का नाम शामिल कर सकते हैं। ये सभी किसी न किसी तरह से छात्रों के लिए विशेष प्रयास कर रही हैं ताकि हर बच्चा बिना किसी दबाव, तनाव या समस्या के शिक्षित हो सके।

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