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तुमसे है उजाला: आगरा की शशि शर्मा की प्रेरक कहानी, घर की जिम्मेदारियों के बीच कैसे बनीं सफल बुटीक ओनर
लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: शिवानी अवस्थी
Updated Tue, 09 Sep 2025 03:52 PM IST
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सार
एक समय था, जब शशि शर्मा आगरा की एक साधारण गृहिणी थीं। वह महिलाओं के सूट सिलतीं और उस छोटी-सी आमदनी से खुश रहतीं। लेकिन किस्मत उन्हें नोएडा जैसे बड़े शहर ले आई और वह एक सफल बुटीक ओनर बन गईं, जिसमें उनका साथ दिया उनकी होनहार बेटियों ने।

शशि शर्मा
- फोटो : Shashi Sharma
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विस्तार
Shashi Sharma: बचपन खूब सपने देखता है। हर चीज में आनंद खोजता है, उड़ना चाहता है, कुछ नया बनना चाहता है। उसे सीमाओं का ज्ञान नहीं होता, लेकिन समाज धीरे-धीरे उन सीमाओं का बोध करा देता है। उत्तर प्रदेश के आगरा में जन्मीं शशि शर्मा भी ऐसे ही सपनों से भरी थीं। उनका एक ही ख्वाब था- आत्मनिर्भर बनना।

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आत्मनिर्भर बनने का सपना
शशि ने मन लगाकर पढ़ाई की और अपनी ग्रेजुएशन पूरी की। मन में उत्साह था कि अब कोई काम शुरू करेंगी और आत्मनिर्भर बनेंगी। शशि बताती हैं कि “ग्रेजुएशन पूरा होते ही पिता जी ने आगरा के एक बड़े परिवार में मेरा रिश्ता तय कर दिया। वह एक संयुक्त परिवार था और अपना एक पारिवारिक बिजनेस चलाता था। सब कुछ सामान्य और व्यवस्थित लग रहा था। सभी ने मुझे समझाया भी कि इससे अच्छा परिवार नहीं मिलेगा, मगर मेरे मन में एक खालीपन था। मैं कुछ करना चाहती थी, खुद के लिए, आत्मसंतोष के लिए। लेकिन जैसा मैंने सोचा था, वैसा कुछ नहीं हुआ।”
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शादी के बाद परिवार की जिम्मेदारी
शादी हुई और शशि नए परिवार की जिम्मेदारियों और संघर्षों को समझने में लग गईं। इसी बीच उनकी पहली बेटी हुई और दो साल बाद दूसरी बेटी। उनका पूरा दिन घर, बच्चों और परिवार की जिम्मेदारियां निभाने में बीतने लगा। शशि बताती हैं, “कई बार तो मैं कई-कई रातों तक सो भी नहीं पाती थी। मन में हमेशा कुछ करने की चाह लगातार बनी रहती और रात को वही खलिश मुझे चुभती। आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी। मेरे पति की आमदनी से बच्चों की पढ़ाई और घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था, जो मुझे हमेशा परेशान करता रहता।”
खाली समय में हुनर से सजाया घर
शशि को बचपन से भी सिलाई-कढ़ाई का शौक था। वह खाली समय में अपने इस हुनर से घर को सजातीं। एक दिन शशि के पड़ोस में रहने वाली उनकी एक सहेली ने उनसे कहा, “तुम्हारी सिलाई तो बहुत अच्छी है। तुम लोगों के कपड़े सिलना क्यों नहीं शुरू करतीं?” बस, यही एक वाक्य था, जिसने न सिर्फ शशि को एक नया रास्ता दिखाया, बल्कि उस सहेली ने उन्हें अपने कुछ कपड़े भी सिलने के लिए दिए।
शशि बताती हैं, “मैंने उसे बेहद ध्यान से और नई डिजाइन के साथ सिला, जो उसे बहुत पसंद आए। इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ गया। धीरे-धीरे आस-पास की अन्य महिलाएं भी मुझसे कपड़े सिलवाने लगीं। मैंने कई कुशन कवर और पैचवर्क की बेडशीट्स भी बनाईं, जो लोगों को खूब पसंद आईं।”
रात-रात भर की सिलाई
आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता के पंखों को अपने अगल-बगल पाकर शशि बहुत खुश थीं। इसलिए वह दिन में घर के काम करतीं और रात-रात भर सिलाई करतीं। कई बार तबीयत खराब हो जाती, लेकिन हार नहीं मानतीं और अपने काम को पूरा करके ही मशीन के सामने से उठतीं। इस दौरान शशि ने कुछ लड़कियों को सिलाई भी सिखाना शुरू किया। हालांकि कुछ ही वर्षों बाद उनके परिवार में बंटवारा हो गया और वह अपनी बेटियों के साथ जीवन की नई शुरुआत करने आगरा से नोएडा आ गईं। शशि ने यहां नए सिरे से अपने बुटीक की शुरुआत की।
शशि कहती हैं, “उस समय मेरी प्राथमिकता केवल अपने बच्चों की पढ़ाई और उनके भविष्य को संवारना था। शायद यह उसी मेहनत का फल है कि आज मेरी बड़ी बेटी इंटीरियर डिजाइनर है और छोटी बेटी टेक्सटाइल डिजाइनिंग में काम कर रही है। मैंने बिना किसी बड़ी पूंजी, ब्रांडिंग या संसाधनों के इस सफर की शुरुआत की थी। आज भी मैं खुद कपड़े डिजाइन करती हूं और ग्राहकों से जुड़ती हूं। मेरा लक्ष्य है कि मैं अपने बुटीक को एक ऐसे मुकाम पर ले जाऊं, जहां अन्य महिलाएं भी मुझसे प्रेरणा लें और आत्मनिर्भर बन सकें।”
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