विश्लेषण: हिमाचल में लंबे वक्त से मंडी संसदीय सीट रही है हाईप्रोफाइल, जानें कब-कब कौन बने सांसद
स्वतंत्र भारत की पहली महिला कैबिनेट मंत्री रहीं राजकुमारी अमृत कौर भी वर्ष 1951 में मंडी सीट से सांसद बनी थीं। इस बार यह मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का गृह संसदीय क्षेत्र होने से हाईप्रोफाइल हो गया है। उपचुनाव में सीएम जयराम ठाकुर की प्रतिष्ठा की यहां कांग्रेस के दिग्गज नेता स्वर्गीय वीरभद्र सिंह की साख का झंडा थामे उनकी पूर्व सांसद पत्नी प्रतिभा सिंह से लड़ाई है।

विस्तार
हिमाचल प्रदेश में लंबे वक्त से मंडी संसदीय सीट हाईप्रोफाइल रही है। यह पूर्व केंद्रीय संचार राज्य मंत्री पंडित सुखराम और पूर्व केंद्रीय इस्पात मंत्री एवं छह बार सीएम रहे वीरभद्र सिंह की परंपरागत लोकसभा सीट रह चुकी है। स्वतंत्र भारत की पहली महिला कैबिनेट मंत्री रहीं राजकुमारी अमृत कौर भी वर्ष 1951 में इस सीट से सांसद बनी थीं। इस बार यह मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का गृह संसदीय क्षेत्र होने से हाईप्रोफाइल हो गया है। उपचुनाव में सीएम जयराम ठाकुर की प्रतिष्ठा की यहां कांग्रेस के दिग्गज नेता स्वर्गीय वीरभद्र सिंह की साख का झंडा थामे उनकी पूर्व सांसद पत्नी प्रतिभा सिंह से लड़ाई है। भाजपा के पूर्व सांसद रामस्वरूप शर्मा के अकस्मात देहांत के बाद खाली हुई इस सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं, जिस पर सबकी नजरें गड़ी हैं। अभी तक चुने सांसदों पर दृष्टिपात करें तो इस सीट पर राजपूत या ब्राह्मणों का ही वर्चस्व रहा है।

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राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार मंडी लोकसभा सीट के यह उपचुनाव इस बार भी सामान्य नहीं हैं। ये भाजपा और कांग्रेस दोनों के भविष्य की सियासत का रुख तय करने जा रहे हैं। अनुराग ठाकुर को छोड़कर अन्य बड़े केंद्रीय नेताओं के स्टार प्रचारकों की सूची में न होने की वजह से इस सीट को सीएम जयराम ठाकुर की हर हाल में जीतना चुनौती है। यहां चूकना उनके मिशन रिपीट की दिशा में भी सही संकेत नहीं होगा। दूसरी ओर, कांग्रेस के कद्दावर नेता स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के न रहने के बाद अब यह सीट उनके वारिसों के भविष्य की रूपरेखा तय करेगी। वीरभद्र सिंह की पत्नी पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह भी अगर चूक जाती हैं तो इससे वीरभद्र खेमे के राजनीतिक भविष्य पर भी खतरे की घंटी बजेगी। ऐेसे में इस दफा भी दोनों हाईप्रोफाइल नेताओं के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा की जंग है।
कब-कब कौन सांसद बने मंडी लोकसभा सीट से
1951 मेें कांग्रेस की राजकुमारी अमृत कौर, 1957 में कांग्र्रेस के जोगिंद्र सेन, 1962 में कांग्रेस के ललित सेन, 1967 में कांग्रेस के एल सेन, 1971 में कांग्रेस के वीरभद्र सिंह, 1977 में बीएलडी के गंगा सिंह, 1980 में कांग्रेस के वीरभद्र सिंह, 1984 में कांग्रेस के पंडित सुखराम, 1989 में भाजपा के महेश्वर सिंह, 1991 में कांग्रेस के पंडित सुखराम, 1996 में कांग्रेस के सुखराम, 1998 में भाजपा के महेश्वर सिंह, 1999 में भी भाजपा के महेश्वर सिंह, 2004 में कांग्रेस की प्रतिभा सिंह, 2009 में कांग्रेस के वीरभद्र सिंह, 2014 में भाजपा के रामस्वरूप शर्मा और 2019 में भी दूसरी बार भाजपा के प्रत्याशी रामस्वरूप शर्मा सांसद बने।
पंडित सुखराम की खामोशी भी बनी पहेली
इस सीट से कांग्रेस के बड़े नेता रहे पूर्व केंद्रीय संचार राज्य मंत्री पंडित सुखराम की खामोशी भी सबके लिए पहेली बनी हुई है। पंडित सुखराम और उनके पोते आश्रय शर्मा कांग्रेस में हैं। पंडित सुखराम के बेटे अनिल शर्मा भाजपा विधायक हैं, वह दोबारा मंत्री पद चाह रहे हैं। आश्रय शर्मा पिछली बार यहां से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार थे। मंझधार में फंसी सुखराम परिवार की किश्ती किधर जाएगी, इस बारे में अभी तक कुछ साफ नहीं है।
भौगोलिक दृष्टि से प्रदेश में सबसे बड़ा है मंडी संसदीय क्षेत्र
मंडी संसदीय क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से भी सबसे बड़ा है। इसमें मंडी जिले के नौ विधानसभा क्षेत्र मंडी सदर, सराज, नाचन, सरकाघाट, द्रंग, बल्ह, सुंदरनगर, जोगिंद्रनगर और करसोग हैं। कुल्लू जिले के चार कुल्लू, मनाली, बंजार और आनी विधानसभा क्षेत्र आते हैं। जिला चंबा का भरमौर और जिला शिमला का रामपुर हलका भी इसमें है। किन्नौर और लाहौल स्पीति तो पूरे-पूरे जिले इसके अंतर्गत आते हैं।