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Amar Ujala Samwad: अमर उजाला संवाद हरियाणा के मंच पर देवव्रत महेश रेखे ने बताए अपने अनुभव
धर्म डेस्क, अमर उजाला
Published by: ज्योति मेहरा
Updated Wed, 17 Dec 2025 12:31 PM IST
सार
19 वर्षीय देवव्रत महेश रेखे ने अमर उजाला संवाद हरियाणा के मंच पर अपने विचार रखें और पारायण के दौरान की अनुभूति को साझा किया।
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देवव्रत महेश रेखे
- फोटो : Amar Ujala
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विस्तार
Amar Ujala Samwad Haryana: बिना किसी किताब को देखे, बिना रुके, लगातार 50 दिनों तक हजारों कठिन संस्कृत मंत्रों का शुद्ध उच्चारण करने वाले देवव्रत महेश रेखे और वेदमूर्ति देवव्रत महेश रेखे अमर उजाला संवाद हरियाणा के मंच पर अपने विचार रखें। 19 वर्षीय देवव्रत महेश रेखे ने अमर उजाला को धन्यवाद देते हुए कहा कि वास्तव में यह आमंत्रण मुझे नहीं, हमारी गुरु परंपरा को मिला है। इसी परंपरा के कारण मैं यहा हूं। उन्होने बताया कि वह आठ साल की आयु में जनेऊ संस्कार के बाद से पिताजी की आज्ञा से वेद कार्य में आगे चलते रहे। उन्होंने पिताजी के पास ही अध्ययन किया।
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दंडक्रम चुनने का विचार कैसे आया?
दंडक्रम चुनने को लेकर किए गए सवाल पर देवव्रत ने कहा पिताजी ने 2002 में काशी में घनपारण किया था, तब उन्होंने बोला कि 'मैंने घनपारण किया है, तुम उससे आगे कुछ करो'। उन्हीं की कृपा से यह सब साध्य हुआ।
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पिता महेश रेखे ने कहा 'अवर्णनीय आनंद'
देवव्रत के पिता महेश रेखे ने कहा कि व्यक्ति ने हर मुकाम, हर स्थान पर अपनी विजय की कामना करनी चाहिए। यह पुरुषार्थ भी है, लेकिन दो जगह पर अपनी पराजय होनी चाहिए। यह दो स्थान हैं- एक शिष्य और दूसरा पुत्र। भगवान की कृपा से मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ कि यह मेरा पुत्र भी है और शिष्य भी है। कोई भी व्यक्ति किसी का मार्गदर्शन करे और वह अपने से अच्छा काम करे तो सबसे ज्यादा आनंद होता है, जो अवर्णनीय है।
देवव्रत महेश रेखे ने प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री जी द्वारा दी गई बधाई को लेकर भी अपना आभार व्यक्त किया। साथ ही कहा आज हमारे सनातन धर्म में उत्साह का वातावरण निर्माण हुआ है। जो युवा पीढ़ी इस परंपरा में है, उनके मन में भी विचार उत्पन्न हुआ है कि हमें भी अपनी संस्कृति से जुड़ना चाहिए।
देवव्रत महेश रेखे का अगला लक्ष्य
पारायण के दौरान की अनुभूति को लेकर देवव्रत ने कहा कि 50 दिनों की उपासना के बाद स्वयं मुझे एहसास हुआ कि मेरे भीतर स्वयं भगवान बोल रहे हैं। यह केवल ईश्वर की कृपा के कारण संभव हो पाया है। बातचीत में अगले लक्ष्य को लेकर किए गए सवाल पह देवव्रत ने कहा कि, अगला लक्ष्य निर्धारित तो नहीं हैं परंतु मेरा अध्ययन जारी रहेगा। मेरे पिताजी जो कहेंगे बस उसी राह पर आगे बढ़ते रहना है। अभी और अध्ययन करना बाकी है और भी कई ऐसे ग्रंथ हैं, जिनका पारायण हुआ नहीं है, जिनका कोई अध्ययन नहीं करता। पिताजी ने आज्ञा की है कि उनका भी अध्ययन करना है।