Amar Ujala Samwad: अमर उजाला संवाद हरियाणा के मंच पर सुधांशु जी महाराज ने दिखाई सार्थक जीवन की राह
अमर उजाला संवाद हरियाणा के मंच पर विश्व जागृति मिशन के संस्थापक सुधांशु जी महाराज ने सार्थक जीवन की राह पर अपने अनमोल वचन प्रस्तुत किए। विशेष रूप से श्रीमद्भगवद् गीता पर उनके प्रवचन अत्यंत प्रभावशाली रहे।
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अमर उजाला संवाद हरियाणा के मंच पर विश्व जागृति मिशन के संस्थापक सुधांशु जी महाराज ने लोगों को आध्यात्म की ओर बढ़ने का संदेश दिया। आध्यात्मिक गुरु सुधांशु जी महाराज ने अपने लेखन और प्रवचनों के माध्यम से भारतीय आध्यात्मिक परंपरा के शाश्वत ज्ञान को समकालीन जीवन की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रस्तुत किया है।
मंच पर उन्होंने सार्थक जीवन की राह पर अपने अनमोल वचन प्रस्तुत किए। विशेष रूप से श्रीमद्भगवद् गीता पर उनके प्रवचन अत्यंत प्रभावशाली रहा। इन व्याख्याओं में वे गीता के दर्शन को दैनिक जीवन में अपनाने के व्यावहारिक मार्ग सुझाए। उन्होंने कहा 'जिस देश में शांति होती है, वो देश प्रगति की ओर जाता है।' इसके अलावा उन्होने गीता के कुछ श्लोकों का अनुवाद करते हुए लोगों को आत्म-अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा और आंतरिक शांति का संदेश दिया।
'उद्वेवकारी वाणी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए'
विश्व जागृति मिशन के संस्थापक सुधांशु जी महाराज ने मंच पर गीता के अध्याय 17 ,श्लोक 15 'अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत् । स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते ॥ का उच्चारण करते हुए कहा, कि उद्वेवकारी वाणी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। कोई ऐसा प्रयोग नहीं होना चाहिए जिसमें सच बोलने में परेशानी हो। योग काफी महत्वपूर्ण है। कुछ भी करना पड़े कर्म को इतनी कुशलता से करो जो तुम्हारा हर कर्म तुम्हारा हस्ताक्षर बन जाए। मन की प्रसन्नता जरूरी है। अपने ऊपर नियंत्रण जरूरी है। गति के साथ नियंत्रण जरूरी है, नहीं तो एक्सीडेंट का खतरा रहता है। प्रगति के साथ नियंत्रण की शक्ति होनी चाहिए। बोलते समय भी ध्यान रखना जरूरी है कि आपकी वाणी मर्यादित हो।
गीता के अध्याय 17, श्लोक 16 मनः प्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः। भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते ।। का अनुवाद करते हुए उन्होंने कहा, मन का शांत होना, दयालु होना, चुप रहना, अपने आपको वश में रखना, जीवन के उद्देश्य को शुद्ध (पवित्र) रखना सभी मन सम्बन्धी तप कहे जाते हैं।
मनुष्य को मनुष्य बने रहने का प्रयास करें
सुधांशु जी महाराज ने कहा कि वैदिक ज्ञान के अनुसार मनुष्य को मनुष्य बने रहने के लिए प्रयास करना चाहिए। हम अंदर से जैसे हैं हमें वैसे ही बाहर से हमें आचरण करना चाहिए। इससे बड़ी सुंदरता दुनिया में नहीं हो सकती। वैदिक संदेश में है कि मनुष्य तू है तो मनुष्य बना रहे। सांप नहीं बनना, बिच्छू नहीं बनना। तुम्हारा एनिमल ब्रेन तुम्हारे पास है उसे सुला देना और देवता वाले ज्ञान को जगा देना।