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जब उसने पूछा स्त्री-सौंदर्य को किस दृष्टि से देखना चाहिए?
शिवकुमार गोयल
Updated Wed, 29 Jan 2014 11:41 AM IST
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आम्रपाली अपूर्व सुंदरी, कुशल गायिका और नर्तकी थी। राजकुमार बिंबिसार से उसने प्रेम विवाह किया था। मगर राजमहल में उसे अपमान के घूंट पीने पड़े। वह वैशाली नगर के बाहर एक आम्र वन में अपने पुत्र जीवक के साथ रहकर संगीत साधना में लीन रहा करती थी।
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एक दिन जीवक के साथ वह भगवान बुद्ध के दर्शन करने के लिए पहुंची। उसने कहा, गुरुवर, मेरे पास अपार धन-संपदा है, फिर भी मेरा जीवन अतृप्त है।
बुद्ध ने कहा, आम्रपाली, सुंदरता अन्य सांसारिक वस्तुओं की तरह ही आती है और चली जाती है। धन-संपदा और ख्याति भी क्षणभंगुर हैं। ध्यान-साधना के माध्यम से जो आत्मिक संतोष मिलता है, वही शाश्वत रहता है। इस जीवन के जो क्षण शेष रह गए हैं, उन्हें साधना, ध्यान, प्राणायाम और संयम पूर्ण जीवन में लगाओ, जीवन सहज ही सार्थक हो जाएगा।
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बुद्ध के चंद शब्दों से आम्रपाली को प्रेरणा मिली। उस समय कालदुयी और सारिपुत्र भी वहां उपस्थित थे। सारिपुत्र ने बुद्ध से पूछा, स्त्री-सौंदर्य को किस दृष्टि से देखना चाहिए?
बुद्ध ने कहा, सुंदरता और कुरूपता, दोनों का सृजन पांच तत्वों के संयोग से होता है। मुक्त पुरुष न तो शारीरिक सौंदर्य से सम्मोहित होता है और न ही कुरूपता से विरक्त। एक ही सौंदर्य शाश्वत है, और वह है, करुणामय हृदय। करुणा का अर्थ है, अहेतुक प्रेम यानी प्रेम में किसी प्रकार की अपेक्षा न करना। बुद्ध की बात सुनकर सारिपुत्र की जिज्ञासा शांत हो गई।