रमजान का पाक महीना पूरा होने के साथ और अंतिम रोजे का चांद के दीदार होने पर ईद मनाई जाती है। इस बार ईद 5 जून को मनाई जाएगी। मुस्लिम समुदाय ईद को बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं। रमजान के महीने में ही पाक कुरान इस धरती पर आई थी। इसके अलावा कई लोगों के मन में यह ख्याल आता है कि ईद क्यों मनाई जाती है, रमजान के महीने में रोजे क्यों रखे जाते हैं, क्यों लोग चांद देखकर ही ईद की घोषणा करते हैं? आइए जानते हैं इन सवालों के जवाब...
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Happy Eid 2019: पहली बार कब मनाई गई ईद, चांद और ईद का क्या है कनेक्शन
धर्म डेस्क, अमर उजाला
Published by: विनोद शुक्ला
Updated Wed, 05 Jun 2019 10:31 AM IST
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फाइल फोटो- eid
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क्यों मनाई जाती है ईद
मुस्लिमों के लिए दो ही दिन विशेष खुशी वाले होते हैं ईद- उल- फितर और ईद- उल- अजहा। रमजान में पूरे महीने रोजे रखने के बाद इसकी समाप्ति के रूप में ईद मनाई जाती है। ईद अल्लाह से ईनाम लेने का दिन है। ईद मनाने से पहले एक परंपरा निभाई जाती है जिसे फितरा कहा जाता है, इसके तहत ईद मनाने वाले हर मुस्लिम को अपने पास से गरीबों को कुछ अनाज देना जरूरी होता है जिससे वह भी खुशी से ईद मना सके।
मुस्लिमों के लिए दो ही दिन विशेष खुशी वाले होते हैं ईद- उल- फितर और ईद- उल- अजहा। रमजान में पूरे महीने रोजे रखने के बाद इसकी समाप्ति के रूप में ईद मनाई जाती है। ईद अल्लाह से ईनाम लेने का दिन है। ईद मनाने से पहले एक परंपरा निभाई जाती है जिसे फितरा कहा जाता है, इसके तहत ईद मनाने वाले हर मुस्लिम को अपने पास से गरीबों को कुछ अनाज देना जरूरी होता है जिससे वह भी खुशी से ईद मना सके।
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कब मनाई गई पहली ईद
आखिरकार इस दुनिया में पहली ईद कब मनाई गई। इस्लाम में माना जाता है कि पहली ईद हजरत मोहम्मद पैगंबर ने 624 ईस्वी में जंग-ए-बदर के बाद मनाई थी। यह कुछ-कुछ हिंदूओं के दीपावली की तरह है जब भगवान राम के लंका विजय के बाद पहली बार दीपोत्सव की शुरूआत हुई थी, जो बाद में दीपावली के रूप में मनाया जाने लगा।
आखिरकार इस दुनिया में पहली ईद कब मनाई गई। इस्लाम में माना जाता है कि पहली ईद हजरत मोहम्मद पैगंबर ने 624 ईस्वी में जंग-ए-बदर के बाद मनाई थी। यह कुछ-कुछ हिंदूओं के दीपावली की तरह है जब भगवान राम के लंका विजय के बाद पहली बार दीपोत्सव की शुरूआत हुई थी, जो बाद में दीपावली के रूप में मनाया जाने लगा।
फाइल फोटो- eid
चांद देखकर ही क्यों मनाते हैं ईद
रमजान के महीने के बाद चांद देखकर ही ईद की शुरूआत होती है। असल में त्यौहारों में चांद का बड़ा महत्व है, हिंदुओं में भी कई त्यौहार चांद देखकर ही मनाए जाते हैं। ईद का चांद से बड़ा गहरा संबंध है। ईद उल फितर हिजरी कैलेंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाई जाती है और इस कलेंडर में नया महीना चांद देखकर ही शुरू होता है। ईद भी रमजान के बाद नए महीने की शुरूआत के रूप में मनाई जाती है जिसे शव्वाल कहा जाता है। जब तक चांद न दिखे रमजान खत्म नहीं होता और शव्वाल शुरू नहीं हो सकता। वैसे इसका संबंध एक ऐतिहासिक घटना से भी है। कहा जाता है कि इसी दिन हजरत मुहम्मद ने मक्का शहर से मदीना के लिए कूच किया था।
रमजान के महीने के बाद चांद देखकर ही ईद की शुरूआत होती है। असल में त्यौहारों में चांद का बड़ा महत्व है, हिंदुओं में भी कई त्यौहार चांद देखकर ही मनाए जाते हैं। ईद का चांद से बड़ा गहरा संबंध है। ईद उल फितर हिजरी कैलेंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाई जाती है और इस कलेंडर में नया महीना चांद देखकर ही शुरू होता है। ईद भी रमजान के बाद नए महीने की शुरूआत के रूप में मनाई जाती है जिसे शव्वाल कहा जाता है। जब तक चांद न दिखे रमजान खत्म नहीं होता और शव्वाल शुरू नहीं हो सकता। वैसे इसका संबंध एक ऐतिहासिक घटना से भी है। कहा जाता है कि इसी दिन हजरत मुहम्मद ने मक्का शहर से मदीना के लिए कूच किया था।
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ईद पर क्या हैं जरूरी काम
ईद संयम और शांति का त्यौहार है, लेकिन कुछ नियम भी हैं जिनका पालन इस दिन करना जरूरी होता है। मसलन ईद वाले दिन की शुरूआत सुबह जल्दी उठकर फजर की नमाज अदा करने से होती है। उसके बाद खुद की सफाई जैसे, गुस्ल और मिस्वाक करना। इसके बाद साफ कपड़े पहनना सबसे साफ फिर उन पर इत्र लगाना और कुछ खाकर ईदगाह जाना। नमाज से पहले फिकरा करना भी जरूरी होता है। ईद की नमाज खुले में ही अदा की जाती है। सबसे खास बात ये है कि ईदगाह आने और जाने के लिए अलग अलग रास्तों का इस्तेमाल किया जाता है।
ईद संयम और शांति का त्यौहार है, लेकिन कुछ नियम भी हैं जिनका पालन इस दिन करना जरूरी होता है। मसलन ईद वाले दिन की शुरूआत सुबह जल्दी उठकर फजर की नमाज अदा करने से होती है। उसके बाद खुद की सफाई जैसे, गुस्ल और मिस्वाक करना। इसके बाद साफ कपड़े पहनना सबसे साफ फिर उन पर इत्र लगाना और कुछ खाकर ईदगाह जाना। नमाज से पहले फिकरा करना भी जरूरी होता है। ईद की नमाज खुले में ही अदा की जाती है। सबसे खास बात ये है कि ईदगाह आने और जाने के लिए अलग अलग रास्तों का इस्तेमाल किया जाता है।

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