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Esha Singh: 18 की ईशा ने एक दिन में दो पदक जीतकर किया कमाल, 13 वर्ष की उम्र में ही बनीं थीं राष्ट्रीय चैंपियन
स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, हांगझोऊ
Published by: स्वप्निल शशांक
Updated Wed, 27 Sep 2023 05:29 PM IST
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सार
Who is Esha Singh: ईशा ने पिछले कुछ वर्षों में शूटिंग में काफी अच्छा नाम बना लिया है। ईशा के पिता सचिन सिंह मोटरस्पोर्ट्स में नेशनल रैली चैंपियन रह चुके हैं। इसलिए ईशा में एक एथलीट वाले गुण उनके पिता से ही मिले हैं।

ईशा सिंह
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
हांगझोऊ एशियाई खेलों में भारतीय शूटर्स यानी निशानेबाजों का जलवा जारी है। बुधवार को एक के बाद एक कई शूटर्स ने भारत के लिए पदक जीते। इनमें भारत की बेटियां भी शामिल हैं। देश के लिए स्वर्ण जीतने वालों में 18 साल की ईशा सिंह भी शामिल हैं। ईशा ने न सिर्फ 25 मीटर पिस्ट महिला टीम इवेंट में स्वर्ण जीता, बल्कि महिला 25 मीटर पिस्टल स्पर्धा में रजत अपने नाम किया।
ईशा ने एक दिन में दो पदक जीतकर कमाल कर दिया। इस शूटर ने बचपन में काफी संघर्ष किया है और काफी मेहनत के बाद इस मुकाम तक पहुंची हैं। ईशा फिलहाल 18 साल की हैं और 13 वर्ष की उम्र में ही वह राष्ट्रीय चैंपियन बन गई थीं और कई धुरंधर को पीछे छोड़ा था। आइए उनकी कहानी जानते हैं...

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नौ वर्ष की उम्र में पहली बार पकड़ी बंदूक

ईशा सिंह
- फोटो : सोशल मीडिया
ईशा ने पिछले कुछ वर्षों में शूटिंग में काफी अच्छा नाम बना लिया है। ईशा के पिता सचिन सिंह मोटरस्पोर्ट्स में नेशनल रैली चैंपियन रह चुके हैं। इसलिए उनमें एक एथलीट वाले गुण अपने पिता से ही मिले हैं। ईशा ने नौ वर्ष की उम्र से ही शूटिंग की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी थी। साल 2014 में उन्होंने पहली बार बंदूक पकड़ी थी। ईशा ने साल 2018 में नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप का खिताब जीता। महज 13 वर्ष की उम्र में ही ईशा ने कई अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड जीते। साथ ही ईशा ने यूथ, जूनियर और सीनियर कैटेगरी में तीन स्वर्ण अपने नाम किए। ईशा का कहना है कि उन्हें पिस्टल की गोली की आवाज किसी संगीत से कम नहीं लगती।
ट्रेनिंग में किया दिक्कतों का सामना

ईशा सिंह
- फोटो : सोशल मीडिया
ईशा तेलंगाना में ऐसी जगह पर रहती थीं जहां आसपास कोई भी शूटिंग रेंज नहीं था, जिसके चलते उन्हें ट्रेनिंग में दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। ट्रेनिंग के लिए उन्हें अपने घर से एक घंटे की दूरी पर स्थित गाचीबॉली स्टेडियम तक जाना होता था। यहां पहुचंकर ईशा मैनुअल रेंज पर प्रैक्टिस करती थीं। ट्रेनिंग के साथ ही ईशा को पढ़ाई और यात्रा भी करनी होती थी। इतनी कम उम्र में जहां दूसरे बच्चे जिंदगी का आनंद ले रहे थे, वहीं ईशा खुद को मुश्किलों के लिए तैयार कर रही थीं। बाकी चीजों से ध्यान हटाकर शूटिंग पर ध्यान लगाना भी ईशा के लिए आसान नहीं था। हालांकि, अर्जुन की तरह उनका निशाना अपने लक्ष्य पर टिका रहा।
माता-पिता को करना पड़ा त्याग

ईशा सिंह
- फोटो : सोशल मीडिया
ईशा को चैंपियन बनाने के लिए उनके पिता को भी अपने मोटर ड्राइविंग के करियर का भी त्याग करना पड़ा। पिता के साथ ही ईशा की मां ने भी उनके लिए काफी त्याग किए। अब दोनों के त्याग को ईशा ने खाली नहीं जाने दिया। चार साल की कड़ी मेहनत के बाद नेशनल चैंपियन बनीं और अब एशियाई खेलों में भी स्वर्ण पदक अपने नाम किया है। भारत सरकार ने उन्हें साल 2020 में प्रधानमंत्री बाल पुरस्कार से सम्मानित किया था।
निशानेबाजी का जुनून

ईशा सिंह
- फोटो : सोशल मीडिया
निशानेबाजी को लेकर अपने जुनून को लेकर ईशा बताती हैं कि उन्हें इस खेल से बेहद प्यार है। अपने सफर को लेकर ईशा कहती हैं कि किसी खेल के प्रति आपका आकर्षण आपकी जीत की गारंटी नहीं देता। जीत के लिए आपको कई परेशानियों का डटकर सामना करना पड़ता है। उन्हें भी खिताब जीतने के लिए कई बाधाओं का सामना करना पड़ा था। काफी मेहतन के बाद ही वह इस मुकाम तक पहुंची हैं।