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Bobby Fischer: विश्व चैंपियन फिशर के लिए जीनियस शब्द भी पड़ जाता था छोटा, पढ़ें उनकी कहानी

प्रवीण थिप्से, अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली Published by: स्वप्निल शशांक Updated Sat, 09 Mar 2024 09:07 AM IST
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सार

फिशर का विलक्षण व्यक्तित्व और शतरंज में उनका योगदान अनूठा रहा। शतरंज को लेकर वह बेहद पेशेवर थे और अपनी राह में आने वाली चुनौतियों से उन्होंने कभी मुंह नहीं मोड़ा। वह अपने आदर्शों को लेकर अडिग रहते थे।

Bobby Fischer: Even the word genius was too short for world champion Fischer, read his story
बॉबी फिशर - फोटो : Social Media
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विस्तार
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'इस तारीख को जन्मे' चैंपियन की सीरीज में मुझे एक ऐसे ग्रैंडमास्टर की कहानी बयां करने में हर्ष हो रहा है, जिसने दुनिया में अपना दबदबा बनाया। यह कोई और नहीं बल्कि दिग्गज राबर्ट जेम्स (बॉबी) फिशर हैं, जिनका 9 मार्च 1943 को जन्म हुआ। बॉबी फिशर का सफर शतरंज जगत से बाहर भी हमेशा एक जिज्ञासा का विषय रहा है चाहे उनका अचानक उभरना हो, असाधारण जीतें हों, विवादास्पद विचार और साक्षात्कार हों।
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पेशेवर और निजी जिंदगी में उनके हैरतअंगेज निर्णय। उनकी हर चीज दुनिया भर में बहस, आकलन और आलोचना का विषय भी हो सकती है। अपने अंतमुर्खी स्वभाव के कारण उनका तभी लोगों से संपर्क हुआ जब बेहद जरूरी हुआ। शायद इसीलिए उनकी निजी जिंदगी और असल व्यक्तित्व हमेशा एक रहस्य रहा। बहरहाल, कुछ युक्तिसंगत पत्रकार फिशर के नजरिए को जानने में सफल रहे। बॉबी ने कभी सवालों को नहीं टाला और हमेशा वो जवाब दिया, जो वह समझते थे कि उनकी नजर में सही है।
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यद्यपि फिशर बेसिक स्कूली शिक्षा ढाई साल ही ली लेकिन वह अपने समकालीन शतरंज खिलाड़ियों और आयोजकों से ज्यादा जानकार और चीजों से अवगत रहते थे। अंकगणित और तार्किक पहेलियों को तत्काल सुलझा देते थे जिसने पूरे अमेरिकी समुदाय को हैरान कर रखा था। अमेरिका और यूरोप में जो अध्ययन किए गए उसमें खुलासा हुआ कि फिशर का आईक्यू स्तर 180 अंकों से ऊपर था जोकि एक जीनियस से भी ज्यादा है।

फिशर का विलक्षण व्यक्तित्व और शतरंज में उनका योगदान अनूठा रहा। शतरंज को लेकर वह बेहद पेशेवर थे और अपनी राह में आने वाली चुनौतियों से उन्होंने कभी मुंह नहीं मोड़ा। वह अपने आदर्शों को लेकर अडिग रहते थे। वह सोवियत को अपना दुश्मन समझते थे लेकिन वह पश्चिम के पहले शतरंज खिलाड़ी रहे जिसने सोवियत शतरंज स्कूल की पेचीदगियों का अध्ययन किया। उन्होंने सोवियत मास्टर्स से बेहतर किया। उन्होंने सोवियत शतरंज की रणनीतियों को नया क्षितिज प्रदान किया।

पांच बार के विश्व चैंपियन मिखाइल बोटविनिक के अनुसार उन्होंने शतरंज की रणनीतिक सूझबूझ को बेहतर किया। उनके कुछ अलग विचार थे जिसे समकालीन शतरंज मास्टर्स ने नहीं स्वीकारा। पूरी दुनिया विल्हेल्म स्टेनिट्ज को आधुनिक शतरंज रणनीति का जनक मानती थी लेकिन फिशर की नजर में पाल मोरफी ज्यादा बेहतर और व्यावहारिक खिलाड़ी थे।

अब आधुनिक चेस इंजन ने अब साबित कर दिया कि मोरफी का खेलने का तरीका सही था लेकिन फिशर ने यह बात छह दशक पहले कह दी थी। तब तो चेस इंजन भी नहीं थे। फिशर ने जिंदगी में अच्छी सेहत, फिटनेस और स्टेमिना की अहमियत को समझा। वह पूरी मानसिक और शारीरिक ऊर्जा के साथ मैच खेलते थे।

वह एकमात्र विश्व चैंपियन थे जो बिना ट्रेनर और प्रैक्टिस पार्टनर के उतरते थे। उन्होंने 1972 में विश्व चैंपियन बनने के बाद टूर्नामेंट खेलना बंद कर दिया लेकिन शतरंज का गंभीरता से अध्ययन करते रहे। ताउम्र उन्होंने अपने को नई तकनीकों से अपडेट किया। 1992 में फिशर स्पेसकी मैच से खुलासा हुआ कि फिशर रुई लोपेज में सिद्धहस्त हैं। बाद में इसके कारण सत्तर के दशक में रणनीतिक बदलाव हुए जिसका बहुत कुछ श्रेय अनातोली कार्पोव को जाता है जो फिशर के बाद नए विश्व चैंपियन बने।

शतरंज को लेकर विश्लेषण और व्याख्या में उन्होंने कभी गलती नहीं की, तब भी नहीं जब वह जेल या निगरानी में इलाज के दौरान रहे। उन्होंने शतरंज में छठी इंद्री का विकास किया। कई अवधारणाएं बनाईं जिसमें फिशर चेस क्लॉक और फिशर रेंडम चेस (चेस 960) शामिल है जिसका खिलाड़ी अब अभ्यास करते हैं।

फिशर क्लॉक तो आधुनिक शतरंज का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है। फिशर का मानना रहा कि शतरंज के खिलाड़ी अपने खेल के राजदूत हैं और अपनी अंतिम सांस तक उन्होंने खुद को भी यही माना। उनका 64 साल की उम्र में निधन हो गया। उनकी पहचान शतरंज के संपूर्ण खिलाड़ी के रूप में हुई।

(लेखक अर्जुन अवॉर्डी और अंतरराष्ट्रीय ग्रैंडमास्टर हैं)
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