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अयोध्या का वैभव लौटने की आस से छाया उल्लास, अब रामनगरी को पीएम मोदी से उम्मीदें

धीरेंद्र सिंह, अयोध्या Published by: दुष्यंत शर्मा Updated Thu, 06 Aug 2020 05:06 AM IST
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Shadow glee with the hope of returning to Ayodhya's glory
Ayodhya - फोटो : amar ujala
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अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या। तस्यां हिरण्यय: कोश: स्वर्गो ज्योतिषावृत:।। अथर्ववेद का यह श्लोक कहता है कि वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में वर्णित राम की अयोध्या का वैभव अब लौटने वाला है। राजनीतिक कारणों से अब तक उपेक्षा की शिकार रही अयोध्या श्रीरामजन्मभूमि पर पहली बार आए प्रधानमंत्री के संकल्प से जश्न में डूबी है। एक साथ होली-दिवाली का उत्सव मना रहे रामनगरी के लोगों को उम्मीद है कि उनकी बदहाली और फटेहाली का अंत होगा, फिर रामराज लौटेगा।

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मंदिर बनने के साथ अयोध्या भी बननी चाहिए...का संदेश देने वाले संघ प्रमुख मोहनराव भागवत को अयोध्या में टेलीविजन से चिपके यहां के जन-जन ने दिल से साधुवाद दिया। हर तरफ एक ही आवाज थी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मंदिर तो बनना ही था, लेकिन इसकी शुरुआत में नौ महीने लगे। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अयोध्या का वैभव लौटाने के वादे पर अतिशीघ्र अमल करना होगा। 

अवध विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर विनोद श्रीवास्तव कहते हैं कि मंदिर के साथ यहां के ढांचागत विकास और पयर्टन की संभावनाओं से रोजगार तलाशना सबसे बड़ी जरूरत है। इतिहास एवं पुरातत्व के प्रो. अजय प्रताप सिंह कहते हैं पीएम मोदी ने अयोध्या से रामेश्वरम तक जहां-जहां प्रभु राम के कदम पड़े, उनके विकास की बात कही है। रामायण सर्किट का जिक्र किया है, ऐसे में अब वह दिन दूर नहीं जब अयोध्या विश्व पयर्टन के शिखर पर होगी।

अयोध्या पर शोध करने वाले इतिहासकार डॉ. हरिप्रसाद दुबे कहते हैं कि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में अयोध्या के सांस्कृतिक परिदृश्य का भी खाका खींचा है। ऐसे में हिंदू धर्म के साथ बौद्ध, जैन, सिख आदि से जुड़ी यहां की जड़ें देश-विदेश के लाखों लोगों को आकर्षित करेंगी। बस जरूरत है सरकार सच्चे मन से आधारभूत संरचनाएं तैयार करे। 

महंत वैदेही वल्लभ शरण कहते हैं कि अयोध्या कभी स्वर्ग से सुंदर थी, लेकिन इसकी लगातार उपेक्षा ने इसे गरीबी से जकड़ दिया है। देश-विदेश से आने वाले भक्त यहां कदम रखते ही तमाम दुश्वारियों को झेलते हैं, कहते हैं कि किताबों में जो लिखा है और वर्तमान की स्थिति में जमीन-आसमान का अंतर क्यों है। 

छात्रा दिव्या उपाध्याय कहती हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दीपोत्सव के जरिए अयोध्या की सांस्कृतिक विरासत को विश्व पटल पर अविस्मरणीय बनाया है, लेकिन आजादी के इतने साल बाद जब कोई प्रधानमंत्री पहली बार रामलला के दर पर आया हो, तो यहां की बिगड़ी तस्वीर का अंदाजा लगाया जा सकता है। यहां की बदहाली पॉलिटिक्स की देन है।

उम्मीदों का दीप जलाने सड़कों पर उतर आई अयोध्या, आतिशबाजी भी हुई

रामनगरी में पिछले कई दिनों से मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन शुरू होने को लेकर आस्था का प्रवाह चरम पर था, मगर प्रधानमंत्री समेत संघ प्रमुख और मुख्यमंत्री ने जैसे ही अयोध्या को विश्व की सबसे वैभवशाली और संपन्न नगरी बनाने का वादा किया, समूची अयोध्या उम्मीदों का दीप जलाने सड़कों पर उतर आई। विकास की आशाएं मुखर हुईं। लोगों ने घर, आंगन को दीपों से सजाया तो राम की पैड़ी, सरयू घाट और मठ-मंदिर समेत सड़कें और गलियां भी लाखों दीपों से जगमग हो उठीं। वहीं जगह-जगह आतिशबाजी भी की गई।

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