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नेताजी को भगवान मानते हैं सुभाषगढ़ गांवेके जांबाज
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सुभाषगढ़ गांव में विभाजन की विभीषिका की दांस्ता बताते प्रह्लाद।
- फोटो : HARIDWAR
आज जब सारा देश स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ पर अमृत महोत्सव के जश्न में डूबा हुआ है। वहीं, 14 अगस्त को विभाजन की विभीषिका का दर्द आज भी याद कर सुभाषगढ़ के लोग सहम उठते हैं।
पथरी क्षेत्र के सुभाषगढ़ गांव को नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के जनरल और नेताजी के विश्वासपात्र शाहनवाज खान ने 1952 के आसपास उन लोगों को यहां लाकर बसाया था। जो वर्तमान में पाकिस्तान के रावल पिंडी की कोटा तहसील के बलार गांव में रह रहे थे। विभाजन की विभीषिका के दौरान इनका सबकुछ बिखर चुका था।
इस गांव में रहने वाले लोग और उनके अधिकतर परिवार आपस में रिश्तेदार हैं। वह न सिर्फ, एक दूसरे के दुख-दर्द को समझते हैं। उनमें सहभागी होते हैं, बल्कि उससे भी दोगुना उत्साह से हर वर्ष 23 जनवरी को नेताजी की जयंती एक साथ मिलकर एक त्योहार की भांति मनाते हैं। नेताजी इस गांव में भगवान की तरह, न सिर्फ पूजे जाते हैं, बल्कि एक आदर्श पुरुष का स्थान भी रखते हैं।
गांव के प्रहलाद विभाजन के घटनाक्रम को याद करते हुए बताते हैं, कि हमें हमारे बसे बसाए घर से बेदखल करके हमारे घरों को आग के हवाले कर दिया गया था। हमें एक ऐसी रेलगाड़ी में ठूंस दिया गया। जिसमें खड़े होने तक को भी स्थान नहीं था और जिसके गंतव्य स्थल तक के बारे में हमें पता नहीं था। वह बताते हैं कि जिस समय जनरल शाहनवाज ने इस गांव को बसाया। उस समय यहां जंगल के सिवाय कुछ भी नहीं था। लगभग 80 बीघा जमीन दो सौ परिवारों को मिल गई। जिनमें से अधिकतर का संबंध सेना से ही था। इसी गांव की एक महिला जो नेताजी की आजाद हिंद फौज में थी। जिसका निधन लगभग चार महीने पहले हो गया है। वे सेना में दर्जी का काम करती थीं।
बताया कि जिन दो सौ परिवारों को यहां गांव में जमीनें आवंटित हुई थी, उनमें से केवल 70 परिवारों को आवंटन जमीन का ही पक्का पट्टा हो पाया है। बाकी के परिवार इस संबंध में कोर्ट और तहसील के चक्कर ही लगा रहे हैं। अभी भी अधिकतर सैनिकों की विधाएं पारिवारिक आर्मी पेंशन नहीं ले पा रही हैं। इनके मामलों में कुछ तेजी लाए जाने की जरूरत है।
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पथरी क्षेत्र के सुभाषगढ़ गांव को नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के जनरल और नेताजी के विश्वासपात्र शाहनवाज खान ने 1952 के आसपास उन लोगों को यहां लाकर बसाया था। जो वर्तमान में पाकिस्तान के रावल पिंडी की कोटा तहसील के बलार गांव में रह रहे थे। विभाजन की विभीषिका के दौरान इनका सबकुछ बिखर चुका था।
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इस गांव में रहने वाले लोग और उनके अधिकतर परिवार आपस में रिश्तेदार हैं। वह न सिर्फ, एक दूसरे के दुख-दर्द को समझते हैं। उनमें सहभागी होते हैं, बल्कि उससे भी दोगुना उत्साह से हर वर्ष 23 जनवरी को नेताजी की जयंती एक साथ मिलकर एक त्योहार की भांति मनाते हैं। नेताजी इस गांव में भगवान की तरह, न सिर्फ पूजे जाते हैं, बल्कि एक आदर्श पुरुष का स्थान भी रखते हैं।
गांव के प्रहलाद विभाजन के घटनाक्रम को याद करते हुए बताते हैं, कि हमें हमारे बसे बसाए घर से बेदखल करके हमारे घरों को आग के हवाले कर दिया गया था। हमें एक ऐसी रेलगाड़ी में ठूंस दिया गया। जिसमें खड़े होने तक को भी स्थान नहीं था और जिसके गंतव्य स्थल तक के बारे में हमें पता नहीं था। वह बताते हैं कि जिस समय जनरल शाहनवाज ने इस गांव को बसाया। उस समय यहां जंगल के सिवाय कुछ भी नहीं था। लगभग 80 बीघा जमीन दो सौ परिवारों को मिल गई। जिनमें से अधिकतर का संबंध सेना से ही था। इसी गांव की एक महिला जो नेताजी की आजाद हिंद फौज में थी। जिसका निधन लगभग चार महीने पहले हो गया है। वे सेना में दर्जी का काम करती थीं।
बताया कि जिन दो सौ परिवारों को यहां गांव में जमीनें आवंटित हुई थी, उनमें से केवल 70 परिवारों को आवंटन जमीन का ही पक्का पट्टा हो पाया है। बाकी के परिवार इस संबंध में कोर्ट और तहसील के चक्कर ही लगा रहे हैं। अभी भी अधिकतर सैनिकों की विधाएं पारिवारिक आर्मी पेंशन नहीं ले पा रही हैं। इनके मामलों में कुछ तेजी लाए जाने की जरूरत है।
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