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बांग्लादेश में अब बलात्कार के दोषियों को सजा-ए-मौत, शेख हसीना कैबिनेट ने मंजूरी दी

डिजिटल ब्यूरो, ढाका। Published by: देव कश्यप Updated Mon, 12 Oct 2020 09:14 PM IST
सार

  • बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के खिलाफ लगातार प्रदर्शनों से दबाव में आई सरकार।
  • बांग्लादेश में भी निर्भया कांड की तरह नौ दिनों से सड़कों पर जारी है विरोध-प्रदर्शन।
  • सरकार ने महिला और बाल उत्पीड़न कानून में संशोधन किया गया।

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Bangladesh Cabinet approves death penalty for sexual assaulted cases after protests
Bangladesh Cabinet - फोटो : Twitter@DDNewslive
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विस्तार
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बांग्लादेश में बलात्कार के खिलाफ नौ दिन से जारी जन प्रदर्शनों का आखिरकार सोमवार को असर हुआ। बांग्लादेश की सरकार ने बलात्कार के मामलों में अब मौत की सजा का प्रावधान करने का फैसला किया है। इसके लिए शेख हसीना मंत्रिमंडल ने महिला एवं बाल उत्पीड़न कानून-2000 में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। प्रधानमंत्री शेख हसीना की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद कैबिनेट सेक्रेटरी खांडकर अनवारुल इस्लाम ने बताया कि अभी चूंकि संसद का सत्र नहीं चल रहा है, इसलिए इस प्रावधान को लागू करने के मकसद से राष्ट्रपति अब्दुल हमीद जल्द ही अध्यादेश जारी करेंगे।

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हाल में बांग्लादेश में बलात्कार की कई घटनाएं हुईं। उसके बाद देश भर में विरोध भड़क उठा। खास विरोध सिलहट के एमसी कॉलेज की छात्रा के साथ गैंगरेप के बाद भड़का। इस घटना के ठीक पहले नोआखाली के बेगमगंज में ऐसी ही वारदात हुई थी। विरोध प्रदर्शनों का दौर चार अक्तूबर को शुरू हुआ। 10 अक्तूबर को देश भर में विरोध-प्रदर्शन हुआ। 11 अक्तूबर को देश भर के शिक्षा संस्थानों में स्त्री उत्पीड़न विरोधी फोटो प्रदर्शनियां लगाई गईं और कई दूसरे तरह के कार्यक्रम भी हुए। इनमें जगह- जगह मानव श्रृंखला बनाना भी शामिल है। सोमवार को महिला उत्पीड़न से संबंधित फिल्मों का प्रदर्शन ढाका में हुआ। आंदोलनकारियों ने बुधवार को महिला रैली और गुरुवार को साइकिल रैली आयोजित करने का एलान किया है।
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बांग्लादेश में बना मौजूदा महौल काफी कुछ दिसंबर 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया कांड की याद दिला रहा है। राजनीतिक और गैर-राजनीतिक संगठन वहां भी सड़कों पर उतरे हैं। उनके बीच से अलग-अलग तरह की मांगें उठी हैं। बलात्कारियों को सजा-ए-मौत की मांग पुरजोर से ढंग से की गई है। मगर महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का एक समूह इससे सहमत नहीं है। इस समूह से जुड़ी कार्यकर्ताओं ने रविवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपराधियों को ऐसी उम्र कैद देने की मांग की, जिसमें वो मृत्यु तक जेल में रहें। उन्होंने कहा कि असली समस्या जांच और न्याय प्रक्रिया की दिक्कतें हैं। इसलिए ज्यादा जरूरी यह है कि बलात्कार के मामलों की जांच और सुनवाई 30 से 60 दिन के भीतर पूरी की जाए।

ऐसी ही बहस निर्भया कांड के समय भारत में हुई थी। उसके बाद बलात्कार संबंधी कानून को सख्त बनाया गया, लेकिन यह साफ है कि उससे ऐसी वीभत्स घटनाओं को रोकने में ज्यादा मदद नहीं मिली है। अब भारत में यह महसूस किया जा रहा है कि समाज की सोच में बदलाव और सत्ता से जुड़े लोगों एवं पुलिस की जवाबदेही तय करना ज्यादा जरूरी है। बांग्लादेश में भी ये आरोप लगे हैं कि हाल की घटनाओं में सत्ताधारी दल से जुड़े लोग शामिल थे। आरोप लगा है कि इस वजह से पुलिस ने कार्रवाई में जल्दी नहीं दिखाई। इसीलिए विपक्षी दलों ने गृह मंत्री असदुजम्मां खान के इस्तीफे की मांग की है।

बांग्लादेश का ताजा माहौल दक्षिण एशिया में महिला अधिकारों और स्त्रियों की गरिमा को लेकर बढ़ती जागरुकता की एक और मिसाल है। लेकिन इससे तुरंत महिलाओं को इंसाफ और उनके लिए सुरक्षित माहौल मिल जाएगा, ये उम्मीद करना शायद ठीक नहीं होगा। बल्कि निर्भया कांड से लेकर बांग्लादेश के ताजा आंदोलन तक से यह सीख लेने की जरूरत है कि ऐसी घटनाएं महज कानून-व्यवस्था का सवाल नहीं हैं। इनका संदर्भ समाज और संस्कृति से जुड़ा है, जिस पर खुल कर बात करने की जरूरत है।

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