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Guru Gochar 2025: देवगुरु बृहस्पति का मिथुन राशि में गोचर, जानिए कर्क राशि पर कैसा रहेगा प्रभाव ?
ज्योतिष डेस्क, अमर उजाला
Published by: विनोद शुक्ला
Updated Wed, 03 Dec 2025 12:09 PM IST
सार
Guru Gochar 2025: 4 दिसंबर को देवगुरु बृहस्पति वक्री रहते हुए कर्क से मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे। गुरु के मिथुन राशि में गोचर करेंगे। आइए जानते हैं कर्क राशि पर किस तरह का प्रभाव पड़ेगा।
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Guru Gochar 2025: मिथुन राशि में देवगुरु बृहस्पति का गोचर
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
Guru Gochar 2025: कर्क राशि पर गुरु के गोचर का प्रभाव
कर्क राशि वालों के लिए देवगुरु बृहस्पति छठे और नौवें भाव के स्वामी होते हैं। जो अब 4 दिसंबर को मिथुन राशि में वक्री रहते हुए गोचर होंगे, जिसे यह आपके ग्यारहवें भाव में प्रवेश करेंगे। ऐस में आपकी इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है। इस दौरन कर्क राशि के जातक पूजा-पाठ, धार्मिक और आध्यात्मकि कार्यो में अपना ज्यादातर समय बीताएंगे। गुरु के वक्री होकर मिथुन राशि में गोचर करना आपको काफी प्रयास करने के बाद ही सफलता मिलेगी। इस दौरान आपको लंबी दूरी की यात्राएं करनी पड़ सकती है, जो लोग विदेश जाना चाहते हैं उनके अपनी सेहत का विशेष ध्यान देने की जरूरत होगी। इसके अलावा गुरु का चौथे, छठे और आठवें भाव पर द्दष्टि से आपके खर्चो में इजाफा करवा सकता है।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में देवगुरु बृहस्पति को धन, सुख-समृद्धि, विवाह, बुद्धि और विस्तार का कारक ग्रह माना जाता है। 04 दिसंबर 2025 को रात 08 बजकर 39 मिनट पर देवगुरु बृहस्पति बुध के स्वामित्व वाली राशि मिथुन में गोचर करेंगे। बुध को तटस्थ जबकि गुरु को शुभ ग्रह माना जाता है।
ज्योतिष में गुरु ग्रह का महत्व
- वैदिक ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति को गुरु का दर्जा प्राप्त है।
- गुरु धनु और मीन राशि के स्वामी होते हैं।
- कर्क राशि में गुरु उच्च के होते हैं जबकि मकर राशि में गुरु नीच के होते हैं।
- गुरु बृहस्पति को तीन विशेष द्दष्टियां प्राप्त है। पांचवी, सातवीं और नौवीं द्दष्टि।
- वैदिक ज्योतिष में गुरु बड़े भाई, शिक्षा, धन, संतान, ज्ञान और शिक्षा के कारक होते हैं।
- गुरु बृहस्पति पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्रों के स्वामी होते हैं।
- जिन जातकों की कुंडली के पहले भाव यानी लग्न में गुरु स्वयं बैठ जाएं तो व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली और ज्ञानी होता है।
- कालपुरुष की कुंडली में गुरु नौवें और बारहवें भाव के स्वामी होते हैं और यह दूसरे, पांचवें, नौवें,दसवें और ग्यारहवें भाव के कारक होते है।
- गुरु के दूसरे भाव में यानी धन के भाव में होने पर जातक बहुत धनी और समृद्धिशाली रहता है।
-जब गुरु कुंडली के पांचवें भाव में होते हैं या फिर पाचवें भाव पर द्दष्टि डालते हैं तो जातक को उच्च शिक्षा और गुणी संतान की प्राप्ति होती है।
- नवम भाव में गुरु के होने पर व्यक्ति शिक्षा और ज्ञान में परांगत होता है। कुंडली का दशम भाव कार्यक्षेत्र, करियर या पेशे का होता है दशम में गुरु हो तो व्यक्ति समाज में खूब प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाला होता है।
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली का ग्यारहवां भाव आय और लाभ का होता है। गुरु के इस भाव में होने पर जातक बहुत धन अर्जित करने में कामयाब होता है।
- गुरु के कमजोर होने पर जातक को लीवर, किडनी, मधुमेह, पीलिया, मोटापा और कैंसर जैसी बीमारी होने का खतरा रहता है।
- गुरु का रत्न पुखराज होता है। केले के वृक्ष को गुरु के रूप में पूजा जाता है। बृहस्पति गुरु पीले रंग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
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वैदिक ज्योतिष शास्त्र में देवगुरु बृहस्पति को धन, सुख-समृद्धि, विवाह, बुद्धि और विस्तार का कारक ग्रह माना जाता है। 04 दिसंबर 2025 को रात 08 बजकर 39 मिनट पर देवगुरु बृहस्पति बुध के स्वामित्व वाली राशि मिथुन में गोचर करेंगे। बुध को तटस्थ जबकि गुरु को शुभ ग्रह माना जाता है।
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ज्योतिष में गुरु ग्रह का महत्व
- वैदिक ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति को गुरु का दर्जा प्राप्त है।
- गुरु धनु और मीन राशि के स्वामी होते हैं।
- कर्क राशि में गुरु उच्च के होते हैं जबकि मकर राशि में गुरु नीच के होते हैं।
- गुरु बृहस्पति को तीन विशेष द्दष्टियां प्राप्त है। पांचवी, सातवीं और नौवीं द्दष्टि।
- वैदिक ज्योतिष में गुरु बड़े भाई, शिक्षा, धन, संतान, ज्ञान और शिक्षा के कारक होते हैं।
- गुरु बृहस्पति पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्रों के स्वामी होते हैं।
- जिन जातकों की कुंडली के पहले भाव यानी लग्न में गुरु स्वयं बैठ जाएं तो व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली और ज्ञानी होता है।
- कालपुरुष की कुंडली में गुरु नौवें और बारहवें भाव के स्वामी होते हैं और यह दूसरे, पांचवें, नौवें,दसवें और ग्यारहवें भाव के कारक होते है।
- गुरु के दूसरे भाव में यानी धन के भाव में होने पर जातक बहुत धनी और समृद्धिशाली रहता है।
-जब गुरु कुंडली के पांचवें भाव में होते हैं या फिर पाचवें भाव पर द्दष्टि डालते हैं तो जातक को उच्च शिक्षा और गुणी संतान की प्राप्ति होती है।
- नवम भाव में गुरु के होने पर व्यक्ति शिक्षा और ज्ञान में परांगत होता है। कुंडली का दशम भाव कार्यक्षेत्र, करियर या पेशे का होता है दशम में गुरु हो तो व्यक्ति समाज में खूब प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाला होता है।
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली का ग्यारहवां भाव आय और लाभ का होता है। गुरु के इस भाव में होने पर जातक बहुत धन अर्जित करने में कामयाब होता है।
- गुरु के कमजोर होने पर जातक को लीवर, किडनी, मधुमेह, पीलिया, मोटापा और कैंसर जैसी बीमारी होने का खतरा रहता है।
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