Surya Grahan 2025: साल के दूसरे सूर्य ग्रहण पर करें यह एक उपाय, नकारात्मकता से मिलेगा छुटकारा
Surya Grahan 2025: सूर्य ग्रहण ज्योतिष शास्त्र की एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना मानी जाती हैं। इसके प्रभाव से ग्रह-नक्षत्र सहित व्यक्ति के निजी जीवन में विशेष परिवर्तन दिखाई देते हैं। शास्त्रों में ग्रहण को अशुभ काल माना गया है, इसलिए इसके नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए विभिन्न प्रकार के उपाय करने की परंपरा है।

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Surya Grahan 2025: सूर्य ग्रहण ज्योतिष शास्त्र की एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना मानी जाती हैं। इसके प्रभाव से ग्रह-नक्षत्र सहित व्यक्ति के निजी जीवन में विशेष परिवर्तन दिखाई देते हैं। शास्त्रों में ग्रहण को अशुभ काल माना गया है, इसलिए इसके नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए विभिन्न प्रकार के उपाय करने की परंपरा है। ज्योतिष अनुसार जब चन्द्रमा, सूर्य और पृथ्वी के बीच आकर सूर्य की किरणों को पृथ्वी तक पहुंचने से रोक देता है, तब सूर्यग्रहण लगता है। साल 2025 में यह खगोलीय घटना 21 सितंबर को घटने वाली है। इस दिन रात 11 बजे से 22 सितंबर की तड़के 3 बजकर 24 मिनट तक सूर्य ग्रहण का साया बना रहेगा। हालांकि यह ग्रहण भारत में नजर नहीं आएगा, इसलिए इसका प्रभाव और सूतक मान्य नहीं होगा। परंतु ज्योतिषियों की मानें तो साल का दूसरा सूर्य ग्रहण कन्या राशि और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में घटित होगा और इस अवधि में सूर्य स्वयं कन्या राशि में गोचर करेंगे। ऐसे में आप भगवान सूर्य की चालीसा का पाठ कर सकते हैं, जिससे ग्रहण के नकारात्मक प्रभाव से बचा जा सकता है। आइए इसके बारे में जानते हैं।

दोहा
कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग।।
चौपाई
जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।
भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर।
विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।
अम्बरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।
सहस्रांशु, प्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर।
मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।
उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते।
मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता,
सूर्य, अर्क, खग, कलिहर, पूषा, रवि,
आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।
द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।
चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै।
नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।
सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।
बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते।
उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।
छन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबलमोह को फंद कटतु है।
अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते।
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देश पर दिनकर छाजत।
भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित।
ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा।
पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर।
युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।
बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर।
जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।
विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।
सहस्रांशु, सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।
अस जोजजन अपने न माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।
दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै।
अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता।
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।
मन्द सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों।
परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदय।
भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।
यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं।
दोहा
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।
सुख सम्पत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य।।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
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