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सुख-चैन को बनाए रखती हैं ये तीन ऊर्जाएं, जानिए क्या कहता है वास्तु विज्ञान

अनीता जैन ,वास्तुविद Published by: विनोद शुक्ला Updated Mon, 29 Apr 2024 11:13 AM IST
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सार

ईशान कोण सात्विक होने के कारण सबसे अधिक पूज्यनीय है। अतः इस क्षेत्र को जितना संभव हो सके साफ-सुथरा, हल्का-फुल्का और खुला हुआ रखना चाहिए।

Vastu Tips Importance Of Energy Avoid Things to Place For Prosperity and Health
Vastu Tips For Home: वास्तु में पूर्व से दक्षिण एवं उत्तर से पश्चिम के दो क्षेत्र रजस ऊर्जा से संपन्न होते हैं।
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विस्तार
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वास्तु शास्त्र के अनुसार प्रकृति में तीन प्रकार की ब्रह्मांडीय ऊर्जा (गुण) समाहित रहती है- सत्व, रजस, तमस। हमारे चारों तरफ जो कुछ भी है वह इन तीनों ऊर्जाओं की ही अभिव्यक्ति है। प्रत्येक जीव व स्थान में इन तीन ऊर्जाओं की कम या अधिक मात्रा सन्नहित होती है। आइए जानते हैं।
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सत्व ऊर्जा
पूर्व और उत्तर के मध्य

सत्व ऊर्जा ऐसी शक्ति है जो स्थिरता, मूल्यवत्ता और सकारात्मकता से जोड़ती है। पूर्व और उत्तर दिशा के बीच का क्षेत्र सत्व ऊर्जा के प्रभाव में होता है।

यहां क्या करें
शुभ कार्य करते समय हमारा मुख उत्तर या पूर्व की तरफ होना चाहिए। ऐसा करने से कार्यों में शीघ्र सफलता प्राप्त होने की संभावना होती है। प्लॉट, भवन अथवा कमरे का उत्तर-पूर्व यानि ईशान कोण में सत्व ऊर्जा का प्रभाव शत-प्रतिशत रहता है इसलिए मानसिक स्पष्टता और प्रज्ञा की दिशा उत्तर-पूर्व (ईशान) पूजा करने के लिए आदर्श स्थान माना गया है।
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ईशान कोण सात्विक होने के कारण सबसे अधिक पूज्यनीय है। अतः इस क्षेत्र को जितना संभव हो सके साफ-सुथरा, हल्का-फुल्का और खुला हुआ रखना चाहिए क्योंकि यहां से प्रांजल और सकारात्मक ऊर्जाएं भवन के अंदर प्रविष्ट होती हैं। यह स्थान सभी पवित्र कार्यों जैसे पूजा-पाठ, ध्यान, अध्ययन आदि के लिए उपयुक्त है।

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रजस
रजस ऊर्जा सत्व और तमस के बीच की शक्ति है जो सक्रियता, परिवर्तन और गतिशीलता प्रदान करती है।

दक्षिण एवं उत्तर से पश्चिम के दो क्षेत्र
वास्तु में पूर्व से दक्षिण एवं उत्तर से पश्चिम के दो क्षेत्र रजस ऊर्जा से संपन्न होते हैं। लेकिन दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) एवं उत्तर-पश्चिम(वायव्य) कोण में रजस ऊर्जा का शत-प्रतिशत प्रभाव रहता है।

यहां क्या करें
ये दोनों क्षेत्र खाना पकाने, खाने और वार्तालाप करने जैसी गतिविधियों के लिए उत्तम माने गए हैं। आग्नेय दिशा,अग्नि के रजस गुण के कारण रसोई, गीज़र, जनरेटर, हीटर, बिजली के मीटर के लिए उपयुक्त एवं शुभ मानी गई है।
वायव्य दिशा में वायु का रजस गुण मौजूद है इसलिए यह दिशा वायु से सम्बंधित कार्यों के लिए अच्छी है। ड्राइंग रूम, गैराज, विवाह योग्य कन्याओं का कमरा यहां होना वास्तु सम्मत माना गया है।

तमस
तमस शक्ति समस्त मूल्यों और आदर्शों का नाश करती है और नकारात्मक ऊर्जाओं से जोड़ती है।

दक्षिण से पश्चिम तक
भवन का दक्षिण से पश्चिम तक का क्षेत्र तमस ऊर्जा के प्रभाव में रहता है लेकिन दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य) दिशा में यह प्रभाव शत-प्रतिशत रहता है,इसलिए इस कोण को तामसिक क्षेत्र माना गया है।

यहां क्या करें
भोजन या शुभ कार्य करते वक्त दक्षिण और पश्चिम में मुख करके नहीं बैठना चाहिए। वास्तु में कुछ ऐसे सुझाव दिए गए है,जिनकी मदद से निर्माण से पूर्व या बाद में नैऋत्य कोण की नकारात्मक ऊर्जाओं को प्रभावहीन या सकारात्मक बनाया जा सकता है।

तामसिक ऊर्जाएं ठोस और भारी-भरकम होती हैं,अतः यहां बने कमरे में वज़नदार सामान, भारी अलमारी व फर्नीचर आदि रखना शुभ रहता है। आर्थिक लाभ और शुभ प्रभावों की वृद्धि के लिए भवन की दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम एवं पश्चिम दिशा का फर्श थोड़ा ऊंचा,फर्श का बीच का भाग समतल और पूर्व, उत्तर-पूर्व दिशा की ओर का फर्श सदैव नीचा रखना चाहिए।
 
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