Electric Bus Tender: देश में 10900 ई-बसों के बड़े टेंडर पर लगा ब्रेक, अब कोर्ट में होगा फैसला, कौन जिम्मेदार?
Electric Bus Tender: भारत के 5 बड़े शहरों में ई-बसें खरीदने का सबसे बड़ा सरकारी टेंडर फिर विवादों में घिर गया है। मामला दिल्ली हाईकोर्ट में विचाराधीन है और इससे देश के ई-बस प्रोजेक्ट में बड़ा विलंब होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
विस्तार
भारत में इलेक्ट्रिक बसों की तैनाती के लिए चल रहे सबसे बड़े सरकारी प्रोजेक्ट को एक और बड़ा झटका लगा है। भारत के पांच बड़े शहरों दिल्ली, हैदराबाद, सूरत, अहमदाबाद व बेंगलुरु के लिए 10900 ई-बसों की खरीद का टेंडर 14 नवंबर को निकाला गया था।
इस टेंडर में टाटा मोटर्स, जेबीएम, ओलेक्ट्रा ग्रीन मोबिलिटी और पीएमआई इलेक्ट्रो व कई अन्य कंपनियों ने सफलतापूर्वक अपनी बोलियां लगाई थी, लेकिन अशोक लेलैंड की सहायक कंपनी ओम बिरला मोबिलिटी अपनी बोली सबमिट नहीं कर पाई। इसके पीछे तकनीकी गड़बड़ी को कारण बताया गया।
ये भी पढ़े: EV Sales: भारत में 2025 में ईवी रजिस्ट्रेशन 20 लाख पार, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की रफ्तार हुई और तेज
कंपनी ने पोर्टल की खामी बताई
ओम ग्लोबल मोबिलिटी का आरोप है कि वित्तीय और तकनीकी बोलियां पोर्टल पर अपलोड की गई थी, लेकिन सबमिट बटन पर क्लिक करने के दौरान तकनीकी खराबी आ गई। कई प्रयासों के बाद भी बोली जमा नहीं हो पाई। कंपनी ने इसे अपनी गलती नहीं, बल्कि सीईएसएल ( कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज लिमिटेड ) पोर्टल की खामी बताया है। इसीलिए अशोक लीलैंड ने सीईएसएल को दिल्ली हाईकोर्ट में घसीट लिया है। साथ ही देर से अपलोड हुई उसकी बोली पर भी विचार करने की मांग की।
टेंडर ई ड्राइव का मुख्य हिस्सा
दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में संबंधित पार्टियों से हलफनामा मांगा है। सीईएलएल की ओर से कहा गया है कि अभी कोर्ट ने कोई भी आदेश नहीं दिया है। इसलिए वे टिप्पणी नहीं कर सकते। यह टेंडर पीएम ई ड्राइव स्कीम का मुख्य हिस्सा है। इसके तहत कुल 14,028 ई-बसों की तैनाती का लक्ष्य है। इसका कुल बजट 4,391 करोड़ रुपये है। इसका उद्देश्य सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट को इलेक्ट्रिक बनाना, पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता घटाना, प्रदूषण में कमी व भारत में ईवी विनिर्माण को बढ़ावा देना है।
ये भी पढ़े: SUV Launch: सिएरा फोर्ड के बंद प्लांट से बनकर लॉन्च होने वाली टाटा की पहली एसयूवी, जानिए इसमें क्या है खास
यह टेंडर पहले भी देरी का शिकार हो चुका है। बोलीदाताओं की मांग पर कई बार नियम बदले गए है। कई कंपनियां केवल बस सप्लाई करना चाहती थी, संचालन नहीं। अब अशोक लेलैंड का कोर्ट केस इस प्रोजेक्ट को एक बार फिर रोक सकता है। कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा में गड़बड़ी की असली वजह अदालत तय करेगी।