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Bihar News : विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर सकेंगे सीएम नीतीश कुमार? कांग्रेस के ऑफर, राजद की चुप्पी पर बवाल

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, पटना Published by: आदित्य आनंद Updated Sat, 03 Feb 2024 02:00 PM IST
सार

Floor Test In Bihar : सदी की शुरुआत में बहुमत नहीं मिलने के कारण महज सात दिन मुख्यमंत्री रह सके थे नीतीश कुमार। इस बार सरकार गठन के 15 दिन बाद बहुमत साबित करना है। मंत्रियों के विभाग आवंटन के बावजूद असल खिलाड़ी राजद की चुप्पी के बीच क्या 'खेला' होगा?

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Bihar News : Floor test in bihar nitish kumar after congress party offer to jitan ram manjhi, rjd party silent
बिहार में सियासी घमासान। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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झारखंड में चंपई सोरेन सरकार बहुमत साबित कर ले- कांग्रेस इसपर पूरा फोकस कर रही है। दूसरी तरफ, कांग्रेस पार्टी ही इस प्रयास में है कि बिहार में नीतीश कुमार सरकार बहुमत साबित नहीं कर सके। झारखंड में चल रहा प्रयास दिख रहा। बिहार में यह प्रयास क्या जमीनी है? क्योंकि, बिहार में खेला करने में सक्षम राज्य विधानसभा की सबसे बड़ी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने चुप्पी साध रखी है। युद्ध के पहले वाली खामोशी। इसी खामोशी को तोड़ने के लिए सीएम नीतीश कुमार ने गृह विभाग अपने पास रखते हुए दोनों भाजपाई उप मुख्यमंत्रियों सहित मौजूदा मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों में विभाग बांट दिए हैं। वैसे, बहुमत को लेकर बवाल की कमान विपक्ष के दूसरे बड़े दल कांग्रेस ने संभाल ली है। तो क्या सचमुच बिहार में 28 जनवरी को हुए 'खेला' से बड़ा खेल 12 फरवरी को होने वाला है?

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बिहार विधानसभा का मौजूदा गणित पहले समझें
बिहार विधानसभा में लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद के पास सर्वाधिक 79 विधायक हैं। जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति उभरे भाव ने जब 28 जनवरी को बिहार में 'फलदायी' खेला किया तो राजद सत्ता से सीधे विपक्ष में चला गया। विपक्ष में अब उसके साथ कांग्रेस के 19 और वामदलों के 16 विधायक हैं। कुल 114 विधायक हो रहे हैं। दूसरी तरफ, 243 सदस्यों वाली बिहार विधान सभा में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के 78, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाईटेड के 45, पूर्व सीएम जीतन राम मांझी के दल हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा- सेक्युलर के चार विधायक हैं। इनके अलावा, एक निर्दलीय विधायक नीतीश कुमार के साथ पिछली महागठबंधन सरकार में भी थे, अब भी हैं। इस तरह, सत्ता पक्ष की संख्या 128 हो रही है। सत्तासीन दलों के 128 के मुकाबले अभी विपक्ष के 114 विधायक सामने हैं। असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के पास एक विधायक हैं, जो किसी तरफ नहीं। अब देखें कि जादुई आंकड़ा 122 है। मतलब, सत्ता के पास छह विधायक ज्यादा हैं और विपक्ष के पास आठ कम।
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मांझी को मैसेज- ऑफर अब भी लागू है, आइए तो सही
असल में तैयारी सरकार में उलटफेर के पहले हो रही थी कि किसी तरह जीतन राम मांझी को महागठबंधन अपने खेमे में कर ले। जिस दिन रोहिणी आचार्या ने सीएम नीतीश कुमार को सोशल मीडिया पर बुरा-बुरा लिखा, उसी शाम 'अमर उजाला' ने सबसे पहले यह सामने ला दिया था कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव कोई आपदा प्रबंधन नहीं कर रहे, बल्कि गणित बैठा रहे हैं। 28 जनवरी को जब सीएम नीतीश कुमार के इस्तीफे से अंतत: महागठबंधन सरकार गिर गई, तब भी जुगाड़ हो रहा था कि राजद अपने खेमे में मांझी को कर ले। यह नहीं हो सका। उप मुख्यमंत्री की कुर्सी से अचानक उतार दिए गए तेजस्वी यादव से लेकर राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव तक ने चुप्पी साधे रखी। तेजस्वी ने खेला बाकी होने की बात कही, ज्यादा कुछ नहीं। लेकिन, अब जब मांझी ने खुलकर स्वीकार किया कि उन्हें सीएम पद का ऑफर था तो कांग्रेस खुलकर मैदान में आ गई। उसने कहा- "ऑफर अब भी लागू है, आइए तो सही"। कांग्रेस का अंदाज ऐसा है जैसे वह वर्ष 2000 की तरह नीतीश कुमार की सरकार सात दिनों में गिराने की तैयारी कर रही है।

अब...क्या हो सकता है खेल, यह समझना होगा
मांझी के बेटे संतोष सुमन अब वापस नीतीश कुमार सरकार के मंत्री हैं। उन्हें पुराना अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति विभाग भी मिला और सूचना प्रावैधिकी भी। चार में से एक विधायक के मंत्री बनने के बाद जीतन राम मांझी ने परिवार से बाहर एक विधायक अनिल कुमार के लिए भी मंत्रीपद मांगा है। वैसे वह नीतीश सरकार में मंत्री रह चुके हैं, लेकिन मांझी ने इस तरह उनके लिए पद मांगा है कि अंदाज की चर्चा हर तरफ है। उन्होंने यह बता दिया कि उनके पास महागठबंधन से क्या-क्या ऑफर थे, फिर भी किस कारण नहीं गए। साथ ही उन्होंने इकलौते निर्दलीय विधायक को तवज्जो मिलने के आधार पर अपने चार में से दो विधायकों के मंत्रीपद के हक की बात को वाजिब बताया। अब चूंकि, मंत्रियों का विभाग बांटकर नीतीश कुमार ने अपनी सरकार की स्थिरता बताने की कोशिश की है, तो यह सवाल भी वाजिब है कि क्या मांझी मंत्रिमंडल विस्तार के लिए इंतजार ही करेंगे या कांग्रेस के खुले ऑफर पर कुछ करेंगे। वैसे, जहां तक खेल का सवाल है तो अब भी वही है। महागठबंधन को मांझी के चारों विधायकों को अपने साथ लाने के बाद भी 118 नंबर पूरा होता है। नहीं लाने पर उसकी संख्या 114 रहेगी। ऐसे में उसे मौजूदा सरकार गिराने के लिए बहुमत के समय राजग विधायकों की संख्या 110 के आसपास कराने के लिए 'साम-दाम-दंड-भेद' का सहारा लेना होगा। भाजपा तो टूटने से रही, जदयू निशाने पर है। कांग्रेस ने दुहराया भी है कि नीतीश कुमार की पार्टी के विधायक असहज हैं और टूटने को बेताब। मतलब, सिर्फ इंतजार ही करना होगा इन दावों की हकीकत समझने के लिए।

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