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Railway Station : अनूठा स्टेशन, जहां साल में 15 दिन ही ठहरती है ट्रेनें, दूसरा अजूबा- वापसी में सफर बेटिकट

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, औरंगाबाद Published by: कृष्ण बल्लभ नारायण Updated Sat, 30 Sep 2023 09:46 AM IST
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सार

GK Question : रेलवे में नौकरी करने वाले भी शायद इस सवाल का जवाब नहीं जानते होंगे कि देश में ऐसा भी स्टेशन है, जहां साल में सिर्फ 15 दिन ट्रेनें ठहरती हैं। इस स्टेशन का एक अनूठापन यह भी कि आने वाले तो आ जाते हैं, वापसी का टिकट यहां से नहीं कटता है।

Bihar News : GK Question of unique railway station only for 15 days stoppage in a year, without return ticket
इस स्टेशन पर 15 दिनों के लिए ही रूकती है ट्रेनें - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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कल्पना करे कि आप किसी कॉम्पिटीशन में बैठे है। परीक्षा के सामान्य ज्ञान के क्वेशचन पेपर में यह प्रश्न हो कि दुनियां का इकलौता कौन सा रेलवे स्टेशन है, जहां साल में महज 15 दिन ही ट्रेनें रूकती है। हम दावें के साथ कह सकते है कि इस प्रश्न का उतर आपके पास नहीं होगा। इस स्थिति में आप इस प्रश्न का उतर नहीं देंगे पर आप परीक्षा से घर आने के बाद इसका उतर ढूंढने लगेंगे क्योकि यह इंसानी फितरत है कि जिस बारे में उसे जानकारी नहीं होती, वह उसे जानने की भरपूर कोशिश करता है।निःसंदेह इस कोशिश में आप अपने से ज्यादा जाननेवालों की शरण लेंगे लेकिन वे भी इस बारे में नहीं बताएंगे। इतना तक कि आपका जानकार साथी यह भी कह देगा कि यह फेक प्रश्न है। इतना पर भी यदि आपका मन नहीं मानेगा तो आप दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल की शरण लेंगे। यहां भी आपको इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिलेगी। इसके बावजूद मन न माने तो आप विकीपीडिया भी सर्च कर ले, वहां भी निराशा ही हाथ लगेगी। ....... तो अब चलिए हमारे साथ दुनिया के 15 दिनों के रेलवे स्टेशन की सैर करने, हम आपको इससे जुडी हर वो बात बताएंगे जिसे जानने की जिज्ञासा अब आपके मन में जाग चुकी है।

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....तो इस रेलवे स्टेशन पर साल में केवल 15 दिन ठहरती है ट्रेनें

जानिए क्या है अजूबा 
पश्चिमी देशों में यह प्रचलित है कि इंडिया यानि भारत अजूबो का देश है। तो चलिए इसी अजूबों के देश के बिहार प्रांत में। इसी बिहार में एक जिला औरंगाबाद है और इसी जिले में देश के 18 रेलवे जोनों में एक पूर्व मध्य रेल के दीनदयाल उपाध्याय मंडल (पूर्व में मुगलसराय मंडल) के अंतर्गत ग्रैंड कॉर्ड रेल लाइन में मुगलसराय-गया रेलखंड पर  स्थित है, वह 15 दिनों का स्टेशन जिसका नाम है-"अनुग्रह नारायण रोड घाट स्टेशन" जो देश की आजादी के पहले ब्रिटिश काल से आबाद है।
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15 दिनों के लिए ही इस स्टेशन पर क्यों रूकती है ट्रेनें
जब स्टेशन के नाम और जगह की जानकारी हो ही गयी है, तो यह भी जानने की उत्सुकता हो रही होगी कि आखिर किस वजह से इस स्टेशन पर महज 15 दिनों के लिए ही ट्रेनें  रुका करती है। आपकी यह जिज्ञासा भी थोड़ी देर में शांत हो जाएगी।सर्वविदित है कि पित्तरो(पूर्वजों) को मोक्ष दिलाने की हर इंसान की कामना होती है। इसी कामना की पूर्ति के लिए सनातन(हिंदु) धर्म में पितृ तर्पण का विधान है। पितृ तर्पण का यह विधान भाद्र(भादो) माह में पितृपक्ष में किया जाता है, जो गया श्राद्ध के नाम से जगत प्रसिद्ध है। गया श्राद्ध में  अंतरर्राष्ट्रीय धर्म नगरी गया में बने कई पितृ तर्पण वेदियों एवं अंतः सलिला फल्गु नदी में पितृ पक्ष में पितृ तर्पण का विधान सदियों से चला आ रहा है।इसी पितृ तर्पण विधान में पुनपुन नदी को गया श्राद्ध का प्रवेश द्वार और प्रथम वेदी कहा गया है। इसकी विशद चर्चा पुराणों में है। दरअसल पुराणों में पुनपुन नदी को आदि गंगा कहा गया है और यह मान्यता हैं कि यह नदी पवित्र गंगा नदी से भी प्राचीन है।

 

Bihar News : GK Question of unique railway station only for 15 days stoppage in a year, without return ticket
पुनपुन नदी - फोटो : अमर उजाला
पुनपुन नदी के घाटों  पर युगों-युगों से पिंडदान करने की चली आ रही है परम्परा
पितृपक्ष मेला-2023 का शुभांरभ होते ही पिंडदानियों का पुनपुन नदी घाट पर आने का सिलसिला शुरू हो गया है। लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति हेतू  तर्पण करने आ रहे  हैं ताकि उनके पूर्वजों को मोक्ष  की प्राप्ति हो सके। पुनपुन का नामकरण के बारे में बहुत सी कथायें किताबों में वर्णित है। ‘‘आदि गंगे पुनः पुना’’ इसकी चर्चा पुनः पुना महात्मय में है।

इसका वर्णन है पुराणों में
"आदि गंगा पुनै-पुनै ......." के रूप में मिलता है, जो इसकी गंगा से भी प्राचीन होने को बल प्रदान करता है। अब यह भी जान लीजिए कि यह आदि गंगा यानि पुनपुन नदी औरंगाबाद से ही निकली है और बिहार की राजधानी पटना के पास गंगा इस नदी से जा मिली है। गंगा बड़ी नदी है। इस कारण वहां से पुनपुन को गंगा अपने आगोश में समेट लेती है और वही से इस नदी का अस्तित्व समाप्त हो जाता है और गंगा की अविरल धारा आगे की ओर बढ़  जाती है। औरंगाबाद में पुनपुन नदी का उद्गम स्थल झारखंड की सीमा पर नवीनगर के टंडवा के इलाके में जंगलों में अवस्थित है। अब चूंकि  पुनपुन नदी औरंगाबाद में अवस्थित है तो यह स्वाभाविक है कि पितृ पक्ष में पितृ तर्पण के विधान के अनुसार पितरो को प्रथम पिंड देने के लिए लोगो को पुनपुन नदी के घाटों की शरण लेनी ही होगी। इसी वजह से लोग पितृ पक्ष में औरंगाबाद से लेकर पटना तक जहां-जहां से होकर पुनपुन नदी गुजरी है, वहां के लोग गया श्राद्ध के लिए पितृ तर्पण की प्रथम वेदी पुनपुन नदी के अपनी सुविधा के अनुरूप घाटों पर पित्तरो को प्रथम पिंड का दान कर गया की  पिंड दान वेदियों की और रुख करते है। इस क्रम में दूसरे प्रदेशो के पिंडदानियों के लिए पिंड दान करने पुनपुन नदी के घाटों तक आने का एक माध्यम प्रदेश की राजधानी पटना है, जहां हवाई मार्ग, रेल मार्ग या सड़क मार्ग से आकर बगल में स्थित पुनपुन में आकर पिंड दान कर सकते है। बिहार में पुनपुन नदी के घाटों पर आने का दूसरा और तीसरा माध्यमों में एक तो ऐतिहासिक शेरशाह सूरी पथ है जिसे ग्रैंड ट्रंक रोड यानि जीटी रोड नेशनल हाइवे-16(पूर्व में एनएच-2) के नाम से जाना जाता है। इसी सड़क पर औरंगाबाद जिले के बारुण प्रखंड में सिरिस के पास स्थित पुनपुन नदी के घाट पर सड़क मार्ग से आनेवाले पिंड दानी पित्तरो को प्रथम पिंड दिया करते है। औरंगाबाद जिले में ही पुनपुन नदी के घाट पर रेल मार्ग से पिंड दान करने आने का दूसरा माध्यम पूर्व मध्य रेल के दीनदयाल उपाधाय(डीडीयू) मंडल के अंतर्गत ग्रैंड कॉर्ड रेल लाइन में डीडीयू-गया रेलखंड पर स्थित यह "अनुग्रह नारायण रोड घाट स्टेशन" है जो बिल्कुल ही पुनपुन नदी के तट पर अवस्थित है। 


 

Bihar News : GK Question of unique railway station only for 15 days stoppage in a year, without return ticket
इस स्टेशन पर बिना रेलवे स्टाफ के बुकिंग काउंटर है - फोटो : अमर उजाला
ब्रिटिश कालीन अनुग्रह नारायण रोड घाट स्टेशन पर पहले रूकती थी सिर्फ पैसेंजर ट्रेने, इस बार रूक रही आठ जोड़ी एक्सप्रेस व चार जोड़ी पैसेंजर ट्रेनें, पर वापसी में सफर बेटिकट
अब यह भी जान लीजिए कि पिछले साल 2022 तक 15 दिनों के इस स्टेशन पर सिर्फ पैसेंजर ट्रेने ही रूकती थी। इस बार 2023 में आज यानी 28 सितम्बर को पितृपक्ष के आरंभ होने के पहले दिन गुरुवार से आठ जोड़ी एक्सप्रेस और चार जोड़ी पैसेंजर ट्रेने रुक रही है। इन ट्रेनों का ठहराव पूरे पितृपक्ष यानी 14 अक्टूबर तक होता रहेगा।  इस अवधि के दौरान आप अनुग्रह नारायण रोड घाट स्टेशन  आकर पित्तरो को पिंड दान कर सकते है, पर यह भी जान लीजिए कि यदि घाट स्टेशन से ही आप आगे गया का सफर करना चाहते है तो आपको बेटिकट ही सफर करना होगा क्योकि यहां कोई टिकट काउंटर नहीं है और न ही रेलवे ने इसकी व्यवस्था कर रखी है। यह एक ऐसा रेलवे स्टेशन है जहां ट्रेनें रुकती तो हैं लेकिन यहां से जर्नी शुरू करने वाले पैसेंजर्स को टिकट नहीं मिल पाता है।  अनुग्रह नारायण रोड घाट स्टेशन ब्रिटिश कालीन है। अंग्रेजों के शासनकाल में यहां बुकिंग काउंटर बनाए गए थे। पितृपक्ष मेला शुरू होते ही यहां ट्रेनों का ठहराव शुरू हो जाता है। 26 साल पहले तक यहां रेलवे टिकट मिलता था लेकिन, अब बुकिंग काउंटर खंडहर में तब्दील हो चुका है। बुकिंग काउंटर के बदहाल हो जाने के बाद रेलवे ने अपने स्टाफ को भी यहां से हटा लिया है। यह स्टेशन साल में 15 दिन गुलजार रहता है। पूरे साल में 15 दिन इस रेलवे स्टेशन पर लोगों भी भारी भीड़ होती है। पितृपक्ष के दौरान यहां ट्रेनें रुकती हैं, यात्री यहां उतरते हैं और यहां से जर्नी भी शुरू करते हैं। खास बात की जो यहां से अपनी जर्नी शुरू करते हैं उनके पास टिकट नहीं होता है। लिहाजा हर दिन ये 'बेटिकट' पैसेंजर्स रेलवे मजिस्ट्रेट व टीटीई के शिकार होते हैं। विदआउट टिकट पकड़े जाने पर उन्हें भारी जुर्माना देना पड़ता है, कभी-कभी जेल भी जाना पड़ता है।

बुकिंग काउंटर तो है लेकिन रेलवे का कोई स्टाफ नहीं 
दरअसल  अनुग्रह नारायण रोड घाट स्टेशन को पुनपुन नदी में पूर्वजों के पिंडदान के लिए आने वाले लोगों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसलिए इस स्टेशन पर पूरे साल में केवल पितृपक्ष के दौरान ही ट्रेने ठहरती हैं। 'पितृपक्ष स्पेशल' इस स्टेशन पर किसी रेलकर्मी की स्थायी तैनाती नहीं है। हालांकि  पितृपक्ष के दौरान यहां चार-पांच कर्मियों की अस्थाई तैनाती होती है। वैसे यहां का मुख्य रेलवे स्टेशन अनुग्रह नारायण रोड है, जहां टिकट काउंटर, यात्री शेड जैसी अन्य सारी सुविधाएं हैं और अब यह स्टेशन अल्ट्रा मौडर्न बनने जा रहा है। लोगों का मानना है कि मानव रूपी भगवान श्रीराम ने यहां कभी अपने पुरखों के मोक्ष के लिए पहला पिंडदान किया था। इसके बाद से ही यहां पिंडदान करने की परंपरा शुरू हो गई। यहां पिंड़दानियों को ठहरने के लिए कोलकात्ता के सेठ सुरजमल बड़जात्या ने सालों पहले यहां तीन एकड़ जमीन में फैले करोड़ों रुपए का एक खुबसूरत धर्मशाला निर्माण कराया था। वर्तमान में वह देखरेख के अभाव में बर्बाद होने के कगार पर पहुंच गया है।






 

Bihar News : GK Question of unique railway station only for 15 days stoppage in a year, without return ticket
यहाँ उतरते हैं लोग - फोटो : अमर उजाला
क्या कहते हैं अफसर
अनुग्रह नारायण रोड स्टेशन के प्रबंधक अरविंद कुमार कहते है कि हमें सिर्फ ट्रेनों के ठहराव के संबंध में विभाग से चिट्ठी मिली है। साथ ही सुरक्षा के बंदोबस्त का निर्देश प्राप्त है। इस कारण घाट स्टेशन पर  राजकीय रेल पुलिस के जवानो को तैनात किया गया है। साथ ही घाट स्टेशन की साफ-सफाई कराई गई है।





 

Bihar News : GK Question of unique railway station only for 15 days stoppage in a year, without return ticket
Surya Temple Aurangabad - फोटो : सोशल मीडिया
पंडित कुंदन पाठक कहते हैं
गुरूड़ पुराण पूर्व खंड, अध्याय 84 में पुनः पुना महानद्यां श्राद्वों स्वर्ग निर्यत पितृन जो मगध के संबंध में है। यह भी कहा जाता है। ‘‘कीकटेषु गया पुण्या, पुण्यं राजगृहं वनम्। च्यवनस्याज्ञश्रम पुण्यं नदी पुण्या पुनः पुना।। मगध में गया, राजगृह का जंगल, च्यवन ऋषि का आश्रम तथा पुनपुन नदी पुण्य है। गुरूड़ पुराण में कहा जाता है कि  प्राचीन काल में झारखंड राज्य के पलामू के जंगल में सनक, सनन्दन, सनातन कपिल और पंचषिख ऋषि घोर तपस्या कर रहे थें। जिससें प्रसन्न  होकर ब्रह्मा जी प्रकट हूए। ऋषियों  ने ब्रह्माजी का चरण धोने के लिए पानी खोजा। पानी नही मिलनें पर ऋषियों  ने अपने स्वेद् (यानि अपने शरीर का निकला हूआ पसीना जमा किये) जब पसीना कमंडल में रखा जाता तब कमंडल उलट जाता था। इस तरह बार-बार कमंडल उलटने से ब्रह्मा जी के मुंह से अनायास  निकल गया पुनः पुना। उसके बाद वहां से अजस्र जल की धारा निकली। उसी से ऋषियों ने नाम रख दिया पुनः पुना, जो अब पुनपुन के नाम से मशहूर है। तभी उसी समय ब्रह्माजी ने कहा था जो इस नदी के तट पर जो पिंडदान करेगा वह अपने पूवजों को स्वर्ग पहुंचाएगा। ब्रह्माजी ने पुनपुन नदी के बारे में कहा "पुनःपुना सर्व नदीषु पुण्या, सदावह स्वच्छ जला शुभ प्रदा" उसी के बाद से ही पितृपक्ष में पहला पिंड पुनपुन नदी के ही तट पर का विधान है। सारे संसार के हिन्दु पुनपुन में पहला पिंड देते हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि जब प्रभु श्री रामचन्द्र जी का अपने पिता के आदेश पर चौदह साल का वनवास मिला था, उसी क्रम में कुछ दिनो बाद उनके पिता राजा दशरथ की मृत्यु हो गयी। जिसकी सूचना प्रभु श्रीरामचन्द्र जी को आकाशवाणी के माध्यम से ज्ञात हुआ। ज्ञात होते ही प्रभु श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता से इच्छा जाहिर किया कि इन्हे अपने पिता राजा दशरथ की आत्मा की शांति एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिए ब्रह्माजी के आशीर्वाद  से उत्पन्न हुई पुनपुन नदी में पिंडदान करना है। तब प्रभु श्रीराम पुनपुन नदी के तट पर आकर अपने पिता राजा दशरथ का सर्वप्रथम पिंडदान किया था और बाद उसके दुसरा पिंडदान माता सीता ने गया में किया था। इसकी भी खास पौराणिक मान्यता है कि आखिर माता सीता ने कैसे और क्यों अपने ससुर का पिंडदान किया। बहरहाल तब से यह परम्परा युगो  युगों से चली आ रही है।
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