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Shardiya Navratri: इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर में बिना रक्त बहाए दी जाती है बलि, देश-विदेश से आते हैं श्रद्धालु

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, कैमूर Published by: आदित्य आनंद Updated Mon, 23 Oct 2023 11:29 AM IST
सार

मुख्य पुजारी मुन्ना द्रिवेदी ने कहा कि चंड-मुंड नाम के असुर का वध करने के लिए देवी यहां आई थीं तो चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था। यहीं पर माता ने मुंड का वध किया था।

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Mundeshwari temple has a unique tradition, worshiped with mantra, devotees; Durga Puja, Bihar News, Mahashtami
मां मंडेश्वरी मंदिर। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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मां मुंडेश्वरी और महामंडलेश्वर महादेव मंदिर विश्व के सबसे प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। अष्टकोणीय आकार का यह मंदिर कैमूर जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर भगवनपुर के पवरा पहाड़ी पर स्थित है। करीब 650 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर में शारदीय नवरात्र के दौरान पूजा का विशेष महत्व है। नौ दिन कलश स्थापना कर वैदिक विधि-विधान के साथ पूजा होती है। महाअष्टमी की रात में निशा पूजा का प्रावधान है। इसे देखने के लिए श्रद्धालुओं का भीड़ उमड़ पड़तर है।

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मां मुंडेश्वरी के मंदिर में गर्भगृह के अंदर पंचमुखी शिवलिंग है। दावा किया जाता है कि इसका रंग सुबह, दोपहर व शाम को अलग-अलग दिखाई देता है। कब शिवलिंग का रंग बदल जाता है, पता भी नहीं चलता। यहां देश-विदेश से जो भी लोग माता मुंडेश्वरी की दर्शन करने के लिए आते हैं। मान्यता है कि यहां भक्त माता से जो भी मनोकामना मांगते हैं वह पूर्ण होता है।

चमत्कार देखने वाले अपनी आंखों पर यकीन नहीं कर पाते
पूरे विश्व में इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां अनोखे तरह की बलि होती है। यहां रक्तहीन पशु बलि दी है। मंदिर के मुख्य पुजारी मुन्ना द्रिवेदी ने कहा कि यहां एक अनूठा प्रक्रिया है। बकरा को मां के प्रतिमा के समक्ष लाया जाता है। मंदिर के पुजारी के जरिए मंत्रोच्चार के बाद बकरा पर अक्षत और फूल आदि चढ़ाया जाता है फिर वह बकरा मूर्छित हो जाता है और पुनः मंत्रोच्चारण के बाद अक्षत-फूल बकरा पर मारने के बाद बकरा खड़ा हो जाता है। यहां बलि में बकरा चढ़ाया जाता है, लेकिन उसका जीवन नहीं लिया जाता है। इस चमत्कार को देखने वाले अपनी आंखों पर यकीन नहीं कर पाते हैं। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता पशु बलि की सात्विक परंपरा है। जो सदियों से चली आ रही है। नवरात्र के दौरान इस स्थान पर अद्भुत मेला लगता है। काफी दूर से पूजा-अर्चना करने श्रद्धालु यहां आते हैं।

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मन्नत पूरी होने के लिए चुनरी बांधते श्रद्धालु। - फोटो : अमर उजाला

माता ने यहां किया था चंड-मुंड का वध
मुख्य पुजारी मुन्ना द्रिवेदी ने कहा कि मार्कंडेय पुराण के अनुसार चंड-मुंड नाम के असुर का वध करने के लिए देवी यहां आई थीं तो चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था। यहीं पर माता ने मुंड का वध किया था। इसलिए यह माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं। 

526 ईसवी पूर्व पाया गया यह मंदिर
यहां मिले शिलालेख से पता चलता है कि 526 ईसवी पूर्व यह मंदिर पाया गया। बिहार सरकार की ओर से भक्तों की सुविधा लिए यहां पर विश्रामालय, रज्जुमार्ग आदि का निर्माण कराया जा रहा है। पहाड़ पर स्थित मंदिर में जाने के लिए एक सड़क का निर्माण कराया गया है, जिस पर छोटे वाहन सीधे मंदिर द्वार तक जा सकते हैं। मंदिर तक जाने के लिए 560 सीढ़ियों का रास्ता भी बनाया गया है। वहीं, बिहार राज्य पर्यटन निगम की बसें प्रतिदिन पटना से आते हैं, जो पहाड़ी के नीचे बसे गांव रामगढ़ तक जाती हैं। 

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