बिहार चुनाव की बेला: मगध में सब मुग्ध हैं, पटना में भाजपा के साथ जदयू, कांग्रेस और राजद खेमे में भी दिखी हलचल
बिहार में पिछले 20 साल से नीतीश मुख्यमंत्री हैं और इस बार उनकी दसवीं बारी होगी, गर चुनाव जीत जाते हैं तो। इन दो दशकों में बीजेपी और जदयू में तमाम नेता आए और गए, लेकिन नीतीश कुमार कोई न बन सका। दोनों दलों में दूसरे-तीसरे नंबर पर भी नीतीश के कद का कोई नेता नहीं है। पिछली बार गठबंधन में चुनाव लड़कर जदयू से ज्यादा सीटें पाने के बाद भी भाजपा ने नीतीश को विधायक दल का नेता बनाया और इस बार भी अगर बहुमत मिला और जदयू से ज्यादा सीटें मिलीं, तो भी भाजपा की घोषणा के मुताबिक नीतीश ही मुख्यमंत्री बनेंगे।

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चुनावी हवा का अहसास करने अवध से निकलकर हम मगध में दाखिल ही हुए थे कि सड़कों के लिए बदनाम बिहार में पहला साबका सड़कों से हुआ। जैसे-जैसे दूरी तय होती गई, आशंकाएं दूर होती गईं। हाईवे हो या गांव का रास्ता, सरकार की जुबान में कहें तो सड़कें चकाचक दिखीं। इसकी वजह सिर पर चुनाव हो, चाहे ट्रकों की ओवरलोडिंग पर सख्ती से रोक। बिहार में बदलाव जीवन के हर पहलू में दिखता है, बोली-बात और खानपान में भी। शहर छोटा हो या बड़ा, बाटी-चोखा और दही-चूड़ा की दुकानें खोजने पर मुश्किल से मिलेंगी, पर नुक्कड़-चौराहे मीट-चावल और चाइनीज फूड के ठेलों से पटे पड़े हैं। चुनावी रंगत और नजारे तो अभी चुनाव दूर होने के कारण प्रत्यक्ष नहीं दिखते हैं, लेकिन लोगों को कुरेदेंगे, तो उनमें करंट दिखता है। हमारी चुनावी यात्रा के केंद्र में मध्य बिहार की हृदयस्थली प्रदेश की राजधानी पटना रही। कहते हैं कि यहां की नब्ज पर हाथ रखते ही पूरे प्रदेश की धड़कन का पता चल जाता है, तो हमने भी नब्ज टटोलनी शुरू कर दी। यहां की मिश्रित आबादी में हर रंग दिखे। भाजपा का केसरिया कमाल दिखा तो जदयू का तीर भी निशाने पर सधा मिला। कांग्रेस के साथ राजद की लालटेन भी जगमगाती रही।

विधानसभा से करीब दो किलोमीटर दूर वीरचंद पटेल मार्ग पर सभी प्रमुख पार्टियों के दफ्तर हैं। सुबह के करीब दस बजे हैं, भाजपा दफ्तर में हलचल है, कार्यालय प्रभारी अरविंद शर्मा गेट पर ही मिल जाते हैं। यहां से पहुंचे राजद दफ्तर। 11 बजे थे, परिसर में झाड़ू लग रही थी। गेट पर खड़े रामदीन ने कहा...12-1 बजे तक आईएगा, तब्बै इहां कौनो मिलेगा। सामने जदयू आफिस पहुंचे, तो वहां पुलिस और फरियादी दिखे पर कार्यकर्ता नदारद रहे। बिहार में विधानसभा चुनाव भले छठ (26 अक्तूबर) बाद माने जा रहे हों, पर प्रमुख राजनीतिक दल अभी से अपनी सरकार का दिवास्वप्न दिखा रहे हैं। अपने-अपने फॉर्मूले से सब मुतमईन हैं और गणित भी समझ समझा रहे हैं। राजद दफ्तर में मीडियावालों से घिरे प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव कहते हैं कि नीतीश 74 साल के हो गए हैं, बेरोजगार युवाओं को तेजस्वी में उम्मीद दिखती है। भाजपा इसका काट करती है....नीतीश काम की बदौलत ही 20 वर्ष से लगातार मुख्यमंत्री हैं। उनकी उम्र कोई मुद्दा नहीं। जनसुराज पार्टी के मुखिया प्रशांत किशोर इस बार पूरी जोरदारी से लड़ रहे हैं। विदेश के मोटे पैकेज की नौकरी छोड़ उनकी पार्टी से जुड़े इंजीनियर राकेश रंजन कहते हैं, परंपरागत पार्टियों से बिहार का भला होने से रहा। पिछले चुनाव में जिन 37 सीटों पर तीन हजार से कम मार्जिन पर जीत-हार हुई, वहां पार्टी असर डाल सकती है।
भावी उम्मीदवारों से दीवारें रंगीं...
टिकट दावेदारों के पोस्टरों से दीवारें गुलजार हैं। बिहार में पिछले 20 साल से नीतीश मुख्यमंत्री हैं और इस बार उनकी दसवीं बारी होगी, गर चुनाव जीत जाते हैं तो। इन दो दशकों में बीजेपी और जदयू में तमाम नेता आए और गए, लेकिन नीतीश कुमार कोई न बन सका। दोनों दलों में दूसरे-तीसरे नंबर पर भी नीतीश के कद का कोई नेता नहीं है। पिछली बार गठबंधन में चुनाव लड़कर जदयू से ज्यादा सीटें पाने के बाद भी भाजपा ने नीतीश को विधायक दल का नेता बनाया और इस बार भी अगर बहुमत मिला और जदयू से ज्यादा सीटें मिलीं, तो भी भाजपा की घोषणा के मुताबिक नीतीश ही मुख्यमंत्री बनेंगे। भाजपा की भी मजबूरी है नीतीश के चेहरे पर चुनाव लड़ने की। गठबंधन का सबसे बड़ा ब्रांड नीतीश ही हैं। राजद नेता तेजस्वी ने पिछले चुनाव के बाद जदयू से साझेदारी की सरकार में 17 महीने बतौर मंत्री जो कामकाज किया, उसने प्रभाव छोड़ा है। आंदोलित युवा नौकरी के लिए उनसे भी उम्मीद रख रहा है। यूं तो लालू नेपथ्य में हैं। खुद तेजस्वी पिताजी को पोस्टरों-बैनरों से विदा कर चुके हैं लेकिन भाजपा नहीं चाहती कि लोग लालूराज को भूलें। भाजपा संगठन से जड़े एक बड़े नेता कहते भी हैं... हालांकि लालूराज को विदा हुए दो दशक हो गए हैं लेकिन हम चुनाव के केंद्र में लालू को ही रखना चाहेंगे ताकि उनके दौर के जंगलराज को लोग याद करें।
पटना साहिब चौक पर चुनावी चर्चा शुरू होते ही सरदार मोंटी सिंह ने झिझक छोड़ी और बेधड़क बोले, अजी...क्या बात करते हैं...बिहार चुनाव विकास, नौकरी, घुसपैठ और गरीबी के नाम पर रंग जमा रहा है। पटना में तो टक्कर कांटे की है। मोदी-नीतीश की जोड़ी को राहुल और तेजस्वी से कड़ी चुनौती मिल रही है। इतना सुनते ही मिथिला की मूल निवासी सरोज ओझा ने कहा... महिला क सुरक्षा, शिक्षा आ रोजगार क गप्प कियो नहि क रहल अछि। सब कियो जाति समीकरण में चुनाव के ओझराबय के कोशिश में अछि (महिलाओं की सुरक्षा, शिक्षा और नौकरी पर कोई बात नहीं कर रहा। सभी का जोर चुनाव को जातीय समीकरण में उलझाने की ही है।) यों, चुनावी बेला में सरकार की ओर से लालीपॉप खूब थमाए जा रहे हैं। महिलाओं को 10-10 हजार रुपये काम-धंधा शुरू करने के लिए दिए जाने की घोषणा ने आधी दुनिया पर असर डाला है।