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Viral News: मुस्लिम बेटे ने किया अपनी हिंदू मां का अंतिम संस्कार, अस्थियां विसर्जित करने जाएगा त्रिवेणी संगम

फीचर डेस्क, अमर उजाला Published by: दीक्षा पाठक Updated Tue, 16 Sep 2025 12:32 PM IST
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सार

Viral News: असगर अली एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। शांति देवी और उनके पति भी कभी मेलों में छोटी-छोटी दुकान लगाते थे। दोनों परिवार करीब 30 साल से एक-दूसरे को जानते थे। बहुत समय से दोनों परिवार एक तरह से एक ही परिवार की तरह रहने लगे थे।

Muslim son performed the last rites of his Hindu mother will go to Triveni Sangam to immerse the ashes
मुस्लिम बेटे ने किया हिंदू मां का अंतिम संस्कार - फोटो : एक्स
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विस्तार
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हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की एक बहुत ही खूबसूरत कहानी राजस्थान के भीलवाड़ा से सामने आई है। 67 साल की शांति देवी के निधन पर उनके पड़ोसी 42 साल के असगर अली ने उनकी अंतिम यात्रा का जिम्मा उठाया और हिंदू रीति-रिवाज से उनकी चिता को मुखाग्नि दी। यह देखकर सब भावुक हो उठे और लोगों ने असगर की तारीफ की और कहा कि उन्होंने अपने फर्ज से बढ़कर काम किया। तो आज की इस खबर में हम आपको इसी घटना के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। आइए जानते हैं।

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सोशल मीडिया पर वायरल हुई यह खबर
असगर अली एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। शांति देवी और उनके पति भी कभी मेलों में छोटी-छोटी दुकान लगाते थे। दोनों परिवार करीब 30 साल से एक-दूसरे को जानते थे। बहुत समय से दोनों परिवार एक तरह से एक ही परिवार की तरह रहने लगे थे। 2010 में शांति देवी अपने बेटे के साथ असगर के मोहल्ले में आकर रहने लगीं। वे सब सलीम कुरैशी के मकान में किराए पर रहते थे। असगर की फैमिली ऊपर और शांति देवी नीचे रहती थीं।
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मुस्लिम बेटे ने किा हिंदू मां का अंतिम संस्कार
असगर ने बताया कि साल 2017 में उनके पिता का देहांत हो गया था। उस वक्त भी शांति देवी ने उनकी मां का साथ नहीं छोड़ा और हमेशा एक बहन की तरह उनका साथ दिया। वे असगर को मासी मां की तरह प्यार करती थीं। 2018 में एक जंगली जानवर के हमले में शांति देवी के बेटे की मौत हो गई। तब से वे असगर के घर के साथ और भी ज्यादा जुड़ गईं। शांति देवी ने असगर को मां जैसा प्यार दिया और असगर ने भी उन्हें अपना माना।

पड़ोसी मासी ने बच्चे की तरह पाला
दो साल पहले असगर की असली मां का निधन हो गया था। उस मुश्किल वक्त में शांति देवी ने असगर को कभी अकेला नहीं महसूस होने दिया। उन्होंने हर समय उनकी चिंता की खाने से लेकर कपड़ों तक हर छोटी बड़ी बात का ख्याल रखा। असगर बताते हैं कि शांति मां ने उनके नहाने का पानी गर्म किया करता, कपड़े धोए और जब वे काम से लौटते तो प्यार से कहती, “मेरा बेटा आ गया।” उनकी पत्नी भी शायद उतना ध्यान नहीं देती थी जितना शांति मां देती थीं। इसलिए असगर ने अपनी मां के सम्मान में अपने घर में नॉनवेज खाना बंद कर दिया था। वे ईद और दीपावली साथ मिलकर मनाते थे और हमेशा एक परिवार की तरह रहे।

असगर ने पूरी की अंतिम इच्छा
कुछ समय से शांति देवी बीमार चल रही थीं और अब उनका देहांत हो गया। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनकी अस्थियां प्रयागराज के त्रिवेणी संगम या चित्तौड़गढ़ के मातृकुंडिया में विसर्जित की जाएं। यह काम भी असगर ही करेंगे। उन्होंने हिंदू रीति-रिवाज से उनका अंतिम संस्कार किया और कहा कि अब उनके लिए कुछ भी नहीं रहा। मां के बिना वे बहुत अकेले हो गए हैं। रोते हुए असगर ने कहा कि वे अपना दुख किसी को नहीं बता सकते और दुआ करते हैं कि अगली जिन्दगी में उन्हें फिर ऐसी ही मां मिले।

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