Crude: आयात कम करने के दबाव के बीच रूस की हिस्सेदारी घटने से भारत की कच्चे तेल की लागत बढ़ी, रिपोर्ट में दावा
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की ताजा रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2026 में अब तक दुबई बेंचमार्क की तुलना में भारत की औसत कच्चे तेल की आयात लागत में तेजी से वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में इस इजाफे का कारण रूसी तेल का सस्ता होना, अन्य देशों से तेल का आयात महंगा होना, वेनेजुएल से कम तेल आयात अमेरिका से अधिक तेल का आयात है।

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वित्त वर्ष 2026 में अब तक दुबई बेंचमार्क की तुलना में भारत की औसत कच्चे तेल की आयात लागत में तेजी से वृद्धि हुई है। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज ने अपनी ताजा रिपोर्ट में यह बात कही है। ब्रोकरेज ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत के तेल बास्केट में रूसी कच्चे तेल की हिस्सेदारी में गिरावट आई है।

रिपोर्ट के अनुसार वैकल्पिक कच्चे तेल के अधिक महंगा होने के कारण प्रीमियम भी ऊंचा रह सकता है और रिफाइनरों की लागत पर असर पड़ सकता है। कोटक के अनुसार, वित्त वर्ष 2026 में भारत की औसत तेल आयात लागत दुबई क्रूड की तुलना में लगभग 5 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल अधिक है। यह लागत हाल के वर्षों में सबसे अधिक है। रिपोर्ट में इस इजाफे का कारण रूसी तेल का सस्ता होना, अन्य देशों से तेल का आयात महंगा होना, वेनेजुएल से कम तेल आयात अमेरिका से अधिक तेल का आयात है।
कोटक ने वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2026 में अब तक घटकर 34 प्रतिशत (वित्त वर्ष 2024 और वित्त वर्ष 2025 में 36 प्रतिशत) रह गई है। हालांकि अब भी भारत सबसे अधिक तेल रूस से खरीद रहा है पर हाल के महीनों में उसने इस मामले में संतुलन बनाने की कोशिश की है।
पिछले तीन वर्षों में रूस कच्चे तेल का बड़ा स्त्रोत
रिपोर्ट में कहा गया है कि "वित्त वर्ष 2022 तक भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस की हिस्सेदारी न के बराबर थी, लेकिन पिछले तीन वर्षों से रूस कच्चे तेल का सबसे बड़ा स्रोत है।" 2022 की शुरुआत में यूक्रेन संघर्ष के बाद रूसी तेल पर प्रतिबंध लगने के बाद भारत के रिफाइनरों ने भारी छूट का लाभ उठाते हुए मास्को से बड़ी मात्रा में तेल खरीदा। रूस के सस्ते बैरल ने भारत को अरबों डॉलर बचाने में मदद की है। कोटक ने अनुमान लगाया, "अप्रैल 2022 से रूस से आयात के कारण 16.7 अरब अमेरिकी डॉलर (रूस से बाहर के आयात की तुलना में) की संभावित बचत हुई है।"
रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान भारत ने भारी छूट का लाभ उठाया
2022 की शुरुआत में यूक्रेन संघर्ष के बाद रूसी तेल पर प्रतिबंध लगने के बाद भारत के रिफाइनरों ने भारी छूट का लाभ उठाते हुए मास्को से खरीद में उल्लेखनीय वृद्धि शुरू कर दी। मूल्य के लिहाज से, सस्ते बैरल ने भारत को अरबों डॉलर बचाने में मदद की है।
रूसी तेल आयात से 16.7 डॉलर की संभावित बचत हुई
कोटक ने अनुमान लगाया कि अप्रैल 2022 से, रूसी आयात से 16.7 अरब डॉलर (रूस से बाहर के आयात की तुलना में) की संभावित बचत हुई है। रूसी कच्चे तेल के लिए औसत छूट इस वर्ष अब तक 4.7 डॉलर प्रति बैरल है, जबकि वित्त वर्ष 2025 में 2.5 डॉलर प्रति बैरल होगी, लेकिन वित्त वर्ष 2023/24 के स्तर से कम है।
पिछले वर्षों की तुलना में कम छूट के बावजूद, रूसी बैरल भारतीय रिफाइनरों के लिए लागत प्रभावी बने हुए हैं। कोटक ने कहा कि पश्चिमी प्रतिबंधों और धीरे-धीरे बढ़ते उपायों के बावजूद, रूस के तेल निर्यात पर अभी तक कोई खास असर नहीं पड़ा है। यूरोपीय संघ के देशों की ओर से आयात में कमी की भरपाई भारत, चीन, तुर्की और कुछ अन्य देशों द्वारा आयात में वृद्धि से हुई है।
भारत पर भू-राजनीतिक दबाव बढ़ने की संभावना
हालांकि, रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भारत पर भू-राजनीतिक दबाव बढ़ सकता है। कोटक ने कहा कि हालांकि भारत सरकार ने इसकी पुष्टि नहीं की है, लेकिन हमारा मानना है कि रूस से कच्चे तेल के आयात को कम करने का दबाव बढ़ सकता है।
कुल मिलाकर, ब्रोकरेज ने कहा कि भारत भू-राजनीतिक दबावों और आर्थिक प्राथमिकताओं के बीच संतुलन बनाए रखेगा। विदेश मंत्रालय के हवाले से कहा गया कि ऊर्जा के अस्थिर परिदृश्य में भारतीय उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना हमारी निरंतर प्राथमिकता रही है। हमारी आयात नीतियां पूरी तरह इसी उद्देश्य से निर्देशित होती हैं।