Gold: सोना कमोडिटी है या पैसा? इसे किस रूप में देखा जाए, जानें एसबीआई ने अपनी रिपोर्ट में क्या कहा
एसबीआई की रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है कि क्या सोने को भारत में केवल एक कमोडिटी के रूप में देखा जाना चाहिए, या इसे मुद्रा और रणनीतिक संपत्ति के रूप में भी मानकर एक दीर्घकालिक आर्थिक नीति बनाई जानी चाहिए? आइए विस्तार से जानते हैं।
विस्तार
भारत में सोना सिर्फ एक कीमती धातु नहीं यह परंपरा, सुरक्षा और समृद्धि का प्रतीक है। जन्म से विवाह तक, त्योहारों से निवेश तक, सोना भारतीय परिवारों के हर पड़ाव में गहराई से जुड़ा है। लेकिन क्या अब वक्त आ गया है कि हम इसे सिर्फ भावनात्मक संपत्ति नहीं, बल्कि आर्थिक नीति के नजरिए से देखें? स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) की हालिया रिपोर्ट ने यही सवाल उठाया है।
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भारत को स्पष्ट गोल्ड पॉलिसी की जरूरत
एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को अब एक स्पष्ट गोल्ड पॉलिसी की जरूरत है, जो यह तय करे कि सोना आखिर कमोडिटी है या धन, और उपभोक्ता इसे कैसे समझें। फिलहाल भारत की गोल्ड पॉलिसी मुख्य रूप से सोने की मांग घटाने और मौजूदा स्टॉक के पुनर्चक्रण पर केंद्रित है। रिपोर्ट में बताया गया है कि सोना पूंजी निर्माण में सीधा योगदान नहीं देता, लेकिन अगर इसका सही तरीके से मुद्रीकरण किया जाए, तो यह भविष्य के निवेश पर सकारात्मक असर डाल सकता है।
सोना कमोडिटी और मुद्रा दोनों के रूप में देखा जा सकता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसे किस नजरिए से इस्तेमाल किया जा रहा है। इसे आसान भाषा में समझें।
1. सोना कमोडिटी के रूप में; जब सोना गहनों, औद्योगिक उपयोग या निवेश के लिए खरीदा-बेचा जाता है, तो इसे कमोडिटी माना जाता है। इसका मूल्य बाजार में मांग और आपूर्ति से तय होता है।
2. सोना मुद्रा के रूप में; जब सोना मूल्य का आदान-प्रदान करने या धन को सुरक्षित रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो इसे मुद्रा के रूप में देखा जाता है।
पूर्व और पश्चिम की सोच में फर्क
रिपोर्ट का कहना है कि सोने को लेकर पूर्व और पश्चिम के नजरिए में बड़ा अंतर है। पश्चिमी देशों में सोना पब्लिक प्रॉपर्टी यानी सार्वजनिक संपत्ति की तरह देखा जाता है। इसके उलट, भारत, जापान, कोरिया और चीन जैसे पूर्वी देशों में सोना अब भी निजी संपत्ति के रूप में घरों, तिजोरियों और आभूषणों के रूप में सुरक्षित रखा जाता है।
आजादी के बाद से सोने की कीमतों में हुई 1,400 गुना की वृद्धि
भारत में सोने की कीमतों ने आजादी के बाद से अब तक जबरदस्त उछाल दर्ज किया है। साल 1947 में जहां सोना महज 88 रुपये प्रति 10 ग्राम था, वहीं अब इसकी कीमत लगभग 1.24 लाख रुपये तक पहुंच चुकी है। यानी करीब 1,400 गुना वृद्धि।
विशेषज्ञों का कहना है कि सोने की कीमतों में यह तेज़ बढ़ोतरी कई आर्थिक और भू-राजनीतिक घटनाओं का नतीजा है जैसे 1962 का भारत-चीन युद्ध, 1970 के दशक के तेल संकट, 1980 के दशक की महंगाई, 1991 की आर्थिक उदारीकरण नीतियां, और हाल के वर्षों में वैश्विक संघर्षों तथा मुद्रा कमजोर होने का असर।
समय के साथ सोने का रूप भी बदला
अब उपभोक्ता सोने को सिर्फ गहनों या सिक्कों के रूप में नहीं, बल्कि निवेश के एक बेहतर विकल्प के रूप में देखने लगे हैं। समय के साथ फिजिकल गोल्ड की जगह सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड, गोल्ड ईटीएफ, डिजिटल गोल्ड और गोल्ड म्यूचुअल फंड जैसे नए साधन लोकप्रिय हो गए हैं। ये विकल्प सुरक्षित हैं, टैक्स में फायदा देते हैं और जरूरत पड़ने पर आसानी से खरीदे या बेचे जा सकते हैं। यानी अब उपभोक्ताओं के लिए सोना सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि स्मार्ट और आसान निवेश बन गया है।
सोने पर चीन की साफ रणनीति, भारत अब भी नीति के इंतजार में
एसबीआई ने भारत और चीन की तुलना करते हुए कहा कि चीन का केंद्रीय बैंक करीब 2,300 टन सोने का भंडार रखता है, जबकि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पास लगभग 880 टन सोना है।
- चीन के पास सोने पर एक औपचारिक नीति है, जबकि भारत के मामले में ऐसी कोई स्पष्ट नीति मौजूद नहीं है।
- चीन में औसतन हर परिवार के पास 10 ग्राम से भी कम सोना है, जिसका लक्ष्य 20 ग्राम तक पहुंचाना है। वहीं भारतीय परिवारों के पास औसतन 25 ग्राम से ज्यादा सोना है।
- चीन में घरेलू सोना नीति चालू खाते के रुझानों से जुड़ी है, जबकि भारत में नीति जरूरत के हिसाब से बनाई जाती है।
- चीन के पास गोल्ड पॉलिसी पर स्पष्ट दिशा है, भले ही उसे सार्वजनिक नहीं किया गया हो, जबकि भारत में अब तक इस दिशा में कोई औपचारिक नीति तैयार नहीं की गई है।
- चीन के वाणिज्यिक बैंक सोने के उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला के लगभग हर चरण में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। वहीं भारत में बैंकिंग क्षेत्र की भागीदारी सीमित है, वे मुख्य रूप से रत्न और आभूषण क्षेत्र, निर्यातकों और गोल्ड डिपॉजिट्स के वित्तपोषण तक सीमित रहते हैं।
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भारत में सोने का घरेलू उत्पादन सीमित
रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन दुनिया का सबसे बड़ा सोना उत्पादक देश है, जहां परख-परीक्षण सुविधाएं तेजी से विकसित हो रही हैं। इसके विपरीत, भारत में सोने का घरेलू उत्पादन सीमित है। वित्त वर्ष 2025 के दौरान 1,627 किलोग्राम सोने का खनन हुआ। हालांकि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) की हालिया रिपोर्टों में मध्य प्रदेश, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में बड़े सोना भंडार होने के संकेत मिले हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की स्थिति मजबूत
इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चीन की स्थिति मजबूत है। वह लंदन बुलियन मार्केट एसोसिएशन (LBMA) का सदस्य है। वहीं भारत अभी सदस्य नहीं है। इसके बावजूद भारत दुनिया के सबसे बड़े सोने के आभूषण निर्यातकों में से एक है।
भारत की गोल्ड पॉलिसी का उद्देश्य क्या रहा?
रिपोर्ट में कहा गया है कि आजादी के बाद से भारत की गोल्ड पॉलिसी कुछ तय उद्देश्यों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। इनका उद्देश्य लोगों को दूसरे निवेश विकल्पों की ओर मोड़ना, सोने की आपूर्ति को नियंत्रित करना, तस्करी पर रोक लगाना, घरों में सोने की मांग घटाना, कीमतों को स्थिर रखना और विदेशी मुद्रा संतुलन बनाए रखना रहा है।
लेकिन रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से ज्यादातर नीतियां अल्पकालिक रहीं, जिनका ध्यान केवल भौतिक सोने की मांग कम करने पर था। लंबे समय के नजरिए से सिर्फ तीन प्रमुख रिपोर्ट, 1992 में आरबीआई की आंतरिक रिपोर्ट और तारापोर समिति की दो रिपोर्ट ने ही इस दिशा में दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाने का प्रयास किया।
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सोना आज बन गई है रणनीतिक संपत्ति
एसबीआई ने कहा कि सोने के भू-राजनीतिक महत्व पर पहले कभी अच्छे से ध्यान नहीं दिया गया, जबकि आज सोना वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक अहम रणनीतिक संपत्ति बन चुका है। साथ ही, पहले की नीतियों में गोल्ड इंडस्ट्री के सुझावों को भी शामिल नहीं किया गया, जबकि यह क्षेत्र प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से देश में लाखों लोगों को रोजगार देता है।
रिपोर्ट ने जोर देकर कहा कि अब भारत को सोने पर एक स्पष्ट, दीर्घकालिक और संतुलित नीति की जरूरत है। ऐसी नीति जो सोने के आर्थिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक महत्व को समझते हुए बनाई जाए।