Year Ender: 2025 में मिडकैप-स्मॉलकैप शेयरों में सुस्ती, बाजार के आंकड़ों से समझें निवेशकों का फोकस कहां
2025 में शेयर बाजार में मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों का प्रदर्शन कमजोर रहा, जबकि सेंसेक्स मजबूती के साथ आगे बढ़ा। इसकी मुख्य वजह पिछले दो वर्षों की तेज तेजी के बाद ऊंचे वैल्यूएशन पर मुनाफावसूली और बाजार का सामान्यीकरण रहा। रुपये में गिरावट, भारत-अमेरिका व्यापार वार्ताओं को लेकर अनिश्चितता और विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली से छोटे शेयरों पर दबाव बढ़ा।
विस्तार
इस साल शेयर बाजार में छोटे और मझोले शेयरों का प्रदर्शन बड़े ब्लू-चिप शेयरों के मुकाबले कमजोर रहा। पिछले दो वर्षों की तेज तेजी के बाद ऊंचे वैल्यूएशन पर मुनाफावसूली शुरू हुई, जिसका असर मिडकैप और स्मॉलकैप सेगमेंट पर साफ दिखा।
विश्लेषकों का कहना है कि 2025 में मिडकैप और स्मॉलकैप सूचकांकों की कमजोरी दरअसल बाजार के सामान्यीकरण (मार्केट नॉर्मलाइजेशन) का नतीजा है। 2023 और 2024 में इन शेयरों ने असाधारण रिटर्न दिए थे, जिसके बाद कीमतें कमाई की तुलना में काफी ऊपर चली गई थीं। इसके अलावा रुपये में गिरावट, भारत-अमेरिका व्यापार वार्ताओं को लेकर अनिश्चितता और विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली ने भी व्यापक बाजार में जोखिम से बचने (रिस्क-ऑफ) का माहौल बनाया।
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क्या रहा आंकड़ा?
24 दिसंबर तक बीएसई मिडकैप इंडेक्स मामूली 360.25 अंक यानी 0.77 प्रतिशत चढ़ा। वहीं बीएसई स्मॉलकैप इंडेक्स 3,686.98 अंक या 6.68 प्रतिशत टूट गया। इसके उलट 30 शेयरों वाला बीएसई सेंसेक्स 7,269.69 अंक यानी 9.30 प्रतिशत की मजबूती के साथ आगे रहा।
क्यों पिछड़े छोटे शेयर?
बाजार विशेषज्ञों के मुताबिक 2024 में स्मॉलकैप इंडेक्स ने 29 प्रतिशत से ज्यादा और मिडकैप ने करीब 26 प्रतिशत रिटर्न दिया था, जो सेंसेक्स से कहीं ज्यादा था। इतनी तेज़ तेजी के बाद वैल्यूएशन बहुत ऊंचे हो गए, जबकि कमाई उसी रफ्तार से नहीं बढ़ी। 2025 में यही असंतुलन सुधरना शुरू हुआ।
अनिश्चित वैश्विक माहौल में निवेशकों ने मजबूत बैलेंस शीट और स्थिर कमाई वाले बड़े शेयरों की ओर रुख किया। वहीं छोटे और मझोले शेयर, जो फंडिंग लागत, मार्जिन दबाव और आर्थिक सुस्ती के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं, ज्यादा उतार-चढ़ाव का शिकार बने।
विश्लेषकों का यह भी कहना है कि आमतौर पर छोटे शेयर घरेलू निवेशकों की पसंद होते हैं, जबकि विदेशी निवेशक बड़े और सुरक्षित ब्लू-चिप शेयरों पर ज्यादा भरोसा करते हैं। इसी वजह से एफआईआई बिकवाली का असर मिडकैप-स्मॉलकैप पर ज्यादा पड़ा।
उतार-चढ़ाव के स्तर
- बीएसई मिडकैप इंडेक्स ने इस साल 18 नवंबर को 47,549.4 का स्तर छुआ, जबकि इसका रिकॉर्ड उच्च स्तर सितंबर 2024 में 49,701.15 रहा था। स्मॉलकैप इंडेक्स ने जनवरी 2025 में 56,497.39 का एक साल का उच्च स्तर बनाया, लेकिन अप्रैल में गिरकर 41,013.68 तक आ गया। वहीं सेंसेक्स ने दिसंबर में 86,159.02 का अब तक का सर्वोच्च स्तर हासिल किया।
- 2024 में बीएसई का बेंचमार्क सेंसेक्स 5,898.75 अंक या 8.16 प्रतिशत बढ़ा, और निफ्टी 1,913.4 अंक या 8.80 प्रतिशत बढ़ा था। पिछले साल बीएसई स्मॉलकैप सूचकांक 12,506.84 अंक या 29.30 प्रतिशत चढ़ा और मिडकैप सूचकांक 9,605.44 अंक या 26.07 प्रतिशत बढ़ा था।
- वहीं 2023 में, बीएसई बेंचमार्क 11,399.52 अंक या 18.73 प्रतिशत बढ़ गया था। बीएसई स्मॉलकैप सूचकांक 2023 में 13,746.97 अंक या 47.52 प्रतिशत बढ़ा, जबकि मिडकैप सूचकांक 11,524.72 अंक या 45.52 प्रतिशत चढ़ा।
- 2022 में, बीएसई मिडकैप इंडेक्स 344.42 अंक या 1.37 प्रतिशत बढ़ा, जबकि स्मॉलकैप इंडेक्स 530.97 अंक या 1.80 प्रतिशत गिरा। बीएसई का सूचकांक 2022 के अंत में 4.44 प्रतिशत या 2,586.92 अंकों की वार्षिक वृद्धि के साथ समाप्त हुआ था।
आगे की राह
बाजार जानकारों की राय में छोटे और मझोले शेयरों को लेकर आगे का नजरिया सतर्क लेकिन सकारात्मक है। जैसे-जैसे वैल्यूएशन ठंडे पड़ेंगे और कमाई की स्पष्टता बढ़ेगी, चुनिंदा शेयरों में मौके बन सकते हैं। भारत की स्थिर जीडीपी वृद्धि और मजबूत घरेलू लिक्विडिटी से भी समर्थन मिलने की उम्मीद है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि आगे व्यापक तेजी तभी आएगी जब कमाई में ठोस सुधार दिखेगा। अगला दौर लिक्विडिटी नहीं, बल्कि मजबूत बुनियादी कारकों (फंडामेंटल्स) से संचालित होने की संभावना है। रुपये की स्थिरता भी एक अहम भूमिका निभाएगी, अगर मुद्रा दबाव कम होता है तो मिडकैप और स्मॉलकैप फिर से बड़े शेयरों के साथ प्रदर्शन का अंतर पाट सकते हैं।