{"_id":"6848b9ae765054e8b101f8b5","slug":"sbi-report-if-repo-rate-cut-continues-for-two-years-interest-cost-will-decrease-further-know-updates-2025-06-11","type":"story","status":"publish","title_hn":"SBI Report: रेपो दर में कटौती दो साल जारी रही तो और घटेगी ब्याज लागत; परिवारों को हर साल होगी 60000 ₹ तक बचत","category":{"title":"Business Diary","title_hn":"बिज़नेस डायरी","slug":"business-diary"}}
SBI Report: रेपो दर में कटौती दो साल जारी रही तो और घटेगी ब्याज लागत; परिवारों को हर साल होगी 60000 ₹ तक बचत
अजीत सिंह, नई दिल्ली
Published by: शिव शुक्ला
Updated Wed, 11 Jun 2025 04:33 AM IST
विज्ञापन
सार
एसबीआई ने एक रिपोर्ट में कहा है कि रेपो दर घटने के तुरंत बाद ईबीएलआर से जुड़े कर्ज सस्ते होने लगे हैं। अगर आरबीआई की नरम दर की यह रणनीति अगले दो साल तक जारी रहती है, तो इससे परिवारों की ब्याज लागत में और गिरावट आएगी।

रेपो रेट
- फोटो : amarujala.com
विज्ञापन
विस्तार
रेपो दर में कटौती के बाद बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों के कर्ज पर ब्याज दर घटाने से भारतीय परिवारों की सालाना 50,000 से 60,000 रुपये की बचत होगी। यह स्थिति तब होगी, जब हम यह मान लें कि खुदरा और छोटे, मझोले एवं मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) के 80 फीसदी कर्ज ईबीएलआर से जुड़े हैं। ईबीएलआर का मतलब बाहरी बेंचमार्क लेंडिंग रेट है, जो रेपो दर से जुड़ा होता है।
एसबीआई ने एक रिपोर्ट में कहा, रेपो दर घटने के तुरंत बाद ईबीएलआर से जुड़े कर्ज सस्ते होने लगे हैं। अगर आरबीआई की नरम दर की यह रणनीति अगले दो साल तक जारी रहती है, तो इससे परिवारों की ब्याज लागत में और गिरावट आएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्याज दरों में ढील के मौजूदा चक्र में आरबीआई इस साल फरवरी से अब तक रेपो दर में एक फीसदी की कटौती कर चुका है। इससे ईबीएलआर ब्याज दरें अपने आप कम हो गई हैं। नकद आरक्षित अनुपात और लिक्विडिटी कवरेज रेश्यों आदि जैसे सभी सेगमेंट को हटा दें तो बैंकों के पास 100 रुपये की प्रत्येक जमा राशि पर वाणिज्यिक कर्ज देने के लिए सिर्फ 44.4 रुपये बचते हैं।
भारत में घरेलू कर्ज उभरते देशों की तुलना में 7% कम
2008 से 2013 के बीच ब्याज दर में सर्वाधिक 4.5% कटौती
रिपोर्ट में आरबीआई के आंकड़े के हवाले से बताया गया है, रेपो दर में सबसे अधिक 4.5 फीसदी की कटौती सितंबर, 2008 से सितंबर, 2013 के बीच हुई थी। इस दौरान रेपो दर में सर्वाधिक 4 फीसदी वृद्धि भी हुई। उसके बाद दिसंबर, 2018 से दिसंबर, 2024 के बीच में 2.5 फीसदी की कमी की गई थी। 2003 से 2024 तक हर गवर्नर ने अपने कार्यकाल में रेपो दर में दो फीसदी से ज्यादा की कटौती की।
दास के कार्यकाल में बराबर रही दर
पूर्व गवर्नर शक्तिकांत दास के छह साल के कार्यकाल में रेपो दर शुद्ध रूप से बराबर रही। कोरोना के कारण दास ने अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए उस दौरान जरूर 2.50 फीसदी की कटौती की थी, लेकिन बाद में उतनी ही बढ़ा भी दी। इस तरह से जिस दर पर उन्हें जिम्मेदारी मिली, उसी स्तर पर उन्होंने विदाई भी ली।
इसे भी पढ़ें- Mutual Funds: इक्विटी बाजारों में मंदी का असर म्यूचुअल फंड्स के इक्विटी प्रवाह पर, जानिए क्या कहते हैं जानकार
रेपो दर घटने से बैंकों में बढ़ जाती है नकदी
आंकड़े बताते हैं कि जब भी रेपो दर में कमी की गई है, बैंकिंग सिस्टम में नकदी बढ़ी है। 2008 से 2025 के बीच पांच गवर्नर के कार्यकाल में केवल रघुराम राजन को छोड़ दें तो हर बार नकदी बढ़ी है। यही हाल संजय मल्होत्रा के कार्यकाल में हुई है। इस समय बैंकों के पास 9.5 लाख करोड़ रुपये की नकदी है।
इसे भी पढ़ें- Digital Divide: 48.4% ग्रामीण महिलाओं के पास मोबाइल फोन नहीं, 57.6% के पास ही इंटरनेट तक पहुंच: एनएसओ डेटा

Trending Videos
एसबीआई ने एक रिपोर्ट में कहा, रेपो दर घटने के तुरंत बाद ईबीएलआर से जुड़े कर्ज सस्ते होने लगे हैं। अगर आरबीआई की नरम दर की यह रणनीति अगले दो साल तक जारी रहती है, तो इससे परिवारों की ब्याज लागत में और गिरावट आएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्याज दरों में ढील के मौजूदा चक्र में आरबीआई इस साल फरवरी से अब तक रेपो दर में एक फीसदी की कटौती कर चुका है। इससे ईबीएलआर ब्याज दरें अपने आप कम हो गई हैं। नकद आरक्षित अनुपात और लिक्विडिटी कवरेज रेश्यों आदि जैसे सभी सेगमेंट को हटा दें तो बैंकों के पास 100 रुपये की प्रत्येक जमा राशि पर वाणिज्यिक कर्ज देने के लिए सिर्फ 44.4 रुपये बचते हैं।
विज्ञापन
विज्ञापन
भारत में घरेलू कर्ज उभरते देशों की तुलना में 7% कम
- रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में घरेलू कर्ज अन्य उभरते देशों के 49.1 फीसदी की तुलना में सिर्फ 42 फीसदी है। हालांकि, तीन वर्षों में इसमें वृद्धि हुई है। दिलचस्प बात है कि यह वृद्धि कर्ज के बजाय ग्राहकों की संख्या बढ़ने से हुई है। परिवारों पर बढ़ता कर्ज इसलिए चिंताजनक नहीं है क्योंकि पोर्टफोलियो का दो तिहाई हिस्सा बेहतर गुणवत्ता वाला है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्यादातर लोग क्रेडिट कार्ड, कंज्यूमर ड्यूरेबल और अन्य पर्सनल लोन ले रहे हैं। इन सभी का हिस्सा कुल खुदरा और एमएसएमई कर्ज में 45 फीसदी है।
- होम और ऑटो लोन की हिस्सेदारी 25 फीसदी है। उत्पादक उद्देश्यों जैसे कृषि, कारोबार और शिक्षा क्षेत्र का कुल कर्ज में हिस्सा 30 फीसदी है।
2008 से 2013 के बीच ब्याज दर में सर्वाधिक 4.5% कटौती
रिपोर्ट में आरबीआई के आंकड़े के हवाले से बताया गया है, रेपो दर में सबसे अधिक 4.5 फीसदी की कटौती सितंबर, 2008 से सितंबर, 2013 के बीच हुई थी। इस दौरान रेपो दर में सर्वाधिक 4 फीसदी वृद्धि भी हुई। उसके बाद दिसंबर, 2018 से दिसंबर, 2024 के बीच में 2.5 फीसदी की कमी की गई थी। 2003 से 2024 तक हर गवर्नर ने अपने कार्यकाल में रेपो दर में दो फीसदी से ज्यादा की कटौती की।
दास के कार्यकाल में बराबर रही दर
पूर्व गवर्नर शक्तिकांत दास के छह साल के कार्यकाल में रेपो दर शुद्ध रूप से बराबर रही। कोरोना के कारण दास ने अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए उस दौरान जरूर 2.50 फीसदी की कटौती की थी, लेकिन बाद में उतनी ही बढ़ा भी दी। इस तरह से जिस दर पर उन्हें जिम्मेदारी मिली, उसी स्तर पर उन्होंने विदाई भी ली।
इसे भी पढ़ें- Mutual Funds: इक्विटी बाजारों में मंदी का असर म्यूचुअल फंड्स के इक्विटी प्रवाह पर, जानिए क्या कहते हैं जानकार
रेपो दर घटने से बैंकों में बढ़ जाती है नकदी
आंकड़े बताते हैं कि जब भी रेपो दर में कमी की गई है, बैंकिंग सिस्टम में नकदी बढ़ी है। 2008 से 2025 के बीच पांच गवर्नर के कार्यकाल में केवल रघुराम राजन को छोड़ दें तो हर बार नकदी बढ़ी है। यही हाल संजय मल्होत्रा के कार्यकाल में हुई है। इस समय बैंकों के पास 9.5 लाख करोड़ रुपये की नकदी है।
इसे भी पढ़ें- Digital Divide: 48.4% ग्रामीण महिलाओं के पास मोबाइल फोन नहीं, 57.6% के पास ही इंटरनेट तक पहुंच: एनएसओ डेटा