US: ट्रंप की टैरिफ नीति से दुनियाभर की आर्थिक स्थिरता को खतरा; US मीडिया ने कहा- सियासी लाभ के लिए उठाया कदम
द न्यूयॉर्क टाइम्स, द वॉशिंगटन पोस्ट और सीएनएन ने ट्रंप की टैरिफ नीति को आर्थिक रूप से जोखिम भरी, अल्पकालिक राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया कदम और वैश्विक व्यापार व्यवस्था को अस्थिर करने वाला बताया है। आक्रामक टैरिफ नीति न सिर्फ निर्यात-आयात करने वाले देशों के लिए चिंता का विषय है, बल्कि आम उपभोक्ताओं और कंपनियों की लागत में भी इजाफा होगा।

विस्तार
अंतरराष्ट्रीय व्यापार में टैरिफ युद्ध के बीच अमेरिकी मीडिया ने कहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति से पूरी दुनिया की आर्थिक स्थिरता खतरे में पड़ जाएगी। द न्यूयॉर्क टाइम्स, द वॉशिंगटन पोस्ट और सीएनएन ने ट्रंप की टैरिफ नीति को आर्थिक रूप से जोखिम भरी, अल्पकालिक राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया कदम और वैश्विक व्यापार व्यवस्था को अस्थिर करने वाला बताया है। आक्रामक टैरिफ नीति न सिर्फ निर्यात-आयात करने वाले देशों के लिए चिंता का विषय है, बल्कि आम उपभोक्ताओं और कंपनियों की लागत में भी इजाफा होगा। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं ने भी इस विवाद पर गंभीर चिंता जताई है।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने तो यहां तक लिखा कि ट्रंप की यह नीति अमेरिकी किसानों, उपभोक्ताओं और विनिर्माण कंपनियों पर उल्टा असर डाल रही है, जबकि वाशिंगटन पोस्ट ने इसे सदियों पुरानी संरक्षणवादी सोच की वापसी करार दिया। इसे ट्रंप की संकीर्ण राष्ट्रवादी सोच का परिणाम बताते हुए अखबार ने लिखा कि यह नीति वैश्विक सहयोग की बजाय टकराव को बढ़ावा देती है और व्यापार में अनिश्चितता फैलाकर निवेशकों और कंपनियों का भरोसा कमजोर करती है। अखबार ने आंकड़ों के साथ बताया कि कैसे इस नीति से अमेरिका के व्यापार घाटे में कोई ठोस कमी नहीं आई, बल्कि घरेलू महंगाई और उद्योगों पर दबाव बढ़ा। सीएनएन ने तो इसे सीधे-सीधे व्यापार युद्ध करार दिया और ट्रंप के निर्णयों को तात्कालिक राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया कदम बताया। इसकी वजह से न केवल दुनिया के कई महत्वपूर्ण देशों से संबंध खराब हुए, बल्कि इससे अमेरिका की वैश्विक नेतृत्व की साख भी कमजोर हुई। इन संस्थानों का मानना है कि ट्रंप की टैरिफ नीति भावनात्मक राष्ट्रवाद पर आधारित थी, लेकिन आर्थिक दृष्टि से यह अमेरिका के दीर्घकालिक हितों के लिए हानिकारक है।
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टैरिफ इस तरह बदलता है युद्ध में
अर्थशास्त्रियों की राय में टैरिफ कई बार व्यापार को संतुलित करने, घरेलू उद्योगों की रक्षा करने या रणनीतिक दबाव बनाने के लिए लगाया जाता है। लेकिन जब एक देश बार-बार अपने भागीदारों पर भारी शुल्क लगाता है और जवाब में वही प्रतिक्िया मिले तो यह टैरिफ युद्ध बन जाता है।
वैश्विक व्यापार की मूल संरचना टूटेगी
नोबेल विजेता और द न्यूयॉर्क टाइम्स के स्तंभकार पॉल क्रुगमैन ने ट्रंप की टैरिफ नीति को आर्थिक भ्रम पर आधारित बताया और कहा कि यह वैश्विक व्यापार की मूल संरचना को तोड़ने की कोशिश है। व्यापार घाटा अपने आप में कोई नुकसान नहीं होता और टैरिफ लगाकर उसे कम करने की कोशिश मंदी और महंगाई दोनों को जन्म दे सकती है।
एक और नोबेल पुरस्कार विजेता तथा कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जोसेफ स्टीग्लिट्ज ने ट्रंप की नीति को दुनिया को पीछे ले जाने वाला कदम बताया। उन्होंने कहा कि वैश्विक व्यापार सहयोग पर आधारित है और टैरिफ जैसे एकतरफा फैसले विश्व व्यापार संगठन की साख को कमजोर करते हैं। टैरिफ युद्ध का सबसे बड़ा नुकसान विकासशील देशों और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को उठाना पड़ता है, जो अंततः सभी के लिए नुकसानदायक है।
पूर्व अमेरिकी वित्त सचिव और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रख्यात अर्थशास्त्री लॉरेंस समर्स ने ट्रंप की टैरिफ नीति को अर्थव्यवस्था के खिलाफ कर (टैक्स आन द इकनॉमी) की संज्ञा दी। उन्होंने आगाह किया कि इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं और कारोबारियों को दोहरा नुकसान होता है। एक तरफ लागत बढ़ती है और दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय संबंधों में तनाव उत्पन्न होता है। इन अर्थशास्त्रियों की राय में ट्रंप की टैरिफ नीति आंतरिक आर्थिक समस्याओं का समाधान नहीं है बल्कि इससे अमेरिका का वैश्विक नेतृत्व कमजोर और आर्थिक प्रणाली अस्थिर होती है।
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व्यापार घाटे की चिंता के चलते टैरिफ नीति का इस्तेमाल
यूएस ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव ऑफिस के अनुसार, वर्ष 2024 में अमेरिका का कुल आयात लगभग 3.2 ट्रिलियन डॉलर (3,200 अरब डॉलर) और निर्यात करीब 2.1 ट्रिलियन डॉलर (2,100 अरब डॉलर) का रहा। यानी अमेरिका का व्यापार घाटा लगभग 1,100 अरब डॉलर के आसपास है। यह व्यापार घाटा वर्षों से अमेरिका के लिए चिंता का विषय बना हुआ है, विशेष रूप से चीन और मैक्सिको जैसे देशों के साथ, जिनसे अमेरिका सबसे अधिक आयात करता है। यही वजह है कि अमेरिका अपनी टैरिफ नीति को एक रणनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहा है ताकि वह आयात पर नियंत्रण रख सके और घरेलू उत्पादन व निर्यात को बढ़ावा दे सके।