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पंजाब में मात खा रही भाजपा: 38 प्रतिशत हिंदू आबादी ने पार्टी को बार-बार नकारा... मोदी मैजिक भी यहां नाकाम

राजिंद्र शर्मा, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: निवेदिता वर्मा Updated Wed, 27 Nov 2024 09:59 AM IST
सार

पंजाब में भाजपा हमेशा से शिरोमणि अकाली दल के साथ ही मैदान में उतरती रही थी। कृषि कानूनों पर दोनों का गठजोड़ टूटा तो भाजपा ने अकेले चुनाव लड़े, लेकिन विधानसभा के बाद लोकसभा और अब उपचुनाव में भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।

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BJP Condition in Punjab election
पंजाब में जीत को तरस रही भाजपा - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी अच्छा प्रदर्शन कर रही है। पार्टी ने अपने दम पर ही कई राज्यों में सरकार भी बनाई है। हाल ही में हरियाणा में भी भारी बहुमत के साथ भाजपा ने विधानसभा चुनाव जीता है। इसके बावजूद पंजाब की हिंदू आबादी में पार्टी पैठ नहीं बना पा रही है।

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45 विधानसभा क्षेत्रों में हिंदू मतदाता अधिक

साल 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में हिंदुओं की कुल जनसंख्या 38.5 फीसदी है। राज्य में 45 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां हिंदू मतदाताओं की संख्या अधिक है, बावजूद इसके भाजपा का जादू नहीं चल रहा है। 

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हर बार करना पड़ा हार का सामना

पंजाब में विधानसभा, लोकसभा और उपचुनाव में भी पार्टी कुछ खास नहीं कर पाई है और उसे हार का सामना करना पड़ा है। राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो शिरोमणि अकाली दल से नाता तोड़ना, अंदरुनी गुटबाजी व एससी वोटों का कांग्रेस व आम आदमी पार्टी में जाना इसका प्रमुख कारण है।

पंजाब में कांग्रेस के साथ रहा है हिंदू वोट

अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद से भाजपा का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है। प्रदेश में हिंदू वोट हमेशा से कांग्रेस के साथ जाता रहा है, लेकिन शिअद के साथ गठबंधन के बाद भाजपा को भी हिंदू वोटरों का समर्थन मिला। इसी के चलते भाजपा ने अकाली के साथ गठबंधन में तीन बार भाजपा-अकाली सरकार भी बनाई। एससी व शहरी हिंदू वोटरों का कांग्रेस व आप में जाने से भी पार्टी को नुकसान हुआ है। शहरी एरिया में अधिक सीटें जीतने के साथ ही प्रदेश में दो बार कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस की सरकार बनाई थी।

आप-कांग्रेस के बीच बंटे हिंदू वोट

इसी तरह आप ने भी वर्ष 2022 में हिंदू बहुल शहरी क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करते हुए पहली बार प्रदेश में अपनी सरकार बनाई थी। इस तरह हिंदू शहरी वोटों का कांग्रेस, आप में बंटने और शिअद से गठबंधन टूटने के बाद अकाली समर्थकों का पार्टी से दूर जाने से भी भाजपा को नुकसान हुआ है। भाजपा पहले शिअद के साथ गठबंधन में विधानसभा की 23 व लोकसभा में 3 सीटों पर चुनाव लड़ती थी, लेकिन अब पार्टी को अपने बलबूते पर ही अधिकतम सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ रहा है। 

गुटबाजी भी बड़ी मुसीबत

प्रदेश नेतृत्व में गुटबाजी भी पार्टी के लिए बड़ी मुसीबत बनी हुई है। पंजाब भाजपा प्रधान सुनील जाखड़ उपचुनाव में प्रचार के दौरान गायब रहे। शिअद से गठबंधन टूटने के बाद भाजपा ने वर्ष 2022 में अपने दम पर 73 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन सिर्फ 2 ही सीट उसके हाथ लगी थी। इसके बाद संगरूर लोकसभा उपचुनाव भी पार्टी हार गई थी। 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा के हाथ कोई सीट नहीं लगी, जबकि अब चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में भी पार्टी के हाथ खाली रहे।

पैर पसारने में लगेगा समय : आशुतोष कुमार

पंजाब विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर आशुतोष कुमार ने कहा कि भाजपा हमेशा से ही पंजाब में अकाली दल पर निर्भर रही है। उसे अपने बलबूते पर पहचान बनाने में समय लगेगा। दूसरा हिंदू वोटर कांग्रेस व आप के साथ भी जा रहा है, जिससे भाजपा को नुकसान हुआ है। इसी तरह परिसीमन के बाद शहरी व ग्रामीण एरिया मिक्स होने के चलते भी भाजपा का वोट प्रभावित हुआ है।

पार्टी का लोकसभा चुनाव में वोट शेयर बढ़ा है। इसी तरह विधानसभा उपचुनाव में भी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया है। वर्ष 2027 के लिए तैयारी के साथ पार्टी मैदान में उतरी है और आगे चुनाव में पार्टी को अच्छे नतीजे मिलेंगे। -अरविंद खन्ना, उपाध्यक्ष, भाजपा पंजाब
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