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बच्चे के मामले में हाईकोर्ट ने मां के पक्ष में सुनाया ऐतिहासिक फैसला, एनआरआई दंपति को झटका

अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: खुशबू गोयल Updated Wed, 21 Oct 2020 10:17 AM IST
सार

  • हाईकोर्ट ने एनआरआई दंपती को दिए आदेश
  • कहा- बच्चे पर पहला अधिकार मां का होता है
  • देखभाल न कर पाने के दबाव में गोद दिया था बच्चा

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Punjab Haryana High Court Judgement in Favour of Mother
प्रतीकात्मक तस्वीर - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने एनआरआई दंपति को झटका देते हुए बच्चे के मामले में मां के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। पति की मौत के बाद मानसिक दबाव में तीन माह के बच्चे को मां ने एनआरआई दंपती को सौंप दिया था। लेकिन अब मां द्वारा उसको वापस पाने की याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने बच्चे को वापस मां को सौंपने का आदेश दिया है।
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जस्टिस अमोल रतन सिंह ने अपने फैसले में कहा कि बच्चे पर पहला अधिकार मां का होता है। एनआरआई दंपती ने बच्चे को गोद लेने के लिए जो दस्तावेज तैयार किए थे वह भी सही नहीं है। एनआरआई दंपती ने जब बच्चा गोद लिया था तब वह मौजूद नहीं थे। उनकी जगह उनके रिश्तेदार ने बच्चा गोद लिया और जब एनआरआई दंपती भारत आए और गोद लेने के दस्तावेज तैयार किए तो बच्चे की मां वहां मौजूद नहीं थी।
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हाईकोर्ट ने मामले में एडवोकेट अनिल मल्होत्रा का सहयोग लिया उनकी राय के बाद हाईकोर्ट ने गोद लेने के दस्तावेजों पर संशय जताते हुए इसे रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चे को गोद देने का फैसला मां ने दबाव में लिया था क्योंकि कुछ समय पहले ही उसके पति की मृत्यु हुई थी और वह मानसिक तौर पर स्थिर नहीं थी। पति की मृत्यु के बाद अपने और अपने नवजात के भरण-पोषण की चिंता के दबाव में उसने बच्चा गोद दिया था। हाईकोर्ट ने मां को दो सप्ताह में बच्चा वापस सौंपने का आदेश दिया है। 

यह है मामला

चंडीगढ़ की एक महिला को पति की मृत्यु के बाद बेटा पैदा हुआ था। उस पर परिवार का दबाव था कि वह पति की मृत्यु के बाद अपना और बच्चे का देखभाल सही ढंग से नहीं कर पाएगी। उसे अपना बच्चा किसी को गोद दे देना चाहिए। इसके बाद एनआरआई दंपती से बात हुई।

उनकी गैर मौजूदगी में गत वर्ष 5 सितंबर को पटियाला में बच्चा उनके रिश्तेदार को सौंप दिया गया और मां के हस्ताक्षर ले लिए गए। गोद लेने के दस्तावेज 3 दिसंबर को तैयार हुए जब बच्चे की मां वहां नहीं थी। इसके बाद बच्चे की मां ने पहले पुलिस को शिकायत दी और पुलिस के कार्रवाई नहीं करने पर बच्चे को वापस लेने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी।
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