बाढ़ और सूखा: जलवायु परिवर्तन के कारण हालात अधिक चिंताजनक, तत्काल उपाय नहीं होने पर देश के सामने गंभीर संकट
निरंतर एक्सेस के लिए सब्सक्राइब करें
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ रजिस्टर्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ सब्सक्राइब्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं


विस्तार
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (सीएसटीईपी), गुवाहाटी और मंडी स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन से पैदा हो रहे असंतुलन की गंभीरता को तो उजागर करती ही है, यह जलवायु जोखिमों की एक चिंताजनक तस्वीर भी पेश करती है। केंद्र के विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग के साथ विकास व सहयोग के लिए स्विट्जरलैंड की एजेंसी द्वारा समर्थित इस रिपोर्ट के अनुसार देश के 51 जिलों में भीषण बाढ़ और 91 जिलों में भयावह सूखे का खतरा मंडरा रहा है। रिपोर्ट कहती है कि बाढ़ की तुलना में सूखे का खतरा पूरे देश में अधिक समान रूप से फैला है और देश के 22 राज्यों के 65 जिले अत्यधिक सूखे वाली श्रेणी में हैं। यह स्थिति भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए बेहद गंभीर है, क्योंकि यह समस्या केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक भी है।
दरअसल, मानसून की अस्थिरता और मौसम चक्र में बदलाव के चलते चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी ही है और पिछले एक वर्ष से तो ये घटनाएं ज्यादा स्पष्ट रूप से सामने आई हैं। धरती के तापमान बढ़ने की बात तो पिछले एक दशक से की जा रही है, लेकिन 2024 ने जिस तरह से गर्मी के पिछले रिकॉर्ड तोड़े, देश में असामान्य बारिश और अब दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की जहरीली हवा से खतरे के दरवाजे तक पहुंचने की आशंका ही पैदा होती है। हालांकि ताजा रिपोर्ट के अध्ययन में दो पैटर्न साफ दिखते हैं, जिसमें पहला तो यह है कि बाढ़ व सूखा जलवायु परिवर्तन से पैदा हो रहे संकटों में सबसे गंभीर हैं, क्योंकि ये मनुष्य को पूरी तीव्रता के साथ सीधे प्रभावित करते हैं। जबकि दूसरा यह कि इन संकटों की भयावहता जिले की आबादी पर निर्भर है, यानी जिन जिलों की आबादी कम है, वहां जोखिम भी कम होगा।
संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट कहती है कि 2050 तक देश की आधी से ज्यादा आबादी शहरों में निवास कर रही होगी। ऐसे में चिंता की बात तो अलबत्ता यह है कि औद्योगीकरण, वनों की अंधाधुंध कटाई और बढ़ते शहरीकरण ने पर्यावरणीय संतुलन को जिस तरह से बिगाड़ा है, उसमें निकट भविष्य में भी सुधार के कोई संकेत नहीं दिखते। बाढ़ के दौरान शहरों में जल निकासी व्यवस्थाओं की दुर्दशा से विकास के दावों की जैसी पोल खुलती है, वह भी छिपी नहीं है। ऐसे में, जरूरी है कि जोखिम वाले जिलों को लक्षित कर उनके लिए दीर्घकालिक योजना तैयार की जाए, क्योंकि समय रहते अगर तत्काल और समग्र उपाय नहीं किए गए, तो इन जिलों का संकट पूरे देश के लिए गंभीर साबित हो सकता है।