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Nepal Politics: नेपाल में फिर उलटफेर, राष्ट्रपति चुनाव ने बिगाड़ा खेल
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KP sharma Oli-Pushp Kamal Dahal
- फोटो :
ANI
विस्तार
कुछ दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों में यह प्रवृत्ति उभर रही है कि राजनीतिक वर्ग गंभीर समस्याओं को हल करने के बजाय उसका हिस्सा बन जाते हैं। राजनीतिक विमर्श जहरीला हो गया है। हर मुद्दे का अंत या तो अदालत में होता है या सड़कों पर या दोनों जगहों पर। लोकतंत्र को मजबूत करने के बजाय चुनाव व्यक्तिगत हिसाब बराबर करने का अखाड़ा बनता जा रहा है। प्राकृतिक और स्व-निर्मित आपदाएं, दोनों इन देशों में राजनेताओं को उच्च स्तर का जीवन जीने और बड़ी-बड़ी डींगे हांकने से नहीं रोकतीं।
नेपाल की सियासत उबाल पर है। पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की पार्टी सीपीएन-यूएमएल ने प्रचंड सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है। प्रचंड और ओली के बीच गठबंधन टूटने का मुख्य कारण यह है कि प्रचंड ने राष्ट्रपति पद के लिए नेपाली कांग्रेस के प्रत्याशी रामचंद्र पौडेल का समर्थन करने का फैसला किया। इससे प्रचंड सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि नेपाली कांग्रेस की संसद में 89 सीटें हैं। हां, अब इस बात की पूरी संभावना बन गई है कि आगामी नौ मार्च को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में नेपाली कांग्रेस के रामचंद्र पौडेल नेपाल के तीसरे राष्ट्रपति बनेंगे। इससे पहले उप प्रधानमंत्री राजेंद्र लिंगडेन समेत राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) के कुछ मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया था। हालांकि, आरपीपी ने औपचारिक रूप से सरकार से अपना समर्थन वापस लेने की घोषणा नहीं की है।
ओली के नेतृत्व वाले यूएमएल ने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुभाष नेमबांग को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है। लेकिन नए राजनीतिक गठजोड़ के गणित को देखते हुए पौडेल की जीत सुनिश्चित लगती है। ओली उस दिन को कोस रहे होंगे, जिस दिन उन्होंने पिछले चुनाव में खराब प्रदर्शन के बावजूद पुष्प कमल दहल प्रचंड के साथ गठजोड़ किया था। लेकिन यह प्रचंड को धोखा देने का दंड था। इसलिए किसी को ओली के प्रति सहानुभूति नहीं है।
ओली का इसका अंदाजा था। काठमांडू में एक बैठक में उन्होंने कहा कि साजिश और विश्वासघात पर आधारित राजनीति ज्यादा दिन नहीं चलेगी। नेपाली कांग्रेस के साथ प्रचंड का गठबंधन करने का नवीनतम कदम मौजूदा गठबंधन को तोड़ने और आने वाले महीनों में अधिक अविश्वास और अशांति को बढ़ावा देगा। यह नेपाल की राजनीति का खेल बन गया है, जो वरिष्ठ राजनेताओं द्वारा हमेशा सत्ता पाने के लिए बारी-बारी से खेला जा रहा है। इसमें लोकतंत्र, विचारधारा और यहां तक कि हिंदूवाद एवं मार्क्सवाद-लेनिनवाद जैसे ऊंचे-ऊंचे आदर्श अवसरवाद की भेंट चढ़ जाते हैं। सभी प्रमुख नेता इसमें शामिल हैं-पौडेल, देउबा, ओली, प्रचंड और माधव नेपाल आदि। गठबंधन बदलते समय वफादारी का उनका सामूहिक हस्तांतरण उल्लेखनीय है।
फिलहाल यह नेपाली कांग्रेस के लिए फायदेमंद है। संसद में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद उसे यूएमएल (दूसरी सबसे बड़ी पार्टी) ने मात दे दी थी, जिसने माओवादियों (तीसरी सबसे बड़ी पार्टी) के साथ चुनावी गठजोड़ बना लिया था। नेपाली कांग्रेस सत्ता बचाए रखने में विफल रही, क्योंकि देउबा पहले प्रधानमंत्री की कुर्सी पाने के प्रचंड के दबाव के आगे नहीं झुके। ऐसे में, नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्रपति पद के लिए देउबा के बजाय पौडेल का नाम आगे कर दूरदृष्टि का परिचय दिया है।
राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति चुनाव में मतदान करने वाले 884 सदस्यों के निर्वाचक मंडल में 334 संघीय प्रतिनिधि सभा के और 550 प्रांतीय विधानसभा के सदस्य हैं। कुल 26,400 मतों के लिए संघीय प्रतिनिधि सभा के सदस्यों के वोट का मूल्य 79 है, जबकि प्रांतीय विधानसभाओं के कुल 26,386 मतों के लिए एक मत का मूल्य 48 है। यदि नौ मार्च के मतदान में कोई भी उम्मीदवार बहुमत हासिल नहीं करता है, तो अगले दिन फिर से चुनाव होंगे। उप राष्ट्रपति के लिए मतदान 17 मार्च को होगा। पौडेल की उम्मीदवारी की कहानी नेपाली कांग्रेस, यूएमएल और माओवादी पार्टी के बीच त्रिकोणीय संघर्ष का परिणाम है, जिन्होंने 2006 में जनयुद्ध की समाप्ति के बाद से अस्थिर गठबंधन में नेपाल पर शासन किया है। तब से नेपाल ने सरकारों को आते और जाते हुए देखा है।
राष्ट्रपति का औपचारिक पद तीनों राजनीतिक दलों के लिए कितना महत्वपूर्ण हो गया है, यह नेपाल की जुनूनी सियासत में दिखता है। सभी राजनीतिक खिलाड़ी सांविधानिक शक्तियों का अपने हित में उपयोग करने के लिए लचीला राष्ट्रपति चाहते हैं। ओली द्वारा नामित निवर्तमान राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी को वर्ष 2021-22 में सांविधानिक संकट से निपटने के तरीकों को लेकर आलोचना झेलनी पड़ी थी। तब उन्होंने संसद भंग कर चुनाव की घोषणा कर दी थी, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उसमें दखल दिया और उनके फैसले को निरस्त कर दिया।
भारत और चीन की भूमिका के बिना नेपाल की राजनीति पर चर्चा पूरी नहीं हो सकती है, खासकर जब एशिया में अमेरिका और चीन के बीच वर्चस्व के लिए वैश्विक संघर्ष खत्म हो रहा है। जाहिर है, चीन चाहेगा कि यूएमएल और माओवादी एकजुट रहें। ध्यान रहे कि 2021 में काठमांडू स्थित चीन की महिला राजदूत ने पार्टी को विभाजित होने से रोकने की कोशिश की थी। लेकिन ताजा घटनाक्रम चीन के लिए नुकसानदेह होना चाहिए।
इसके विपरीत नेपाली कांग्रेस के सत्तारूढ़ गठबंधन में आने के बाद यह भारत के लिए सामरिक रूप से लाभ की स्थिति है, लेकिन कोई भी यह नहीं बता सकता कि कब तक। चीन-अमेरिकी प्रतिद्वंद्विता के तेज होने का मतलब है कि वाशिंगटन नेपाली कांग्रेस और माओवादी को एक साथ रखकर उसका मुकाबला करना चाहेगा, हालांकि वामपंथी और दक्षिणपंथी दलों की विचारधारा अलग हो सकती है। जाहिर है, नेपाली कांग्रेस एक मध्यमार्गी दल है। लेकिन ओली ने उन ताकतों के साथ गठबंधन किया है, जो राजशाही की वापसी चाहती है, इसलिए कोई भी राजनीतिक निष्ठा वर्जित नहीं है। रणनीतिक रूप से नई दिल्ली अमेरिकी रणनीति के साथ चलेगी। जाहिर है, इसकी कीमत चुकानी होगी, क्योंकि नेपाल का मुखर मध्यवर्ग हमेशा भारत के लिए महत्वपूर्ण रहा है और वहां जो भी शासन करता है, वह भारत के कथित आशीर्वाद से। नेपाली कांग्रेस के सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल रहने पर अमेरिका (जिसका नेपाल में बड़ा दांव लगा है) और भारत, दोनों लाभ उठाएंगे।