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Budget 2025: बजट में निम्न वर्ग की अनदेखी, वित्त मंत्री ने आयकर की सीमा बढ़ाकर मध्यम तबके को दी राहत
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सांकेतिक तस्वीर
- फोटो :
अमर उजाला/ एजेंसी
विस्तार
एक तमिल कहावत है- यदि भूख लगेगी तो दस गुण खत्म हो जाएंगे। ये दस गुण हैं- सम्मान, कुल, शिक्षा, उदारता, ज्ञान, दान, तपस्या, प्रयास, दृढ़ता और इच्छा।
आधुनिक समय में चुनाव के समय ये दस और अन्य कई गुण भी गायब हो जाते हैं। देश का बजट 2025-26 दिल्ली चुनाव की पूर्व संध्या और बिहार चुनाव से कुछ महीने पहले पेश किया गया। मैंने शायद ही कभी ऐसा बजट देखा हो, जिसमें सरकार सिर्फ जनता का वोट जीतने के लिए वह सब कुछ दे दे, जो वह एक साल में कुछ लोगों को ही दे सकती है। माननीय वित्त मंत्री ने बजट में बिल्कुल यही किया है।
वित्त मंत्री ने इस बात का हिसाब लगाया कि उनके पास एक लाख करोड़ रुपये का खजाना है। उन्हें पैसे मिले और उन्होंने सोचा कि इसे 143 करोड़ की आबादी में से आयकर देने वाले 3.2 करोड़ लोगों में बांटा जाए। इन 3.2 करोड़ आयकर दाताओं में मध्यम वर्ग, अमीर, बहुत अमीर और अति अमीर, सभी शामिल हैं। इसने तमिल कहावत में शामिल दस गुणों के साथ-साथ सामाजिक न्याय, समता और वितरणात्मक निष्पक्षता जैसे शासन के आधुनिक मूल्यों को भी हवा में उड़ा दिया।
राजनीतिक बजट
बजट की कवायद जैसे ही शुरू हुई, वित्त मंत्री गिरते राजस्व के दबाव में थीं। वित्त मंत्रालय का अनुमान था कि केंद्र सरकार की कुल प्राप्तियां 2024-25 के बजट अनुमान से लगभग 60 हजार करोड़ रुपये कम हो जाएंगी। इसके अलावा अगर वित्त मंत्री 2024-25 के राजकोषीय घाटे में सुधार करना चाहतीं तो वित्त मंत्रालय को कम से कम 43 हजार करोड़ रुपये जुटाने होते। कुल मिलाकर देखा जाए तो करीब एक लाख करोड़ रुपये जुटाने थे। दिल्ली में विधानसभा के चुनाव नजदीक थे और यदि ऐसे में उपहारों पर विचार किया गया तो 2025-26 में अतिरिक्त धन की जरूरत होगी।
यह बहुत मुमकिन है कि आयकर में कटौती का ‘उपहार’ सरकार के उच्चतम स्तर पर तय किया गया था। करदाताओं के किस वर्ग को लाभ मिलना चाहिए? ओह बकवास (जैसा कि ट्रंप ने कहा होगा), प्रत्येक आयकरदाता को यह मिलना चाहिए! इसलिए कर योग्य आय की सीमा 7 लाख रुपये से बढ़ाकर 12 लाख रुपये करने का निर्णय लिया गया। वित्त मंत्री ने कहा कि इसकी लागत एक लाख करोड़ रुपये होगी।
बजट के लिए हथकड़ी
एक बार जब ये निर्णय ले लिए गए तो 2024-25 के खर्चों में कटौती करने और 2025-26 में नागरिकों के अन्य वर्गों को किसी भी तरह की राहत देने का कोई विकल्प बचा ही नहीं। मनरेगा श्रमिक, दैनिक वेतन भोगी, गैर-आयकर भुगतान करने वाले वेतन भोगी कर्मचारी, कारखानों में काम करने वाले मजदूर, एमएसएमई, गृहिणियों, पेंशन भोगी और बेरोजगार युवाओं को नजरअंदाज कर दिया गया।
वित्त मंत्री ने एक चाल चलते हुए विदेश से लेकर शिक्षा, ग्रामीण विकास, समाज कल्याण समेत शहरी विकास तक के मंत्रालयों की पूंजी और खर्च, दोनों में बेरहमी से कटौती की। इसके अलावा एक लाख करोड़ रुपये छोड़ने के बावजूद उन्होंने यह मान लिया कि 2024-25 की तरह 2025-26 में भी केंद्र सरकार की प्राप्तियां 11 प्रतिशत की दर से बढ़ेंगी।
पीरियोडिक लेबर फोर्स के सर्वे (पीएलएफएस) के अनुसार, युवा बेरोजगारी 10.2 प्रतिशत और स्नातक बेरोजगारी 13 प्रतिशत है। बजट में रोजगार सृजन की योजनाओं पर खर्च को लेकर आठ लाइनें हैं, जिनमें से पांच लाइनें उत्पादकता से जुड़ी निवेश (पीएलआई) योजनाओं के बारे में हैं। इसका खूब प्रचार भी किया गया।
इन आठ लाइनों के लिए 2024-25 का बजट अनुमान (बीई) 28,318 करोड़ रुपये था, लेकिन संशोधित अनुमान (आरई) केवल 20,035 करोड़ रुपये है। यह रोजगार सृजन कार्यक्रम की भारी विफलता को दिखाता है।
50 प्रतिशत छोड़ दिया गया
पीएलएफएस के अनुसार, पिछले 7 वर्षों में वेतन भोगी पुरुष कर्मचारी का मासिक औसत वेतन 12,665 रुपये से गिरकर 11,858 रुपये और स्व-रोजगार पुरुष कर्मचारी का मासिक औसत वेतन 9,454 रुपये से घटकर 8,591 रुपये हो गया है। इसी तरह की गिरावट महिला कर्मचारियों के वेतन में भी आई है। घरेलू उपभोग सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रामीण इलाकों में औसत मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (एमपीसीई) 4,226 रुपये और शहरी इलाकों में 6,996 रुपये था। यह भारत की पूरी आबादी का औसत है। यदि कोई आबादी के निचले 50 प्रतिशत के लिए एमपीसीई की गणना करता है तो यह कम होगा और 25 प्रतिशत के लिए करता है तो यह और भी कम होगा। चार लोगों का एक परिवार 4 गुणा 4000-7000 रुपये (या उससे कम) के प्रति व्यक्ति मासिक खर्च पर कैसे रह सकता है, जिसमें भोजन, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, किराया, परिवहन, ऋण चुकाना, मनोरंजन, सामाजिक दायित्व और आपात स्थिति पर खर्च शामिल होगा?
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत को 2030 तक हर साल 78.5 लाख गैर-कृषि रोजगार सृजित करने की आवश्यकता है। भारत का विनिर्माण क्षेत्र पिछले 10 सालों में नीचे आया है। विश्व बैंक के अनुसार, 2014 में भारत का सकल घरेलू उत्पाद 15.07 प्रतिशत था, जो घटकर 2023 में 12.93 प्रतिशत हो गया। वैश्विक विनिर्माण व्यापार में भारत की हिस्सेदारी चीन की 28.8 प्रतिशत के मुकाबले 2.8 प्रतिशत थी। विनिर्माण क्षेत्र ने बेरोजगारों, दिहाड़ी मजदूरों या स्व-रोजगार श्रमिकों को समायोजित करने के लिए आवश्यक संख्या में नौकरियां पैदा नहीं की हैं। यह ‘मेड इन इंडिया’ की एक और विफलता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर्याप्त दर से नहीं बढ़ रही है। सरकार की नीतियों के परिणामस्वरूप (1 फरवरी, 2025 के वित्त मंत्री के भाषण में परिलक्षित) एक छोटा सा समूह बहुत अमीर हो सकता है और मध्यम वर्ग आरामदायक जीवन जी सकता है। हालांकि सरकार पर निचले 50 प्रतिशत भारतीयों को बेरहमी के साथ त्याग देने का आरोप है।