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मुद्दा: बढ़ती खरीदारी का दूसरा पहलू, क्रेडिट कार्ड का भारी उपयोग चिंता का सबब

P. S. Vohra पीएस वोहरा
Updated Tue, 11 Nov 2025 05:35 AM IST
सार
बढ़ती खरीदारी से भले ही टैरिफ के दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही हो, लेकिन क्रेडिट कार्ड का भारी उपयोग चिंता का सबब भी है।
 
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Rising shopping may be boosting Indian economy but heavy credit card usage is a cause for concern
क्रेडिट कार्ड का भारी उपयोग चिंता का सबब - फोटो : अमर उजाला प्रिंट

विस्तार
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वैश्विक स्तर पर भारतीय अर्थव्यवस्था का बड़ी तेजी से आगे बढ़ना अब ज्यादा चौंकाने वाला तथ्य नहीं रहा है, क्योंकि यह बात सर्वमान्य हो चुकी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी ताकत उसकी घरेलू बाजार में लगातार बढ़ रही खरीदारी है। दिवाली के त्योहार पर इसने एक बार फिर से अपने आप को साबित किया, जब वर्ष 2024 की तुलना में इस समय तकरीबन 50 प्रतिशत से अधिक लोगों की क्रय क्षमता में बढ़ोतरी हुई।



एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2025 की दिवाली तथा उसके आसपास के दिनों में भारत के घरेलू बाजार में छह लाख करोड़ रुपये से अधिक की खरीदारी हुई। इससे तीसरी तिमाही की विकास दर में बढ़ोतरी दर्ज होगी। और इसका आखिरी परिणाम आम लोगों के पक्ष में भी जाएगा। इस संदर्भ में यह पक्ष ध्यातव्य है कि बीते कुछ महीनों से ट्रंप की टैरिफ नीतियों से भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे मनोवैज्ञानिक दबाव को भी इस खरीदारी ने एक जवाब जरूर दिया है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि मोदी सरकार के जीएसटी रेट कट की इसमें बड़ी भूमिका रही है।


भारतीय घरेलू बाजार, विश्व की सभी बड़ी कंपनियों को अपनी तरफ आकर्षित करने में भी सफल हो रहा है और इसी कारण भारतीय बाजार की उपेक्षा अब संभव नहीं है। आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय तकरीबन अपनी क्रय क्षमता का 32 प्रतिशत अपनी जरूरतों पर, तो करीब 29 प्रतिशत विभिन्न प्रकार की इच्छाओं पर खर्च कर रहे हैं। इस खरीदारी में लाइफस्टाइल प्रोडक्ट्स, फैशन व मनोरंजन ने प्रमुख स्थान ले लिया है। एक रिसर्च फर्म के आंकड़ों के मुताबिक, 20,000 रुपये मासिक वेतन से लेकर 10,0000 रुपये से अधिक मासिक वेतन पाने वाले लोगों की खरीदारी के बीच यह ट्रेंड अब उपभोक्ताओं की सोच में गहराई तक स्थापित हो चुका है।

लेकिन इन सब के बीच चिंता का सबब यह भी है कि इस खरीदारी का भुगतान क्या वित्तीय बचत को प्रभावित कर रहा है? क्या इस तरह की खरीदारी आम व्यक्ति के जीवन में वित्तीय ऋण को बढ़ा रही है? हकीकत में ये दोनों बातें इन दिनों भारतीय समाज में हर तरफ देखी जा रही हैं। हालांकि, यह भी एक सच है कि प्रतिवर्ष वेतन में हर जगह 10 प्रतिशत की न्यूनतम बढ़ोतरी दर्ज हो रही है और महंगाई के आंकड़े इससे कम हैं। पिछले वर्ष आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, महंगाई पांच फीसदी से थोड़ी ऊपर रही है, यानी यह वेतन बढ़ोतरी महंगाई की आंकड़ों से संघर्ष करने में सक्षम है। लेकिन अचंभित करने वाली बात यह है कि भारतीयों की खरीदारी का भुगतान अल्पकालीन वित्तीय ऋणों के माध्यम से हो रहा है, जिसमें क्रेडिट कार्ड बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है।

अप्रैल 2023 तक, करीब आठ करोड़ भारतीयों के पास क्रेडिट कार्ड थे, वहीं अप्रैल 2024 तक इसकी संख्या 25 प्रतिशत बढ़ गई। अर्थात 50 करोड़ की आबादी को (औसतन चार से पांच सदस्यों का परिवार) ये क्रेडिट कार्ड अपनी भुगतान क्षमता से प्रभावित कर रहे हैं। इसी के चलते वित्तीय वर्ष 2024-25 में करीब 23 हजार करोड़ रुपये से अधिक की खरीदारी क्रेडिट कार्ड के माध्यम से हुई है। अचंभित करने वाली बात यह भी सामने आई है कि 20 हजार रुपये महीना वेतन पाने वाले व्यक्ति के जीवन में मासिक 25 प्रतिशत खर्चा क्रेडिट कार्ड के माध्यम से की गई खरीदारी पर है, वहीं 40 हजार रुपये तक तनख्वाह पाने वाले के मासिक खर्च में इसका हिस्सा 40 प्रतिशत, 75 हजार रुपये तक आय वालोंे के जीवन में इसका खर्चा 50 प्रतिशत से अधिक और एक लाख व उससे अधिक वेतन पाने वालों के जीवन में इसकी भागीदारी मासिक 58 से 62 फीसदी की हो गई है। इससे स्पष्ट है कि हर भारतीय, खरीदारी के इस बढ़ते ट्रेंड के चलते ईएमआई के वित्तीय दबाव में फंस गया है।

इस संदर्भ में कुछ समय पूर्व आरबीआई ने भी अपनी चिंता जाहिर की थी। वर्ष 2006 में अमेरिका की मंदी का मुख्य कारण भी यही था कि व्यक्तियों की क्रय क्षमता वित्तीय ऋण पर निर्भर थी और वित्तीय ऋणों के भुगतान न होने पर बैंक संकट में आ गए थे। समय आ गया है कि अब भारतीय बैंक, क्रेडिट कार्ड के माध्यम से होने वाली खरीदारी पर कुछ नए दिशा-निर्देश जारी करें। मसलन, छोटी मासिक आय वाले उपभोक्ताओं को महंगे उत्पादों की खरीदारी क्रेडिट कार्ड के माध्यम से करने पर नियंत्रण लगाया जाए। बड़े शहरों में एकाएक प्रचलन में आए हवाई यात्रा के ट्रेंड पर नियंत्रण भी जरूरी है।

ये दिशा-निर्देश इसलिए भी जरूरी हैं कि भारतीयों की वित्तीय बचत 30 प्रतिशत से कम हो गई है और इससे उनके वित्तीय निवेश, आभूषणों, जमीन, बैंक निवेश और स्टॉक मार्केट इत्यादि जीडीपी का पांच प्रतिशत ही रह गया है, जो कि बीते 50 वर्षों में सबसे कम है। अब इसका हल यही है कि भारतीयों की खरीदारी को वित्तीय ऋणों या क्रेडिट कार्ड के आवश्यक भुगतानों से बचाकर, बचत के प्रति प्रोत्साहित किया जाए और आखिर में वित्तीय निवेश की तरफ मोड़ा जाए, वरना भारतीय समाज आर्थिक हताशा के दौर में चला जाएगा।

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