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Exclusive: हर बात में गाली...बुरी आदत ही नहीं, बीमारी के भी हैं लक्षण, पढ़ें ये रिपोर्ट और हो जाएं सावधान

अंकित यादव, संवाद न्यूज एजेंसी, देहरादून Published by: अलका त्यागी Updated Thu, 06 Nov 2025 02:40 PM IST
सार

आज के समय में गाली-गलौज और अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल का ट्रेंड बढ़ा है। कुछ परिस्थितियों में यह सामान्य हो सकता है लेकिन कई बार ये लक्षण बीमारी के संकेतक के रूप में सामने आते हैं।

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Abusing for everything is not just a bad habit it is also a symptom of a serious illness
मस्तिष्क - फोटो : Adobe stock photos
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विस्तार
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किसी के मन में अगर बार-बार गाली देने की इच्छा हो रही है तो यह कोई आम स्थिति नहीं बल्कि टॉरेट सिंड्रोम के लक्षण हो सकते हैं। यह एक मानसिक बीमारी है जो मस्तिष्क के बेजल गैंगलिया हिस्से में मौजूद सर्किट के असंतुलित होने से पैदा हो रही है। 20 से 40 वर्ष की आयु वर्ग के सबसे अधिक लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं।

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मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि आज के समय में गाली-गलौज और अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल का ट्रेंड बढ़ा है। किसी के परेशान या चिंता में होने के दौरान गाली देना आम घटना हो सकती है, लेकिन खुशी के माहौल और आम बातचीत के दौरान भी लोग तरह-तरह के गाली जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। कुछ परिस्थितियों में यह सामान्य हो सकता है लेकिन कई बार ये लक्षण बीमारी के संकेतक के रूप में सामने आते हैं। एम्स ऋषिकेश के मनोरोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. रवि गुप्ता के मुताबिक कोई भी व्यक्ति अपनी भाषा और शरीर पर तब नियंत्रण खो देता है, जब उसके मस्तिष्क का बेजल गैंगलिया सर्किट असंतुलित हो जाता है।
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एम्स के मनोरोग विभाग की ओपीडी में हर महीने दो से तीन मरीजों में टाॅरेट सिंड्रोम की पुष्टि हो रही है। टॉरेट सिंड्रोम ग्रसित मरीजों के मस्तिष्क का बेजल गैंगलिया सर्किट प्रभावित होता है। इसी से जुड़ा इंपल्स कंट्रोल डिसॉर्डर भी इस तरह की परेशानियों का कारण बनता है।

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इस बीमारी में मरीज के मस्तिष्क का फ्रंटल कॉर्टेक्स सर्किट खराब हो जाता है। यह बीमारी आमतौर पर बच्चों में देखने को मिलती हैं। इसमें बच्चे बिना किसी कारण के गाली देने लगते हैं और अजीब व्यवहार करते हैं। डॉ. गुप्ता ने बताया कि वैसे तो इनकी क्लीनिकल जांच में ही पुष्टि हो जाती है लेकिन कई बार इसकी पहचान के लिए मस्तिष्क की एमआरआई और सीटी स्कैन समेत कई जांचें करवानी पड़ती हैं। चिकित्सक का कहना है कि अभी तक इस बीमारी के पीछे किसी भी तरह के भौतिक कारण सामने नहीं आए हैं।

ग्रसित लोगों के आत्मविश्वास में आ रही कमी
जिला चिकित्सालय की वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. निशा सिंगला ने बताया कि टॉरेट एक ऐसी बीमारी है, जो इससे पीड़ित लोगों में आत्मविश्वास कम कर रहा है। इसकी चपेट में आने वाले लोग किसी भी तरह की चिंता और अन्य कारणों से गालियां दे देते हैं, बाद में उन्हें अफसोस भी होता है। यह व्यवहार उनके नियंत्रण में नहीं होता है। उनका कहना है कि उनके पास जो मरीज आते हैं, वे कहते हैं कि उन्हें नहीं पता कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं।

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