Rudraprayag: पौराणिक पहचान और सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है मद्महेश्वर मेला, बेहद रोचक हैं पीछे की कहानी
मद्महेश्वर मेला पौराणिक पहचान और सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है। भगवान मद्महेश्वर क्षेत्र के ईष्ट देव हैं। इन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है।
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पौराणिक काल से मेल-मिलाप, देव आस्था और सांस्कृतिक उत्सवों का केंद्र रहे मेले आज भी पहाड़ों की परंपरा और पहचान को जीवंत बनाए हुए हैं। इन्हीं ऐतिहासिक आयोजनों में से एक है मद्महेश्वर मेला, जिसकी पौराणिकता आदि काल से बताई जाती है। भगवान केदारनाथ और मद्महेश्वर के शीतकालीन गद्दी स्थल उखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में लगने वाला यह मेला वर्षों से आस्था का मुख्य केंद्र रहा है।
वर्ष 1997-98 तक यह मेला केवल एक दिवसीय आयोजित होता था लेकिन मद्महेश्वर धाम की उत्सव डोली के उखीमठ पहुंचने पर उमड़ने वाली भारी भीड़ के चलते इसने मेले का विस्तृत रूप लेना शुरू किया। वर्तमान में यह मेला तीन दिवसीय भव्य आयोजन के रूप में आयोजित किया जा रहा है। मेले का मुख्य आकर्षण आज भी उत्सव डोली के स्वागत के दौरान उमड़ने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ ही है।
न्याय का देवता भी है कहा जाता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक जिला–एक मेला की अवधारणा और शीतकालीन यात्रा को प्रोत्साहन मिलने से उखीमठ में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर की धार्मिक-पर्यटन पहचान को नई मजबूती मिली है। यही कारण है कि आगामी 20 से 22 नवंबर तक चलने वाले मेले के लिए लोग उत्साहित हैं। मेले में हर साल विभिन्न सरकारी विभागों के स्टॉल, झूले, चरखी, स्वयं सहायता समूहों और स्थानीय उत्पादों को भी पहचान मिलती है। हर वर्ष मेले के आकार और लोकप्रियता में वृद्धि देखी जा रही है।
केदारनाथ धाम के वरिष्ठ पुजारी शिवशंकर लिंग बताते हैं कि भगवान मद्महेश्वर क्षेत्र के ईष्ट देव हैं। इन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है। उनके शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर आगमन पर राजसी पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसके साक्षी क्षेत्र की समस्त जनता बनती है। यह धाम बारह महीने भक्तों के लिए दर्शनों के लिए खुला रहता है।
भगवान कृष्ण से भी है इस स्थान का जुड़ाव
ओंकारेश्वर मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह पौराणिक कथा से भी जुड़ा है कहते हैं कि यहीं भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और बाणासुर की पुत्री उषा का विवाह संपन्न हुआ था। विवाह वेदी आज भी मंदिर परिसर में विद्यमान है और इसी कारण यह स्थल अब पारंपरिक वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में भी उभर रहा है।
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रुद्रप्रयाग में लगने वाले मेले
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