Roorkee: साबिर पाक दरगाह: हर साल उर्स में जुटते हैं देश-विदेश के जायरीन, पाकिस्तान से भी आता है जत्था
साबिर पाक दरगाह में हर साल उर्स में देश-विदेश के जायरीन जुटते हैं। पाकिस्तान से भी जत्था आता है। पिरान कलियर आस्था का संगम और सूफी इज्म की पहचान बना है।
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विश्व प्रसिद्ध दरगाह हजरत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक रहमतुल्लाह अलैहि न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में आस्था का बड़ा मरकज (केंद्र) मानी जाती है। इनका सालाना उर्स गत 25 अगस्त से 8 सितंबर तक हुआ था। जिसमें देश विदेश के जायरीनों ने शिरकत की थी।
पाकिस्तान से भी जायरीनों का जत्था इसमें पहुंचता है। इस बार दोनों देशों के हालत ठीक नही होने से पाकिस्तानी जायरीन नहीं आ सके। यहां स्थित साबिर पाक की दरगाह हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सभी मजहबों की आस्था को एक सूत्र में पिरोने का काम करती है।
अकीदतमंदों के जत्थे अलग-अलग शहरों से हैं पहुंचते
दरगाह साबिर पाक सूफी इज्म (सूफी परंपरा) का अहम प्रतीक है जहां हर साल देश-विदेश से लाखों जायरीन पहुंचकर अपनी अकीदत पेश करते हैं। यहां का सालाना उर्स सिर्फ एक धार्मिक रस्म नहीं बल्कि वह पुल है जो दिलों को जोड़ता है। हर साल आयोजित होने वाले उर्स में अकीदतमंदों के जत्थे अलग-अलग शहरों से बड़ी श्रद्धा और मुहब्बत के साथ पिरान कलियर पहुंचते हैं।
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मान्यता है कि हजरत साबिर पाक के दरबार में हाजिरी लगाने से बिगड़े काम बन जाते हैं और दिलों को सुकून मिलता है। सूफी इज्म के मानने वाले लोग हिंदुस्तान की सरजमीं से गहरी मुहब्बत रखते हैं और उसका सबसे बड़ा उदाहरण यहां हर साल होने वाला यह उर्स है जो पूरी दुनिया में अमन, मोहब्बत और इंसानियत का पैगाम फैलाता है। पिरान कलियर में और भी वलियों की दरगाह है। जिसमें दरगाह ईमाम साहब, किलकिली साहब, पीर गैब अली साहब और अब्दाल शाह की दरगाह है। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार रबीउल अव्वल के महीने में दरगाह साबिर का सालाना उर्स मनाया जाता है।