विजय दिवस: 1971 के युद्ध में भी खूब लड़े थे उत्तराखंड के कई वीर जांबाज, पराक्रम के आगे झुका था पाकिस्तान
उत्तराखंड के कई जांबाजों ने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के दांत खट्टे किए थे। आज का दिन भारत की जीत और पाकिस्तान के आत्मसमर्पण की याद दिलाता है।
विस्तार
उत्तराखंड को यू ही वीरों की भूमि नहीं कहा जाता। 1971 के भारत-पाक युद्ध में राज्य के कई वीर जवानों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मन के दांत खट्टे किए थे। मूल रूप से लैंसडाउन और हाल नवादा निवासी शौर्य चक्र विजेता लेफ्टिनेंट कर्नल राकेश चंद्र कुकरेती (79 वर्ष) बताते हैं कि आज ही के दिन 16 दिसंबर को उनकी छह राजपूताना रेजिमेंट के सामने 22 बलूच रेजिमेंट ने आत्म समर्पण किया था।
लेफ्टिनेंट कर्नल कुकरेती बताते हैं कि छह राजपूताना रेजिमेंट ज्वाइन करने के कुछ समय बाद ही उनकी रेजिमेंट धर्मनगर से बांग्लादेश में सिलहट के लिए रवाना हो गई थी। खास बात यह है कि उनके चार भाई मेजर जनरल प्रेम लाल कुकरेती, मेजर धर्मपाल कुकरेती, मेजर जगदीश कुकरेती व नायब सूबेदार सोहन लाल कुकरेती भी भारत-पाकिस्तान के बीच हुए इस युद्ध में शामिल रहे।
वहीं, 97 वर्षीय मूल रूप से हवालबाग अल्मोड़ा और हाल सेलाकुई निवासी मेजर नारायण सिंह पिलखवाल के मुताबिक उन दिनों वह 251 पैरा मेडिकल कंपनी में तैनात थे। बताते हैं कि 13 दिन चले इस युद्ध में 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की पूर्वी कमान ने ढाका में आत्मसमर्पण किया और 90 हजार से अधिक सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया गया।
उत्तराखंड के वीर जांबाजों ने अपने बेटों को भी बनाया फौजी
1971 के जांबाजों ने एक नहीं बल्कि कई अन्य युद्ध भी लड़े। खास बात यह है कि विभिन्न युद्ध लड़ने के बाद भी इन वीर जांबाजों ने अपने बेटों को फौजी बनाया। लेफ्टिनेंट कर्नल राकेश चंद्र कुकरेती के दो जुड़वा बेटे हैं। कुकरेती की पत्नी ईरा कुकरेती के मुताबिक उनके दोनों बेटे कार्तिकेय और अर्थ कुकरेती सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल हैं। वहीं, मेजर नारायण सिंह पिलखवाल के पुत्र भगवंत सिंह पिलखवाल भी सेना से कर्नल के पद से सेवानिवृत्त हैं।
ये भी पढ़ें...Uttarakhand: ऊर्जा निगमों के टैरिफ प्रस्तावों की कमियों पर आयोग ने मांगा जवाब, एक अप्रैल से लागू होंगी नई दरें
उत्तराखंड के इतने सैनिकों ने दिया था सर्वोच्च बलिदान
1971 के भारत-पाक युद्ध में उत्तराखंड के 248 वीर सैनिकों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए देश के लिए अपनी शहादत दी थी। इसमें अल्मोड़ा जिले के 23, बागेश्वर के 24, चंपावत के आठ, चमोली के 31, देहरादून के 42, लैंसडाउन के 17, नैनीताल के 11, पौड़ी के 16, पिथौरागढ़ के 48, रुद्रप्रयाग का एक, टिहरी के नौ, ऊधमसिंह नगर के छह और उत्तरकाशी के एक जवान ने शहादत दी थी।