Delhi: 'पीड़िता के बयान के बाद किसी और सबूत की जरूरत नहीं', HC ने बरकरार रखी सौतेले पिता की सजा, जानें मामला
न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल पीठ ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए अपीलकर्ता सोनू की सजा को बरकरार रखा। अपीलकर्ता को पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत 10 साल की सश्रम कारावास और 2 साल की सजा सुनाई गई थी।
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दिल्ली हाईकोर्ट ने एक पिता की अपील को खारिज कर दिया है, जिस पर अपनी 11 साल की नाबालिग सौतेली बेटी से बार-बार दुष्कर्म के आरोप सही पाए गए थे। न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल पीठ ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए अपीलकर्ता सोनू की सजा को बरकरार रखा। अपीलकर्ता को पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत 10 साल की सश्रम कारावास और 2 साल की सजा सुनाई गई थी।
मामला 2014 का है, जब पीड़िता 11 साल की थी। शिकायत के अनुसार, उसके पिता की 2006 में मौत के बाद मां ने 2009 में आरोपी सोनू से दूसरी शादी की। पीड़िता ने आरोप लगाया कि सौतेला पिता उसे और उसके भाई को पसंद नहीं करता था। मां के बाहर जाने पर वह भाइयों को बाहर भेज देता था और पिछले 6 महीनों में उसके साथ जबरन दुष्कर्म और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता था। वह उसे धमकी देता था कि अगर किसी को बताया तो उसे और उसकी मां को मार डालेगा। एक रात पीड़िता अपनी मां और भाई के साथ फर्श पर सो रही थी, जबकि आरोपी बिस्तर पर था।
नशे में धुत आरोपी नीचे आया और पीड़िता के निजी अंगों को छूने लगा। मां ने यह देख लिया और पीड़िता से पूछताछ की, तब पूरी घटना सामने आई। इसके बाद मां ने अपने माता-पिता को बुलाया और 9 जुलाई 2014 को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
तीस हजारी कोर्ट ने 2017 में 15 साल की एक किशोरी से दुष्कर्म के आरोप में दर्ज मामले में एक नाबालिग आरोपी को बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ लगाए आरोपों को साबित करने में असफल रहा। इस मामले की सुनवाई अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रयांक नायक की अदालत में हुई। नाबालिग की ओर से पेश वकील ने अदालत में दलील दी कि यह मामला लड़की के परिजनों के दबाव में दर्ज कराया गया था। उन्होंने कहा कि उपलब्ध साक्ष्यों से यह सामने आता है कि दोनों नाबालिगों के बीच शारीरिक संबंध आपसी सहमति से बने थे और किसी प्रकार की जबरदस्ती या दबाव नहीं था।
ससुराल में यौन उत्पीड़न क्रूरता का गंभीर मामला : कोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने वैवाहिक क्रूरता में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि ससुराल वालों द्वारा पत्नी पर किया यौन उत्पीड़न क्रूरता का गंभीर रूप है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में अलग से ट्रायल चलाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह क्रूरता के अपराध का ही हिस्सा है। मामले में याचिकाकर्ता ने निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी, जहां ससुर और देवर को क्षेत्राधिकार के आधार पर दुष्कर्म के आरोप से बरी किया गया था। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के 28 अप्रैल 2023 के आदेश और मजिस्ट्रेट कोर्ट के 2 मई 2023 के फैसले को रद्द करते हुए मामले को नए सिरे से विचार के लिए ट्रायल कोर्ट को वापस भेज दिया। न्यायमूर्ति ने कहा, कोर्ट की राय में, अगर ससुराल वालों द्वारा दुष्कर्म जैसी शारीरिक क्रूरता का गंभीर रूप अपनाया जाता है, तो इसे क्रूरता के अपराध से अलग नहीं माना जा सकता, खासकर जब इससे होने वाला मानसिक तनाव भी जारी रहता है। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि हरियाणा के झज्जर स्थित ससुराल में दहेज की मांग, मारपीट, भोजन से वंचित रखना और मानसिक उत्पीड़न किया गया।
आर माधवन की बिना अनुमति के व्यावसायिक उपयोग पर रोक
अभिनेता आर माधवन की पर्सनैलिटी राइट्स की सुरक्षा करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को कई वेबसाइट्स और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स को उनके नाम, छवि या व्यक्तित्व का बिना अनुमति व्यावसायिक उपयोग करने से रोक लगा दी है। कोर्ट ने आरोपी पक्षों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और डीपफेक तकनीक का उपयोग कर अभिनेता के व्यक्तित्व का दुरुपयोग करने से भी रोका तथा इंटरनेट पर अपलोड कुछ अश्लील सामग्री को हटाने के निर्देश दिए।
न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की बेंच ने कहा कि अदालत इस मामले में विस्तृत अंतरिम आदेश पारित करेगी। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए कि अश्लीलता के आधार पर रोक लगाई जाए। अभिनेता की ओर से पैरवी कर रही वकील ने कोर्ट को बताया कि एक आरोपी ने 'केसरी 3' नामक फर्जी फिल्म ट्रेलर बनाया, जिसमें दावा किया गया कि यह फिल्म जल्द रिलीज होने वाली है। इस ट्रेलर में डीपफेक और एआई जनरेटेड कंटेंट का उपयोग कर माधवन की क्षमता में सामग्री पोस्ट की गई। उन्होंने बताया कि मुकदमा दायर करने से पहले अभिनेता ने उल्लंघनकारी सामग्री के खिलाफ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से शिकायत की थी।
दिल्ली हाईकोर्ट ने ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) की पूर्व क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. मधु भारद्वाज की पेंशन संबंधी याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (कैट) के 2016 के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि डॉ. भारद्वाज के इस्तीफे के कारण उनकी पिछली सेवा अवधि जब्त हो जाती है, और उन्हें पेंशन का हक नहीं है। यह फैसला न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति मधु जैन की डिवीजन बेंच ने सुनाया। अदालत ने कहा कि वीआरएस और इस्तीफे में अंतर को समझना होगा। इस्तीफे की स्थिति में पेंशन का हक नहीं मिलेगा। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सेंट्रल सिविल सर्विसेज (पेंशन) रूल्स, 1972 के रूल 26(1) के तहत इस्तीफा देने से पिछली सेवा स्वतः जब्त हो जाती है, जब तक इसे सार्वजनिक हित में वापस न लिया जाए। जस्टिस मधु जैन ने लिखा कि डॉ. भारद्वाज का अप्रैल 2003 का पत्र स्पष्ट रूप से इस्तीफा था, न कि वीआरएस का विस्तार।