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पिता ने दिया साथ: नाबालिग से किया दुष्कर्म, फिर हत्या कर पार्क में फेंका; कोर्ट ने दोषी को सुनाई मौत की सजा

अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली Published by: श्याम जी. Updated Sat, 01 Mar 2025 06:14 PM IST
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सार

दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट ने नाबालिग के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में दोषी को मौत की सजा सुनाई है। साथ सबूत मिटाने व हत्या में साथ देने के मामले में दोषी के पिता को आजीवन कारावास की सजा दी है। 
 

Court awarded death sentence to accused of rape and murder of a minor
कोर्ट (सांकेतिक तस्वीर) - फोटो : अमर उजाला।
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विस्तार
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तीस हजारी कोर्ट ने 2019 में एक नाबालिग के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में दोषी को मौत की सजा सुनाई। इस दौरान अदालत ने कहा कि वह समाज के लिए खतरा था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बबीता पुनिया ने व्यक्ति के पिता राम सरन को भी अपने बेटे और दोषी राजेंद्र की ओर से किए गए दुष्कर्म के सबूत मिटाने के लिए एक निर्दोष असहाय बच्चे की भीषण हत्या में भाग लेने के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। 

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अदालत ने कहा कि राजेंद्र से सुधार की कोई संभावना नहीं है और उसे समाज से निकाल दिया जाना चाहिए। उसे पॉक्सो अधिनियम और आईपीसी के प्रावधानों के तहत सजा सुनाई गई। साथ ही अदालत ने संबंधित प्रावधानों के तहत दोनों पर जुर्माना भी लगाया। अदालत ने राजेंद्र और उसके पिता को इस मामले में 24 फरवरी को दोषी ठहराया गया था। नाबालिग लड़की नौ फरवरी 2019 को लापता हो गई थी और दो दिन बाद उसका शव एक पार्क में प्लास्टिक की रस्सी से बंधा हुआ मिला था। 
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न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि अपराध की प्रकृति और समाज की कमजोर बच्चों को भयावह अनुभवों से बचाने की रुचि के कारण कड़ी सजा की आवश्यकता है। पीड़िता की उम्र और उसकी असहाय स्थिति के अलावा कोर्ट इस तथ्य से विशेष रूप से परिचित है कि दोषी राजेंद्र ने अपनी यौन इच्छाओं को शांत करने के लिए मासूम और कमजोर लड़की को अपना शिकार बनाया। अदालत ने दोषी के आपराधिक रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा कि उसने पहले भी एक नाबालिग लड़की का अपहरण किया था। दोषी पर यौन उत्पीड़न करने और नाबालिग होने का नाटक करके जमानत हासिल करने का आरोप लगाया गया।

अदालत ने कहा कि जमानत पर रहते हुए उसने पीड़िता को अपनी यौन इच्छाओं का शिकार बनाया और अपने पिता की मदद से उसकी बेरहमी से हत्या कर दी। न्यायाधीश ने कहा कि पहले यौन अपराध में जमानत देकर उसे कानून की अदालत ने खुद को सुधारने का मौका दिया था। हालांकि, खुद को सुधारने और देश का एक अच्छा नागरिक बनने के लिए उस अवसर का लाभ उठाने के बजाय, उसने एक और भी जघन्य अपराध किया। अदालत ने कहा कि अगर दोषी के प्रति नरमी बरती गई तो वह पीड़ित और समाज के प्रति अपने कर्तव्य में विफल होगी, जो ऐसे जघन्य अपराधों में कड़ी सजा के हकदार हैं। न्यायाधीश ने कहा कि बच्ची को राजेंद्र ने बिना किसी पश्चाताप के मार डाला, मानो वह अब जीने लायक ही नहीं थी।

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