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मातृ दिवस: जब मुश्किलों में फंसी जिंदगी तो ढाल बन गई 'मां'... फेल हो गई थी किडनी, मां ने आगे आकर किया अंगदान
राकेश शर्मा, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: विजय पुंडीर
Updated Fri, 09 May 2025 07:35 AM IST
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सार
कुछ ऐसी माताएं हैं जिन्होंने बच्चे की किडनी फेल होने पर उन्हें नई जिंदगी देने के लिए किडनी दान करने का निर्णय लिया। मां से मिली किडनी का प्रत्यारोपण करवाने के बाद परेशानी दूर होने के साथ बच्चे का जीवन भी सुरक्षित हो गया।

मदर्स डे
- फोटो : Adobe

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विस्तार
तुझ से हर चमन है गुलजार मेरा, ऐ मां बस नाम ही है काफी हर बार तेरा, ये पंक्तियां अपने आप में सटीक हैं। बच्चे पर जब भी कोई संकट आता है तो मां ढाल बनकर अपने बच्चे लिए सुरक्षा कवच का काम करती हैं। ऐसी हीं कुछ ऐसी माताएं हैं जिन्होंने बच्चे की किडनी फेल होने पर उन्हें नई जिंदगी देने के लिए किडनी दान करने का निर्णय लिया। मां से मिली किडनी का प्रत्यारोपण करवाने के बाद परेशानी दूर होने के साथ बच्चे का जीवन भी सुरक्षित हो गया।
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बेटा तकलीफ में आया तो आगे आई मां
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी की रहने वाली करीब 61 वर्षीय श्रीदेवी भी ऐसी ही एक मां हैं। बेटा जब तकलीफ में आया तो वह आगे आई और अपनी किडनी देने का फैसला लिया। किडनी प्रत्यारोपण करने वाली टीम से जुड़े नेफ्रोलॉजी और किडनी ट्रांसप्लांट मेडिसिन विभाग के डॉ. रीतेश शर्मा ने बताया कि 29 साल के नीरज कुमार को करीब एक साल पहले सिर में दर्द की समस्या थी। लंबे समय तक दवाएं लेने के कारण उसका रक्तचाप अनियंत्रित हो गया। बाद में जांच की गई तो किडनी पर दवाओं का असर दिखा। जब किडनी की तलाश की गई तो उनकी मां आगे आई और अपनी किडनी देकर उसे नया जीवन दिया। किडनी प्रत्यारोपण के बाद रीतेश ठीक है और उसने गुरुग्राम में अपना काम शुरू कर दिया।
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी की रहने वाली करीब 61 वर्षीय श्रीदेवी भी ऐसी ही एक मां हैं। बेटा जब तकलीफ में आया तो वह आगे आई और अपनी किडनी देने का फैसला लिया। किडनी प्रत्यारोपण करने वाली टीम से जुड़े नेफ्रोलॉजी और किडनी ट्रांसप्लांट मेडिसिन विभाग के डॉ. रीतेश शर्मा ने बताया कि 29 साल के नीरज कुमार को करीब एक साल पहले सिर में दर्द की समस्या थी। लंबे समय तक दवाएं लेने के कारण उसका रक्तचाप अनियंत्रित हो गया। बाद में जांच की गई तो किडनी पर दवाओं का असर दिखा। जब किडनी की तलाश की गई तो उनकी मां आगे आई और अपनी किडनी देकर उसे नया जीवन दिया। किडनी प्रत्यारोपण के बाद रीतेश ठीक है और उसने गुरुग्राम में अपना काम शुरू कर दिया।
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बेटे के लिए सुरक्षा कवच बनी मां
सामान्य बच्चों की तरह झज्जर के बेरी में रहने वाले कार्तिक कटारिया की जिंदगी आसान नहीं थी। जैसे जैसे वह बड़ा हुआ, उसकी समस्याएं बढ़ती गई। करीब 11 साल की उम्र होने तक उसे डायलिसिस करवाने की जरूरत पड़ गई। जब उम्र 13 की हुई तो डॉक्टरों ने किडनी प्रत्यारोपण करवाने की सलाह दी। इस दौरान परिवार के सामने कोई रास्ता नहीं था। अपने घर के चिराग को बचाने के लिए मां अनीता आगे आई और उन्होंने अपनी एक किडनी देने का फैसला लिया। एम्स में सर्जरी विभाग के प्रो. डॉ. आसुरी कृष्णा की देखरेख में 12 अप्रैल को कार्तिक का प्रत्यारोपण हुआ। अब वह ठीक है और जल्द ही उसे अस्पताल से छुट्टी मिल सकती है।
सामान्य बच्चों की तरह झज्जर के बेरी में रहने वाले कार्तिक कटारिया की जिंदगी आसान नहीं थी। जैसे जैसे वह बड़ा हुआ, उसकी समस्याएं बढ़ती गई। करीब 11 साल की उम्र होने तक उसे डायलिसिस करवाने की जरूरत पड़ गई। जब उम्र 13 की हुई तो डॉक्टरों ने किडनी प्रत्यारोपण करवाने की सलाह दी। इस दौरान परिवार के सामने कोई रास्ता नहीं था। अपने घर के चिराग को बचाने के लिए मां अनीता आगे आई और उन्होंने अपनी एक किडनी देने का फैसला लिया। एम्स में सर्जरी विभाग के प्रो. डॉ. आसुरी कृष्णा की देखरेख में 12 अप्रैल को कार्तिक का प्रत्यारोपण हुआ। अब वह ठीक है और जल्द ही उसे अस्पताल से छुट्टी मिल सकती है।
बेटी को मां ने दी नई जिंदगी
लंबे समय से उच्च रक्तचाप से परेेशान ममता क्रोनिक किडनी रोग से पीड़ित थी। धीरे-धीरे स्थिति गंभीर होती गई। एक समय के बाद डॉक्टरों ने किडनी फेल होने की सूचना दी। ममता के सामने किडनी प्रत्यारोपण ही एक विकल्प बचा। ऐसे में उसकी मां वीना ने अपनी बेटी ममता की जिंदगी बचाने का फैसला लिया। 57 वर्षीय वीना ने प्रत्यारोपण के लिए अपनी किडनी दान की। नेफ्रोलॉजी और किडनी प्रत्यारोपण विभाग से डॉ. विक्रम कालरा और रोबोटिक यूरोलॉजी, किडनी प्रत्यारोपण विभाग के डॉ. विकास अग्रवाल ने 26 फरवरी को ममता की किडनी ट्रांसप्लांट की।
लंबे समय से उच्च रक्तचाप से परेेशान ममता क्रोनिक किडनी रोग से पीड़ित थी। धीरे-धीरे स्थिति गंभीर होती गई। एक समय के बाद डॉक्टरों ने किडनी फेल होने की सूचना दी। ममता के सामने किडनी प्रत्यारोपण ही एक विकल्प बचा। ऐसे में उसकी मां वीना ने अपनी बेटी ममता की जिंदगी बचाने का फैसला लिया। 57 वर्षीय वीना ने प्रत्यारोपण के लिए अपनी किडनी दान की। नेफ्रोलॉजी और किडनी प्रत्यारोपण विभाग से डॉ. विक्रम कालरा और रोबोटिक यूरोलॉजी, किडनी प्रत्यारोपण विभाग के डॉ. विकास अग्रवाल ने 26 फरवरी को ममता की किडनी ट्रांसप्लांट की।
ढाल बन गई मां, दी नई जिंदगी
उत्तराखंड, अल्मोड़ा स्थित रानी खेत के रहने वाले श्याम सुंदर को पता ही नहीं था कि पैरों में आई सूजन ने कब समस्या को बढ़ा दिया। पेशे से सिविल इंजीनियर श्याम सुंदर नागालैंड में काम कर रहे थे। उसी दौरान समस्या बढ़ने पर उन्होंने जांच करवाई तो किडनी में दिक्कत पता चली। वह दिसंबर 2023 में सफदरजंग अस्पताल आए। यहां जांच के दौरान उनकी किडनी में कई तरह की समस्या देखी देखी गई। साल 2025 तक स्थिति गंभीर होने सफदरजंग अस्पताल के नेफ्रोलॉजी और किडनी प्रतिरोपण विभाग के प्रमुख डॉ हिमांशु वर्मा और उनकी टीम ने किडनी प्रत्यारोपण का सुझाव दिया। इस दौरान करीब 57 वर्षीय श्याम की मां कमला देवी आगे आई और उन्होंने अपनी एक किडनी दान की।
उत्तराखंड, अल्मोड़ा स्थित रानी खेत के रहने वाले श्याम सुंदर को पता ही नहीं था कि पैरों में आई सूजन ने कब समस्या को बढ़ा दिया। पेशे से सिविल इंजीनियर श्याम सुंदर नागालैंड में काम कर रहे थे। उसी दौरान समस्या बढ़ने पर उन्होंने जांच करवाई तो किडनी में दिक्कत पता चली। वह दिसंबर 2023 में सफदरजंग अस्पताल आए। यहां जांच के दौरान उनकी किडनी में कई तरह की समस्या देखी देखी गई। साल 2025 तक स्थिति गंभीर होने सफदरजंग अस्पताल के नेफ्रोलॉजी और किडनी प्रतिरोपण विभाग के प्रमुख डॉ हिमांशु वर्मा और उनकी टीम ने किडनी प्रत्यारोपण का सुझाव दिया। इस दौरान करीब 57 वर्षीय श्याम की मां कमला देवी आगे आई और उन्होंने अपनी एक किडनी दान की।