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सीमा कुमारी: कठिनाइयों से लड़कर लिया हार्वर्ड में दाखिला, रूढ़ियों को तोड़कर जगाई शिक्षा की अनोखी अलख

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: शुभम कुमार Updated Mon, 17 Mar 2025 07:10 AM IST
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सार

सीमा एक ऐसे गांव से ताल्लुक रखती हैं, जहां लड़कियों को केवल चूल्हे-चौके तक ही सीमित रखा जाता है। बावजूद इसके वह अपनी काबिलियत के दम पर समाज की उन बेड़ियों को तोड़कर आगे बढ़ीं, जो लड़कियों को तरक्की पाने से रोकती हैं...
 

Seema Kumari: Fought the difficulties and got admission in Harvard, broke the stereotypes and spread the uniqu
सीमा कुमार - फोटो : Amar Ujala
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झारखंड में एक छोटा-सा, रूढ़िवादी और काफी पिछड़ा गांव है दाहू, जहां कभी लड़कियों से घर पर रहने और पढ़ाई न करने की अपेक्षा की जाती थी। बात साल 2012 की है। एक गैर-लाभकारी संगठन (एनजीओ) इस गांव में आया। यह लड़कियों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से एक फुटबॉल कार्यक्रम के लिए स्थानीय बच्चों की तलाश कर रहा था। नौ साल की गरीब व पिछड़े समाज की भोली-भाली लड़की एक दिन घास लेने जा रही थी, तभी इस संस्था की ओर से फुटबॉल खेलने वाली लड़कियों पर उसकी नजर पड़ी। वह भी इस फाउंडेशन से जुड़ गई।
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घरवालों से अनुमति लेकर वह प्रतिदिन फुटबॉल के मैदान जाने लगी। फुटबॉल के जरिये वह लड़की न सिर्फ अपने गांव से ही बाहर निकली, बल्कि राष्ट्रीय टूर्नामेंट और फिर अंतरराष्ट्रीय कैंप तक भी पहुंची। खेल के साथ ही उसने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। उसकी मेहनत और लगन का ही परिणाम था कि उसने झारखंड के ऐसे इलाके से निकलकर, जहां लड़कियों से कम उम्र में ही शादी करके चूल्हा-चौका करने की अपेक्षा की जाती थी, हार्वर्ड विश्वविद्यालय तक का सफर तय किया। ऐसा करने वाली वह अपने इलाके की पहली लड़की बन गई। हम बात कर रहे हैं सीमा कुमारी की। रूढ़ियों को तोड़कर इतिहास बनाने तक, सीमा की यात्रा धैर्य, साहस और हार न मानने की मिसाल पेश करती है।
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पेट पालने की जद्दोजहद
सीमा के गांव दाहू में महज 1,000 लोग ही होंगे, जिनमें से ज्यादातर अनपढ़ किसान हैं। सीमा के माता-पिता भी इन्हीं में से एक थे, जो एक स्थानीय धागा फैक्ट्री में काम करके अपना व परिवार का गुजारा चलाते थे। वह अपने भाइयों के साथ मिलकर परिवार के 19 सदस्यों के साथ एक ही छत के नीचे रहते थे। आर्थिक तंगी के चलते दो वक्त की रोटी नसीब हो जाए वही काफी था, अच्छी पढ़ाई-लिखाई करना मानो ख्वाब देखने जैसा था। हालांकि, फिर भी सीमा के माता-पिता ने उन्हें सरकारी योजना के तहत सरकारी स्कूल में दाखिला करवा दिया, जहां वह पढ़ाई करती थीं।

कम उम्र में फुटबॉल कोच
सीमा उस क्षेत्र से आती हैं, जहां लड़कियों की शिक्षा वर्जित है और बाल विवाह अभी भी चलन में है। बावजूद इसके वह सरकारी स्कूल से शिक्षा ले रही थीं। पढ़ाई के साथ-साथ वह मवेशी चरातीं, पानी भरतीं, खेतों में अपने परिवार की मदद करतीं और आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए चावल की बीयर भी बेचा करती थीं। इसके अलावा भी वह कई छोटे-मोटे काम करके अपने माता-पिता की मदद करतीं। अच्छी शिक्षा पाने के लिए सीमा ने झारखंड के एक अच्छे स्कूल में दाखिला तो ले लिया, लेकिन उसकी फीस भरने के पैसे नहीं थे। चूंकि, सीमा बहुत बढ़िया फुटबॉल खेल लेती थीं, इसलिए उसी फाउंडेशन ने उन्हें युवा लड़कियों का फुटबॉल कोच बना दिया। इससे मिले पैसों से वह स्कूल की फीस भरती थीं।

बाल विवाह का विरोध
चूंकि गांव के रीति-रिवाजों और गरीबी की बेड़ियों से सीमा भी आजाद नहीं थीं, इसलिए उन पर कम उम्र में शादी करने का दबाव बनने लगा। हालांकि, उन्होंने बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का डटकर सामना किया और कम उम्र में शादी करने से मना कर दिया। उन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए शिक्षा के अधिकार से समाज को भी रूबरू कराया। उनके स्कूल के प्रिंसिपल और शिक्षकों ने उन्हें हार्वर्ड जैसे वैश्विक संस्थानों में आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित किया और हर संभव मदद भी की।

भारत से अमेरिका तक
शिक्षकों के सहयोग और अपनी काबिलियत के दम पर 2018 में, उन्हें वाशिंगटन विश्वविद्यालय में ग्रीष्मकालीन कार्यक्रम के लिए चुना गया और 2019 में, उन्होंने इंग्लैंड में कैंब्रिज विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम में भाग लिया। कैंब्रिज के बाद, वह अमेरिका में एक वर्षीय एक्सचेंज प्रोग्राम के लिए चुने गए 40 छात्र-छात्राओं में से एक थीं। इसके बाद उन्हें हार्वर्ड में पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति मिली। सीमा कुमारी की भारत से शुरू हुई शैक्षणिक यात्रा अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय में जाकर रूकी। वह हार्वर्ड से इसी साल अर्थशास्त्र में स्नातक हो जाएंगी।

युवाओं को सीख
  •  परेशानियों और बाधाओं को पीछे छोड़कर जो निरंतर आगे बढ़ता है, वास्तव में सफलता उसी के कदम चूमती है।
  •  सपनों में हकीकत के रंग भरने के लिए अक्सर मेहनत की स्याही की जरूरत पड़ती है।
  •  जीवन में कामयाब होने के लिए किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहना होगा।
  •  खुद पर विश्वास करके बड़े से बड़ा लक्ष्य भी हासिल किया जा सकता है।
  •  हौसले बुलंद कर रास्तों पर चलते रहें, एक दिन मंजिल मिल ही जाएगी।    
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