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कभी 10 रुपये के लिए करता था काम, आज है करोड़ो का बिजनेस

amarujala.com: शिवेंदु शेखर Updated Sat, 01 Apr 2017 10:59 AM IST
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success story of naresh goyal, man behind jet airways
नरेश गोयल
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'मानव जब जोर लगाता है पत्थर पानी बन जाता है...'

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~रामधारी सिंह दिनकर

ये पंक्ति जो अभी आपने ऊपर पढ़ी दरअसल वो रामधारी सिंह दिनकर की लिखी कविता 'वीर' का अंश है। लेकिन आज हमने इसे नरेश गोयल के ल्क्ये लिखा है। आइए आपको बताते हैं नरेश गोयल की सफलता की कहानी कि कैसे एक बैंकरप्ट बाप का बेटा देश के सबसे अमीर आदमियों में शुमार हुआ। 

ये कहानी शुरू होती है, पंजाब के संगुर से, जहां 29 जुलाई 1949 को नरेश का जन्म हुआ था। नरेश के पिता ज्वैलरी के व्यापारी थे। नरेश तब बहुत ही छोटे थे जब उनके पिता का देहांत हो गया था। तब नरेश की उम्र करीब 11 साल की थी। पूरा घर कर्ज में डूबा हुआ था। सब कुछ बिक गया। यहां तक कि रहने को खुद का घर भी नहीं बचा। घर की नीलामी हो गई थी। इसके बाद वो अपने ननिहाल में रहने लगे। 
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घर से स्कूल जाने तक के लिए पैसे नहीं होते थे

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हालात इतने बुरे थे कि नरेश के पास घर से स्कूल जाने तक के लिए पैसे नहीं होते थे और रोज नरेश कई मील पैदल चल कर स्कूल जाया करते थे। मां के पास इतने पैसे नहीं थे कि बेटे के लिए एक साइििकल भी खरीद लें। नरेश जब थोड़े बड़े हुए तो उनका मन था कि वो चार्टर्ड अकाउंटेंट की पढ़ाई करें लेकिन पैसे के अभाव ने वो भी छुड़वा दिया। अंत में पास के ही एक कॉलेज से बीकॉम पूरा करके मन को संतोष दिला लिया। 

1967 में ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद नरेश ने अपने मामा जी के ट्रेवल एजेंसी में काम करना शुरू कर दिया। यहां वो एक लेबनीज एयरलाइन्स के लिए काम देखते थे। वहां काम करने के बदले नरेश को दिन के 10 रुपये मिल जाया करते थे, मतलब महीने के 300 रुपये।   

तकरीबन 7 सालों तक काम ऐसे ही चलता रहा। लेकिन 7 सालों ने नरेश को इस बिजनेस में ट्रेंड कर दिया था। बावजूद इसके कि शुरुआती 3 सालों के बारे में नरेश का कहना था कि मुझे सिर्फ सोना आता था। 

इसके बाद से उन्होंने कई कंपनियों के लिए कई अच्छे-अच्छे पोस्ट पर काम किया। जिनेमें इराक एयरवेज के लिए पीआर के काम से लेकर, रॉयल जॉर्डियन एयरलाइन के लिए रीजनल मैनेजर का काम और इन सब के अलावा मिडिल ईस्टर्न एयरलाइन कंपनियों के इंडिया ऑफिस में टिकटिंग, रिजर्वेशन सहित सेल्स तक का काम किया। 

इंटरनेशनल कंपनियों के ऑपरेशन को करीब से देखने के बाद नरेश को इंडिया में लोगों को हो रही परेशानी का पता चला और इसके सॉल्यूशन के लिए नरेश ने काम करने की सोची, लेकिन इसके लिए अपना खुद का काम शुरू करना था। 
 

2014 में हुआ करोड़ों का नुकसान

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जेट ऐयरवेज

मां से कुछ पैसे उधार मांगे और फिर शुरू हुआ जेटएयर (प्राइवेट) लिमिटेड लेकिन शुरुआती दिनों में कंपनी ने सिर्फ कुछ विदेशी एयरलाइन कंपनियों के मार्केटिंग और सेल्स के काम का जिम्मा लिया। इसके बाद फिलिप्पिंस एयरलाइन ने उन्हें पूरे इंडिया रीजन का मैनेजर बना दिया। 

साल 1991 के बाद असल में जेट एयरवेज के लिए रास्ता खुलना शुरू हुआ। जब भारत सरकार ने 'ओपन स्की पॉलिसी' को हरी झंडी दी और नरेश गोयल ने मौके भांप लिया और डोमेस्टिक ऑपरेशन के लिए 05 मई, 1993 को जेट एयरवेज की शुरुआत हुई। कंपनी लगातार अपने काम को बढ़ाती रही और एक वक्त पर जब कंपनी अपने पीक पर थी तब नरेश गोयल देश के 20 सबसे अमीर लोगों में से एक हुआ करते थे। 

बिजनेस है तो इसमें उतार-चढ़ाव होता ही रहता है। वो भी हुआ। एक वक्त था जब जेट एयरवेज ने $500 मिलियन डॉलर में 'एयर सहारा' को खरीद लिया था। कंपनी का सालाना टर्नओवर $14 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गई थी। फिर 2014 में करोड़ों का नुकसान भी हुआ लेकिन लड़ने वाले अपने लिए जीत का रास्ता ढूंढ हो लेते हैं। 

कंपनी ने नई-नई रणनीतियों को अपना कर खुद को फिर से संभाल लिया और ऑपरेशन सही तरीके से चल रहा है। नरेश गोयल के दो बच्चे हैं, दोनों ही लंदन में रहते हैं। 

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